सूरत : डिस्ट्रिक्ट व फैमिली कोर्ट में लोक अदालत का सफल आयोजन, कई टूटते परिवार फिर जुड़े
शादीशुदा विवादों में आपसी समझौते से समाधान, वर्षों से अलग रह रहे दंपती साथ रहने को राज़ी
सूरत। गुजरात स्टेट हाई कोर्ट के निर्देशानुसार सूरत के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और फैमिली कोर्ट में लोक अदालत का सफल आयोजन किया गया। लोक अदालत में वैवाहिक विवादों सहित कई मामलों की सुनवाई की गई।
जिसमें आपसी सहमति और संवाद के माध्यम से अनेक मामलों का समाधान किया गया। खास बात यह रही कि छोटी-छोटी बातों से उत्पन्न वैवाहिक विवादों में कुछ दंपती फिर से साथ रहने को तैयार हो गए।
लोक अदालत में एडवोकेट प्रीति जिग्नेश जोशी, तुप्ती ठक्कर, संदीप आर. पटेल, निखिल रावल, उर्वी खत्री, बेला गिरनारा और शिवानी चाहवाला ने मध्यस्थता करते हुए वैवाहिक विवाद सुलझाने में अहम भूमिका निभाई। फैमिली कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में लंबित कई मामलों को लोक अदालत में ट्रांसफर कर आपसी समझौते से निपटाया गया।
22 साल से अलग रह रहा दंपती फिर साथ आया
लोक अदालत में प्रस्तुत एक मामले में 22 वर्षों से अलग रह रहा पति-पत्नी आपसी सुलह के बाद फिर से साथ रहने के लिए राज़ी हो गया। पत्नी ने बेटी की शादी का खर्च मांगा, जिस पर पति ने सहयोग का भरोसा दिलाया। दोनों पक्षों के बीच सकारात्मक माहौल बनने के बाद वकीलों की मध्यस्थता से समझौता हुआ और दंपती ने बीती बातों को भुलाकर बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए साथ रहने का फैसला किया।
आवेदक पत्नी निर्मला गंगले की शादी वर्ष 1999 में अंकित गंगले से हुई थी। दोनों के एक बेटा और एक बेटी हैं। पारिवारिक मतभेदों के चलते वर्ष 2003 से दोनों अलग रह रहे थे। बाद में विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के बावजूद लोक अदालत में आपसी सहमति से विवाद का समाधान संभव हो सका। इस सुलह में एडवोकेट प्रीति जिग्नेश जोशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
तीन साल पुराना विवाद भी हुआ खत्म
एक अन्य मामले में पति द्वारा पत्नी की देखभाल का भरोसा देने पर पत्नी ने भी गृहस्थी की जिम्मेदारी संभालने की सहमति जताई। तीन वर्षों से चल रहा विवाद लोक अदालत में आपसी समझौते से समाप्त हुआ और दंपती फिर साथ रहने के लिए तैयार हो गए।
याचिकाकर्ता जयश्रीबेन अग्रवाल की शादी वर्ष 1999 में नितिन अग्रवाल से हुई थी। दोनों के दो बालिग बच्चे हैं। आपसी मतभेदों के कारण वर्ष 2019 से दोनों अलग रह रहे थे। डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत दायर आवेदन के बाद कोर्ट की पहल पर समझौता हुआ और मामला लोक अदालत में निपटाया गया।
लोक अदालत के माध्यम से वर्षों पुराने पारिवारिक विवादों का शांतिपूर्ण समाधान होने से न केवल अदालतों का बोझ कम हुआ, बल्कि कई परिवारों को दोबारा एक होने का अवसर भी मिला।
