सूरत :  महलों में नहीं भक्तों के मन में रहते हैं भगवान राम : राधाकृष्णजी महाराज 

सूरत में चल रहे नौ दिवसीय महोत्सव के छठे दिन महाराज ने रामकथा के महत्वपूर्ण प्रसंग सुनाए

सूरत :  महलों में नहीं भक्तों के मन में रहते हैं भगवान राम : राधाकृष्णजी महाराज 

 गौऋषि परम श्रद्धेय स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज की प्रेरणा से लोक पूण्यार्थ न्यास शाखा, सूरत द्वारा आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम गौ भक्ति महोत्सव कथा का आयोजन सिटी लाइट स्थित महाराज अग्रसेन पैलेस में जारी है। यह महोत्सव स्वर्गीय गोभक्त गजानंदजी कंसल और राधावल्लभजी जालान की स्मृति को समर्पित है। कथा के मुख्य मनोरथी श्रीमती गीता देवी गजानंदजी कंसल (कंसल ग्रुप), जयप्रकाशजी अग्रवाल (रचना ग्रुप) और सुभाषजी अग्रवाल (सुभाष साड़ी) हैं।

महोत्सव के छठे दिन व्यासपीठ से गोवत्स राधाकृष्णजी महाराज ने जनकपुर में राजा दशरथ द्वारा बारात स्वागत से लेकर सीता-राम विवाह के बाद की विदाई, अयोध्या में नवबधुओं का स्वागत, राम राज्याभिषेक की तैयारी, मंथरा-कैकेयी संवाद, कैकेयी द्वारा वरदान मांगने और राम वनगमन जैसे प्रसंगों का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा कि भगवान रामजी अपने मधुर स्वभाव से मिथिला में सबका दिल जीत लेते हैं। यदि किसी को जीवन में पिता की कमी खलती हो तो रामजी को पिता मानकर पूरी श्रद्धा से सेवा करनी चाहिए। संकल्प यदि मन से होता है तो टिकता नहीं, लेकिन यदि हृदय से होता है तो जीवन को दिशा देता है। महाराजजी ने कहा जब दुर्जनों के विचार मानोगे तो सभी के नजरों से गिर जाओगे। कैकेयी ने मंथरा की बात मानी तो राम हाथ से निकल गये। भगवान राम महलों में नहीं वन में अथवा भक्तों में मन में रहते हैं। राम वन से के लिए तैयार होते हैं। माता जानकी और अनुज लक्ष्मण भी जाते हैं।  

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राम राज्याभिषेक की तैयारी पर महाराजजी ने बताया कि देवताओं को भय हुआ कि यदि राम अयोध्या के राजा बन जाएंगे तो असुरों का संहार कैसे होगा। तभी देवताओं ने मां सरस्वती से प्रार्थना की और उनकी प्रेरणा से दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी। उसके कहने पर कैकेयी ने राजा दशरथ से राम को वनवास और भरत को राज देने का वरदान मांगा।

महाराजजी ने सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश भी दिए। उन्होंने कहा कि जनकपुर में बारातियों को दाल-भात में गाय का घी डालकर परोसने की परंपरा है, क्योंकि घी स्नेह और संस्कार का प्रतीक है। जैसे बच्चों में संस्कार डालने से वे विशेष बनते हैं, वैसे ही भोजन भी संस्कारित हो जाता है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में दहेज का कोई उल्लेख नहीं मिलता, केवल गायें दी जाती थीं।

महाराजजी ने अंत में माता-पिता की सेवा पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि सन्यास लेने से पहले माता-पिता की प्रसन्नता आवश्यक है। आज दुर्भाग्यवश कुछ लोग समाज सेवा का उपदेश देते हैं, परंतु अपने ही माता-पिता को अकेला छोड़ देते हैं।

लोक पूण्यार्थ न्यास शाखा के चेयरमैन राकेश कंसल, अध्यक्ष संदीप पोद्दार एवं विपिन जालान ने बताया कि कथा स्थल पर अखंड गो ज्योति प्रज्वलित है और पूंगनुर नस्ल की गौमाता का दर्शन-पूजन हेतु बड़ी संख्या में श्रद्धालु कर रहे हैं।  उन्होंने बताया कि रविवार को सुबह 6.30 बजे गोडादरा क्षेत्र स्थित बाबोसा मंदिर से अंबिका हाइट्स तक प्रभातफेरी निकाली जाएगी। नौवें दिन यानी मंगलवार 30 सितंबर को कथा प्रातःबेला में सुबह 9 से 12 बजे तक रहेगी। 

मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि एवं प्रमोद कंसल ने बताया कि शनिवार को गोधाम महातीर्थ मथमेड़ा के मुख्य संरक्षक गोविन्द सरावगी, संजय सरावगी (लक्ष्मीपति ग्रुप), दिनेश पचेरीवाला (पार्वती साड़ी), चंद्रप्रकाश गोयल, दिलीप टिबरेवाल, राधेश्याम मालचंदका, पवन अग्रवाल (एम.आर. साड़ी), लक्ष्मीकांत अग्रवाल, विनोद तिवारी, राजेश सिंघल, नटवरलाल टाटनवाला, अनिल अग्रवाल (गंगा साड़ी), मूलसिंह राजपूरोहित, घनश्याम सारडा, मांगीलाल राजपुरोहित, मालाराम राजपुरोहित, तुलसीभाई राजपुरोहित, जेठाराम ढाका, पवन शर्मा सहित अनेक महानुभावों ने ज्ञानगंगा में गोता लगाया।  

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