सूरत : आत्मनिर्भरता की मिसाल, आदिवासी महिला संगीताबेन ने ‘रूरल मॉल’ से बदली अपनी जिंदगी

बलेठी गांव की गृहिणी से सफल रेस्टोरेंट संचालिका बनीं संगीताबेन, ‘वनश्री’ से हर महीने कमा रहीं रु. 40-50 हजार

सूरत : आत्मनिर्भरता की मिसाल, आदिवासी महिला संगीताबेन ने ‘रूरल मॉल’ से बदली अपनी जिंदगी

सशक्त महिला ही सशक्त समाज की नींव रखती है , इस बात को गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों की अनेक महिलाओं ने अपनी मेहनत, प्रतिभा और आत्मविश्वास से साबित किया है। इसी कड़ी में सूरत के मांडवी तालुका के बलेठी गांव की संगीताबेन जिग्नेशभाई चौधरी का नाम प्रेरणादायी उदाहरण के रूप में सामने आता है। एक समय केवल गृहिणी रहीं संगीताबेन के भीतर आत्मनिर्भर बनने की तीव्र इच्छा थी, जिसने उन्हें जीवन का नया मार्ग दिखाया।

संगीताबेन को जब विसडालिया में स्थापित देश के पहले ‘रूरल मॉल’ के बारे में पता चला, तभी से उनकी जिंदगी ने नई दिशा पकड़ ली। रूरल मॉल में शुरुआती दिनों में उन्हें किचन का काम मिला, जहां वे चाय-नाश्ता तैयार करती थीं। बाद में वन विभाग के सहयोग से उन्हें ‘वनश्री’ नाम से अपना रेस्टोरेंट शुरू करने का अवसर मिला।

‘वनश्री’ में चाय-नाश्ते के अलावा गुजराती थाली, पंजाबी थाली और नागली-बाजरा-चावल के रोटले जैसे कई स्थानीय और पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। ग्राहकों ने प्यार और घरेलू स्वाद से भरपूर इन व्यंजनों को बेहद पसंद किया, जिससे रेस्टोरेंट की लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई।

संगीताबेन बताती हैं कि उन्हें अब शादी समारोहों, जन्मदिन समारोहों और सरकारी कार्यक्रमों के लिए भी ऑर्डर मिलते हैं। उनके साथ सात से अधिक कारीगर काम कर रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है। इससे हर महीने 40 से 50 हजार रुपये की आय हो रही है और पूरा परिवार आत्मनिर्भर हो चुका है।

उनके अनुसार, “पहले मैं सिर्फ एक गृहिणी थी, लेकिन आज मैं अपने पैरों पर मजबूती से खड़ी हूँ। मैं न केवल अच्छी आमदनी कर रही हूँ बल्कि अन्य लोगों के लिए रोजगार का साधन भी बनी हूँ। सरकार ने हम जैसे दूर-दराज के लोगों के लिए जो माध्यम उपलब्ध कराया है, उसके लिए हम आभारी हैं।”

वन विभाग के मार्गदर्शन और रूरल मॉल की पहल ने संगीताबेन जैसी अनेक महिलाओं में उद्यमशीलता की भावना विकसित की है। यह रूरल मॉल केवल व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि आसपास के करीब 34 गाँवों के आदिवासी परिवारों के लिए आय और रोजगार का एक बड़ा मंच बन गया है। गुजरात के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की यह कहानी सामाजिक सशक्तिकरण का मजबूत संदेश देती है।

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