जूनागढ़ का यह अद्भुत महाबत मकबरा आपने देखा है? जानें खास बातें

जूनागढ़ का यह अद्भुत महाबत मकबरा आपने देखा है? जानें खास बातें

1892 में बना यह शानदार मकबरा गोथिक प्रभावों वाली भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है

भारत अपने अद्भुत इतिहास और अद्वितीय वास्तुकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है। भारत में ऐसी बहुत सी इमारतें है जिन्हें देखकर हर कोई भारतीय ज्ञान, विज्ञान और वास्तुकला का लोहा मान लेता है। ऐसी ही एक जगह गुजरात में भी है। गुजरात के जूनागढ़ में स्थित मकबरा भारतीय कलाकारी का उत्कृष्ट नमूना है। 1892 में बना यह शानदार मकबरा गोथिक प्रभावों वाली भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है।
आपको बता दें कि भारत की ही तरह गुजरात के सौराष्ट्र प्रांत में जूनागढ़ गाँव का एक लंबा इतिहास रहा है। इस प्रांत पर कई शासकों का शासन था। इन्हीं में से एक थे बाबी सुल्तान जिन्होंने लगभग दो सौ वर्षों तक प्रांत पर शासन किया। अठारहवीं शताब्दी में, जूनागढ़ पर विभिन्न साम्राज्यों का शासन था। अफगानिस्तान से भारत आए मोहम्मद शेर खान बाबी 1748 में जूनागढ़ में बस गए। उन्होंने जूनागढ़ को गुजरात उप से स्वतंत्र घोषित करके बाबी सल्तनत की स्थापना की। तब से लेकर 1947 तक भारत की स्वतंत्रता तक, जूनागढ़ सल्तनत के अधीन रहा। उन्होंने जूनागढ़ के किलों से शासन करना शुरू किया। ‘उपरकोट’ नामक यह किला बाबई सल्तनत की राजधानी बन गया। किला वास्तव में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा तीसरी और चौथी शताब्दी के बीच बनाया गया था।
इस किले में लगभग सोलह युद्ध हुए। आज जूनागढ़ की पहचान समझे जाने वाले स्थलों में से एक, इस मकबरे का निर्माण 1878 में जूनागढ़ के नवाब रहे महावत खानजी ने शुरू करवाया था। उनके उत्तराधिकारी बहादुर खानजी ने 1892 में इसे पूरा करवाया। इसके ऊर्ध्वाधर खंभे, खिड़कियां, बारीक नक्काशी वाली पत्थर की दीवारें और उम्दा डिजाइन वाले मेहराब देखते ही बनते हैं। इस मकबरे की विशेषता इसकी मीनारों और विभिन्न आकारों वाले गुंबदों को घेरती घुमावदार सीढ़ियां हैं। यह मकबरा पीले रंग का है और इसके गुंबद प्याज के आकार के हैं। आमतौर पर यह परिसर बंद रहता है लेकिन इससे सटी हुई जामा मस्जिद के प्राधिकारियों से अनुमति लेकर इसे देखा जा सकता है। यह मस्जिद भी अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के चलते एक दर्शनीय स्थल है।
इस मकबरे के पास जूनागढ़ के वजीर बहार-उद-दिन-भर का मकबरा है। मकबरे की विशेषता एक विशाल गोल गुंबद है, जिसके चारों तरफ टॉवर हैं और गोल सीढ़ियाँ हैं जो टॉवरों को घेरती हैं। हालांकि ये संरचनाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कब्जे में हैं, लेकिन वे अब कई स्थानों पर जर्जर हो गए हैं।