राजकोट : माँ ने डांटा तो कक्षा 7 में पढ़ने वाला लड़का द्वारका भागा, एक शिक्षक की सुझबुझ से फिर घर पहुंचा बच्चा

राजकोट : माँ ने डांटा तो कक्षा 7 में पढ़ने वाला लड़का द्वारका भागा, एक शिक्षक की सुझबुझ से फिर घर पहुंचा बच्चा

द्वारका में शिक्षक गिरधरभाई ने एक अकेले बच्चे को एक नोटबुक के साथ देखा, फिर राजकोट पहुंचाई जानकारी

राजकोट के एक सरकारी स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ने वाला एक लड़का बुधवार दोपहर स्कूल से घर आने के बाद सो गया। उसने अपनी मां को बताया कि उसके पेट में दर्द है। तब मां को लगा वो बहाना बना रहा है और इसी लिए माँ ने उसे डांटा और बच्चे को ट्यूशन जाने को कहा। फिर शाम 4 बजे बच्चा ट्यूशन के लिए निकला पर ट्यूशन जाने के बदले एक जोड़ी कपड़े और चादर लेकर द्वारका के लिए ट्रेन पकड़ कर द्वारका पहुंच गया।
 

इधर बच्चे की तलाश शुरू, उधर एक शिक्षक को हुआ बच्चे पर संदेह

 
इसके बाद इधर माता-पिता ने दिन-रात बच्चे की तलाश की लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। वहीं उधर अगले दिन द्वारका में एक शिक्षक गिरधरभाई ने द्वारका बाजार में एक अकेले बच्चे को एक नोटबुक के साथ देखा और उससे पूछताछ की। बच्चे को देखकर लगा कि शायद बच्चा घर छोड़ कर भाग गया है। उससे पूछताछ करने पर पता चला कि वह राजकोट के एक सरकारी स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ता है। द्वारका के उस शिक्षक ने राजकोट की शिक्षिका वनिताबेन राठौर को कॉल क्या और कहा, अगर राजकोट के सरकारी स्कूल में कोई जानता है, तो उसे बता दें कि द्वारका के बाजार में कक्षा 7 का एक छात्र नोटबुक लेकर घूम रहा है।
 

माँ-बाप तक पहुंची जानकारी

 
इसके बाद वनिताबेन ने राजकोट के विभिन्न स्कूलों की जाँच की और पाया कि छात्र राजकोट के एक सरकारी स्कूल का है। वनीताबेन ने स्कूल के प्रिंसिपल को बुलाया और पूछताछ की कि यह छात्र लापता था और उसके माता-पिता खोज रहे थे। वह स्कूल भी आया था। इसकी जानकारी द्वारका के गुरु गिरधरभाई जोशी को हुई और फोन करने पर पता चला कि उनके पिता भी राजकोट बच्चे को लेने के लिए और बच्चे की पहचान कर ली गई है।
 

शिक्षक की पैनी नजर ने बच्चे के भविष्य को संभाला

 
इस दौरान द्वारिका में शिक्षक ने बालक को तब तक अपने पास बैठा रखा जब तक कि बालक का पिता द्वारका नहीं पहुंच गए। अगर गिरधर भाई की पैनी निगाहों ने इस बात को न पहचाना होता तो शायद वह बालक अँधेरी दुनिया में कहीं खो गया होता, शायद उस बालक का भविष्य उजड़ गया होता। हो सकता है उसके माता-पिता को बेटे की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़े और शायद नहीं भी। गिरधरभाई की समय पर सूझबूझ के कारण, उन्होंने खोए हुए बच्चे को उसके माता-पिता तक पहुँचा दिया। पिता के द्वारका पहुँचने पर छात्र को पिता को सौंप दिया गया, छात्र के पिता ने भी शिक्षक गिरधरभाई को धन्यवाद दिया और बच्चा अपने पिता के साथ सकुशल घर पहुँच गया।
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