सूरत : जिस स्वरूप की हम सेवा करते हैं उसका निरंतर स्मरण और जप ही हमारी मुक्ति है  : पीयूष बावाश्री 

गोस्वामी पीयूष बावाश्री के प्रवचन शिविर में 75 से अधिक वैष्णवों ने ली ब्रह्मसंबंध दीक्षा

सूरत : जिस स्वरूप की हम सेवा करते हैं उसका निरंतर स्मरण और जप ही हमारी मुक्ति है   : पीयूष बावाश्री 

पुष्टि संस्कार धाम सूरत समिति की ओर से शहर में पुष्टि मार्ग परिचय विषय पर व्याख्यान शिविर का आयोजन किया गया। जूनागढ़ बड़ी हवेली के पुष्टि संस्कार धाम के संस्थापक वैष्णवाचार्य गोस्वामी पीयूष बावाश्री की प्रेरक उपस्थिति में संपन्न हुए इस शिविर में पुष्टि संस्कार धाम के बच्चों द्वारा मंगलाचरण, चतुश्लोकी, गीता अध्याय, श्री वल्लभ चरित्रामृत कथा आदि प्रस्तुतियां दी गईं। 

इस अवसर पर व्याख्यान देते हुए गोस्वामी श्री पीयूष बावाश्री ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की संरचना में बंधा हुआ है। जब इंसान का अहंकार बढ़ता है और फिर वह अहंकार टूटता है तो सदमा भी बड़ा लगता है। ऐसे अहंकार के उल्लंघन से आहत आत्मा यदि ऐसी गंभीर मानसिकता के साथ गंगा जल में समाधि ले भी ले तो उसे पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है। पुष्टिमार्ग में भक्ति किसी आदेश या किसी इच्छा से उत्पन्न नहीं होती, बल्कि पुष्टिमार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के हृदय में सदैव भक्ति उत्पन्न होती है। हमारा संपूर्ण जीवन, हमारा हर कार्य, हमारा हर कर्म, हमारे रिश्ते-नाते, हमारी हर भावना प्रभु से जुड़ी हुई है, यही पुष्टिमार्ग का धर्म है।  

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पीयूष बावाश्री ने यह भी कहा कि वैष्णवों को किसी भी बंधन में बंधे बिना अपनी शक्ति के अनुसार भगवान की सेवा करनी चाहिए। जैसे हम अपने धन और संपत्ति की रक्षा करते हैं, वैसे ही वैष्णवों को भी अपने सेव्य रूप की रक्षा करनी चाहिए। वैष्णवों को अपने सेव्य स्वरूप से पूर्ण लगाव रखना चाहिए। श्री पीयूष बावाश्री ने कहा कि हम जिस स्वरूप की सेवा करते हैं उसका स्मरण और जप करते रहें तो वही हमारी मुक्ति है। दो दिवसीय प्रवचन शिविर में बड़ी संख्या में वैष्णव शामिल हुए और प्रवचन, वाघई कीर्तन और महारास का लाभ उठाया। कार्यक्रम के तीसरे दिन 75 से अधिक वैष्णवों ने गोस्वामी श्री पीयूष बावाश्री से ब्रह्मसंबद्ध दीक्षा ली।

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