राजकोट : विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेष: मेले की मस्ती और पिता के कंधों पर सवार बचपन
मेले की छोटी-छोटी खुशियाँ बन जाती हैं ज़िंदगी की बड़ी यादें
प्रति वर्ष 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। विश्व फोटोग्राफी दिवस के अवसर पर प्रस्तुत यह फोटो स्टोरी हमें जीवन की सादगी और मासूमियत से रूबरू कराती है। कानुड़ा के जन्मोत्सव पर लगने वाला लोक मेला हर किसी को अपने बचपन की गलियों में ले जाता है।
मेले का नाम सुनते ही बच्चों की आँखों में चमक आ जाती है। चरखे, झूले, खिलौने और खाने-पीने की दुकानें उनकी कल्पना में नाच उठती हैं। बच्चों के लिए मेला किसी मौसम की तरह है – सर्दी, गर्मी और बरसात के समान। वहीं बड़ों के लिए यह स्मृतियों का संसार है, जहाँ उनके बचपन की तस्वीरें जीवंत हो उठती हैं।
तस्वीर में दिखता है कि पिता के कंधे सिर्फ़ परिवार की जिम्मेदारियाँ ही नहीं उठाते, बल्कि बच्चे के लिए दुनिया देखने का सबसे ऊँचा मंच भी बन जाते हैं। बच्चे जब पिता के कंधों पर बैठकर मेला देखते हैं तो उन्हें लगता है जैसे पूरी दुनिया उनके सामने है।
मेला सिर्फ़ चकाचौंध नहीं, बल्कि छोटी-छोटी खुशियों का संगम है। यहाँ खिलखिलाहटें, चीख-पुकार, झूलों की आवाजें धीरे-धीरे मिट जाती हैं, लेकिन यादें हमेशा ज़ेहन में ताज़ा रहती हैं। ये यादें सिखाती हैं कि जीवन का असली सुख महंगे साधनों में नहीं, बल्कि सहज, सरल और मीठे अनुभवों में है।
राजकोट का लोक मेला हर साल इसी रंग और रौनक के साथ आयोजित किया जाता है। वर्ष 1983 तक यह आयोजन शास्त्री मैदान में तीन दिनों तक होता था, जबकि 2003 से इसे रेसकोर्स मैदान में पाँच दिनों तक आयोजित किया जाने लगा। अब हर साल करीब 10 लाख लोग इस मेले में शामिल होते हैं। लोगों के सुझावों के आधार पर मेले को नए नाम दिए जाते हैं। इस वर्ष “ऑपरेशन सिंदूर” की वीरता को नमन करते हुए मेले का नाम “शौर्य का सिंदूर” रखा गया है।