वडोदरा : कोरोना इलाज का दावा खारिज करना पड़ा महंगा, बीमा कंपनी पर उपभोक्ता अदालत ने लगाया जुर्माना
उपभोक्ता फोरम का आदेश बीमा कंपनी 1.64 लाख रुपये 9% ब्याज सहित चुकाए, मानसिक प्रताड़ना व केस खर्च के लिए भी देना होगा मुआवजा
वडोदरा। कोरोना महामारी के दौरान इलाज पर खर्च हुई राशि का बीमा दावा खारिज करना एक बीमा कंपनी को भारी पड़ गया। वडोदरा जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने बीमा कंपनी को आदेश दिया है कि वह पॉलिसीधारक को ₹1,64,852 की अस्वीकृत दावा राशि 9% वार्षिक ब्याज सहित दो महीने के भीतर चुकाए, साथ ही मानसिक प्रताड़ना के लिए ₹3,000 और मुकदमेबाजी खर्च के ₹3,000 अतिरिक्त दे।
इस मामले की जानकारी देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिति जिग्नेश जोशी के ने कहा कि वडोदरा निवासी हसमुखभाई त्रिवेदी (बदला हुआ नाम) ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से ₹5 लाख की कोरोना कवर मेडिकल पॉलिसी ली थी, जिसकी वैधता 27 जुलाई 2020 से 3 मई 2021 तक थी।
अप्रैल 2021 में कोरोना संक्रमित होने पर उन्हें नवजीवन अस्पताल में भर्ती कराया गया, और बाद में स्थिति गंभीर होने पर भाई लाल अमीन अस्पताल में स्थानांतरित किया गया। इलाज की कुल अवधि 6 अप्रैल से 19 अप्रैल 2021 रही और खर्चा कुल ₹3,17,887 हुआ।
त्रिवेदी ने बीमा कंपनी से पूरी राशि का दावा किया, लेकिन कंपनी ने मात्र ₹1,53,035 की राशि मंजूर की और ₹1,64,852 की राशि यह कहकर खारिज कर दी कि उन्होंने वडोदरा नगर निगम के परिपत्र के अनुसार भुगतान किया है।
त्रिवेदी ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिति जिग्नेश जोशी के माध्यम से उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज की। बहस के दौरान अधिवक्ता जोशी ने तर्क दिया कि बीमा पॉलिसी की शर्तों के अनुसार शिकायतकर्ता को उपचार से संबंधित सभी खर्चों की भरपाई का अधिकार है। बीमा कंपनी ने वडोदरा नगर निगम परिपत्र का मनगढ़ंत हवाला देकर मनमाने ढंग से दावा राशि काटी, जो एक दोषपूर्ण सेवा और अनैतिक व्यापारिक आचरण है।
फोरम अध्यक्ष आर.एल. ठक्कर ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा कि यदि बीमा कंपनी को किसी परिपत्र के अनुसार सीमित भुगतान करना था, तो भी उसे पॉलिसीधारक से वसूली गई पूरी राशि पहले चुकानी चाहिए थी और फिर अस्पताल से अतिरिक्त वसूली करनी चाहिए थी। बीमाकर्ता द्वारा सीधे दावे की कटौती करना सेवा की त्रुटि है।
यह फैसला उन उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है जो बीमा दावों में मनमानी या भ्रामक कारणों से अस्वीकृति का सामना करते हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि बीमा कंपनियों को अपनी जिम्मेदारियों से बचने का कोई अधिकार नहीं है और यदि वे सेवा शर्तों का उल्लंघन करती हैं, तो उन्हें परिणाम भुगतने होंगे।
इस पूरे मामले में हसमुखभाई त्रिवेदी की ओर से अधिवक्ता प्रिति जिग्नेश जोशी ने प्रभावी पैरवी की।