सूरत/ अहमदाबाद :  गुजरात में छठ महापर्व की छटा, बिहार की मिट्टी की महक से महक उठा साबरमती तट : अरविंद सिंह

बिहार और गुजरात की सांस्कृतिक विरासतें अब बन चुकी हैं एक-दूसरे की पहचान 

सूरत/ अहमदाबाद :  गुजरात में छठ महापर्व की छटा, बिहार की मिट्टी की महक से महक उठा साबरमती तट : अरविंद सिंह

अहमदाबाद के साबरमती के तट स्थित “इंदिरा ब्रिज छठ पूजा घाट” पर इस वर्ष भी छठ महापर्व समन्वय ट्रस्ट, माँ जानकी सेवा समिति, हिन्दीभाषी महासंघ और छठ महापर्व आयोजन समिति के संयुक्त तत्वावधान में भव्य छठ पूजनोत्सव 2025 का आयोजन किया गया।  गुजरात की धरती पर बिहार की लोकआस्था, परंपरा और संस्कृति का यह संगम देखने योग्य रहा। आयोजन स्थल पर हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और भक्तिमय वातावरण ने पूरे परिसर को आस्था के रंग में रंग दिया। 

कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उनका पारंपरिक अंगवस्त्रम और पुष्पगुच्छ से हार्दिक स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा, “गुजरात में बिहार की संस्कृति का यह उत्सव हमारी एकता, विविधता और पारस्परिक सम्मान की पहचान है।

हिन्दीभाषी महासंघ के महासचिव अरविंद सिंह ने अपने संबोधन में कहा, “छठ पर्व केवल पूजा नहीं, यह हमारे संस्कारों और हमारी मिट्टी की आत्मा है। जब हम गुजरात में रहकर भी इस पर्व को पूरे अनुशासन और निष्ठा के साथ मनाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे बिहार की गंध साबरमती की हवा में घुल गई हो। ” 

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सिंह ने आगे कहा, “यह पर्व हमें सिखाता है कि जैसे छठ में हम पूरे समर्पण से व्रत निभाते हैं, वैसे ही हमें लोकतंत्र में भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए, मतदान करना भी उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी और पूजा है। भक्ति और कर्तव्य, दोनों मिलकर समाज को सशक्त बनाते हैं।

आयोजन के अध्यक्ष डॉ. महादेव झा इस पूरे प्रयास के प्रेरणास्रोत रहे। उनके मार्गदर्शन और आशीर्वाद ने आयोजन को नई ऊँचाइयाँ दीं। वहीं सोना सिंह ने अपनी उत्साही ऊर्जा और सतत सक्रियता से पूरे आयोजन को सुसंगठित और सफल बनाया। उनके साथ सभी समिति सदस्यों, स्वयंसेवकों और सहयोगी संस्थाओं ने मिलकर कार्यक्रम को भव्य स्वरूप दिया। पूरे घाट परिसर में भक्तिमय माहौल, लोकगीतों की मधुर ध्वनि, प्रसाद की सुगंध और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती महिलाओं की श्रद्धा ने सभी को भावविभोर कर दिया।

सिंह ने अंत में कहा, “छठ मइया और सूर्य देव के प्रति यह श्रद्धा हमारे समाज की आत्मा है। यह पर्व सीमाओं से नहीं, भावनाओं से जुड़ा है और आज यह देखकर गर्व होता है कि बिहार और गुजरात की सांस्कृतिक विरासतें अब एक-दूसरे की पहचान बन चुकी हैं।”

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