सूरत : भगवान गिरिराज गोवर्धन धारण कर गोवर्धन नाथ बने : संदीप महाराज
सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का विराम आज, हवन एवं महाप्रसाद 21 को
श्री राधे मित्र मंडल, देलाडवा गांव (डिडोली, सूरत) द्वारा साउथ इंडियन स्कूल के सामने देलाडवा गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन शुक्रवार, 19 दिसंबर को व्यासपीठ से संदीप महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण वृतांत प्रस्तुत किया।
कथा वाचन के दौरान संदीप महाराज ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को धारण कर गोवर्धननाथ का स्वरूप ग्रहण किया। उन्होंने कहा कि भगवान एक रूप में स्वयं की पूजा कर रहे थे और दूसरे रूप में प्रसाद ग्रहण कर रहे थे। इस लीला के माध्यम से भगवान ने देवराज इंद्र पर भी अपनी कृपा की।
महाराजजी ने बताया कि भगवान ने गोपियों के साथ रासलीला की। रास के दौरान जब गोपियों में अहंकार उत्पन्न हुआ, तो भगवान अंतर्ध्यान हो गए। भगवान के विरह में व्याकुल होकर गोपियों ने आराधना की और रोते-रोते जो गीत गाया, वही ‘गोपी गीत’ कहलाया। संदीप महाराज के अनुसार गोपी गीत के पाठ से हृदय रोग तक दूर हो जाते हैं। गोपियों की गहन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान पुनः प्रकट हुए और शरद पूर्णिमा के दिन महारास किया।
उन्होंने बताया कि गोपियां पूर्व जन्मों में ऋषि, मुनि और महात्मा थीं, जिन्होंने जन्म-जन्मांतर तक भगवान की तपस्या की, तभी उन्हें गोपी का स्वरूप प्राप्त हुआ। कथा में कंस वध, मथुरा गमन, मुस्टिक और चाणूर सहित दैत्यों का संहार तथा उग्रसेन को पुनः मथुरा का राजा बनाए जाने का प्रसंग भी विस्तार से सुनाया गया।
संदीप महाराज ने भगवान के उज्जैनी गमन, 64 विद्याओं की प्राप्ति और गुरु दक्षिणा में गुरु के मृत पुत्र को स्वर्ग से वापस लाने की लीला का वर्णन किया। इसके पश्चात भगवान द्वारा बृज की सुध आने पर उद्धव को बृज भेजने, जरासंध के आक्रमण के कारण मथुरा त्यागने से ‘रणछोड़’ नाम पड़ने तथा विदर्भ देश के कुंडिनपुर में रुक्मिणी से विवाह की कथा सुनाई। कथा के दौरान श्रद्धालु भावविभोर होकर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का रसपान करते नजर आए।
