वडोदरा : वतन लौटी छात्रा की व्यथा, बहुत परेशान किया, भारतीयों के प्रति यूक्रेन वासियों का रवैया बदल गया है!'

वडोदरा : वतन लौटी छात्रा की व्यथा, बहुत परेशान किया, भारतीयों के प्रति यूक्रेन वासियों का रवैया बदल गया है!'

रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध के बीच हर दिन सरकार द्वारा ऑपरेशन गंगा के तहत भारतीयों को वापिस लाया जा रहा था। भारतीय दूतावास ने सभी नागारिकों को कीव और खार्किव छोड़ कर नजदीक के देश पोलेंड आ जाने कहा था, जहां से भारतीयों को देश वापिस लाया जा रहा है। हालांकि इन दोनों शहरों से बॉर्डर तक पहुँचना भी काफी कठिन था। इस बारे में बात करते हुये यूक्रेन से भारत लोटी वडोदरा की छात्रा दिशा पारेख ने स्थानीय वर्तमान पत्र से बात की थी। 
दिशा ने बताया की युद्ध के दौरान भारत के यूक्रेन की तरफ ना होने के चलते भारतीय छात्रों के प्रति उनके रवैया काफी बदल गया। रूस के तेज हमलों के बाद 30 छात्रों के उनके एक समूह ने कीव से लीव जाने के बाद पोलेंड की बॉर्डर क्रॉस करने का निर्णय किया। इसके चलते उन्होंने लीव तक जाने के लिए ट्रेन का सहारा लिया। हालांकि ट्रेन में भी उन्हें यूक्रेन के लोगों ने काफी परेशान किया। दिशा बताती है कि ट्रेन में काफी भीड़ थी, जिसके चलते उन्हें वॉशरूम के दरवाजे के करीब बैठना पड़ा था। हालांकि इसके बाद भी लोग उन्हें परेशान कर रहे थे। 
दिशा बताती है कि कई लोग मात्र परेशान करने के आशय से वॉशरूम जाने के लिए आते थे। जिसके चलते उन्हें बार-बार उठाना पड़ता था। कई लोग उन्हें धक्का देते तो कई लोग उनके पैरों पर पैर रखकर आगे बढ़ जाते थे। मुश्किल से लीव पहुँचने के बाद भी उनकी परेशानियाँ कम नही हुई। जहां स्थानीय लोगों को बिना किसी रोक टॉक के पोलेंड की बॉर्डर पर जाने दिया गया था, वहीं भारतीय छात्रों को रोका जा रहा था। जब उन्होंने कहा कि उन्हें लेने के लिए एंबेसी के लोग आए हुये है तब जाकर उन्होंने उन्हें बॉर्डर क्रॉस करने दिया। 
कीव में ट्रेन चढ़ने के दौरान भी उनके साथ भेदभाव पूर्ण वर्तन किया गया। ट्रेन के टिकट चेकर भारतीय छात्रों को ट्रेन में बैठने ही नहीं दे रहे थे। निजी वाहन चालकों ने बॉर्डर तक पहुंचाने के लिए मुंह मांगी कीमत निकलवाई। हालांकि इसके बाद भी बॉर्डर के कई किलोमीटर पहले ही उन्हें उतार दिया जाता था। 
दिशा का कहना है कि युद्ध के पहले यूक्रेन वासियों का भारत के प्रति रवैया बिलकुल सही था। हालांकि युद्ध में भारत द्वारा यूक्रेन के पक्ष में ना होने के बाद ही उनका बर्ताव बदल गया था।