ऑपरेशन सिंदूर शांति की भाषा नहीं समझने वालों को भारत के करारा जवाब का प्रमाण: राजनाथ
वडोदरा, दो दिसंबर (भाषा) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि ऑपरेशन सिंदूर इस बात का सबूत है कि भारत उन लोगों को करारा जवाब देता है जो शांति और सद्भावना की भाषा नहीं समझते। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की तुलना सरदार वल्लभभाई पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति और नेतृत्व से की।
सिंह ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सार्वजनिक धन से ‘‘बाबरी मस्जिद’’ बनवाना चाहते थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनकी योजना सफल नहीं होने दी।
सिंह ने पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के अंतर्गत मेरा युवा (एमवाई) भारत द्वारा आयोजित ‘‘एकता मार्च’’ के तहत गुजरात के वडोदरा जिले के साधली गांव में ‘सरदार सभा’ को संबोधित किया।
ऑपरेशन सिंदूर के सफल क्रियान्वयन के लिए सशस्त्र बलों के साहस और समर्पण की सराहना करते हुए सिंह ने कहा कि आज विश्व भारतीय सैनिकों की बहादुरी और क्षमताओं को स्वीकार कर रहा है।
उन्होंने कहा कि पटेल समस्याओं का समाधान हमेशा बातचीत के जरिये करने में विश्वास रखते थे। सिंह ने पटेल के भारत के पहले गृहमंत्री के रूप में कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा, “हालांकि जब सभी रास्ते बंद हो गए, तो वह कठोर रुख अपनाने में नहीं हिचकिचाये। जब हैदराबाद के विलय की आवश्यकता पड़ी, तो पटेल ने वही रुख अपनाया। यदि उन्होंने कठोर रुख नहीं अपनाया होता, तो शायद हैदराबाद भारत का हिस्सा नहीं बन पाता।”
सिंह ने कहा कि मोदी सरकार ने भी ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से इस मूल्य को कायम रखा है।
उन्होंने कहा, ‘‘ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दुनिया को यह दिखाया कि वह उन लोगों को उचित जवाब देने में सक्षम है जो शांति और सद्भाव की भाषा नहीं समझते। ऑपरेशन सिंदूर ना केवल भारतीय जमीन पर, बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी चर्चा का विषय बन गया है।’’
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट संदेश दिया कि ‘‘हम एक शांतिप्रिय राष्ट्र हैं जो कभी किसी देश को उकसाता नहीं है, लेकिन अगर उकसाया जाता है, तो बुरी नजर डालने की कोशिश करने वालों को छोड़ता नहीं है।’’
सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘पंडित जवाहरलाल नेहरू सार्वजनिक धन से बाबरी मस्जिद (अयोध्या में) बनाना चाहते थे। अगर किसी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था, तो वह सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उन्होंने सार्वजनिक धन से बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं होने दिया।’’
उन्होंने कहा कि जब नेहरू ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का मुद्दा उठाया तो पटेल ने स्पष्ट किया कि मंदिर एक अलग मामला है, क्योंकि इसके जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक 30 लाख रुपये आम लोगों द्वारा दान किए गए थे।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सिंह ने कहा, ‘‘एक ट्रस्ट का गठन किया गया था और इस (सोमनाथ मंदिर) कार्य पर सरकार का एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया। इसी तरह, सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए एक भी रुपया नहीं दिया। पूरा खर्च देश की जनता ने वहन किया। इसे ही असली धर्मनिरपेक्षता कहते हैं।’’
रक्षा मंत्री ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पटेल का ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का दृष्टिकोण और मजबूत हुआ है।’’
सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाना कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी और वह प्रधानमंत्री मोदी थे जिन्होंने (जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करके) कश्मीर को भारत से जोड़ दिया।
उन्होंने कहा, “सरदार पटेल ने उस कमजोरी को ताकत में बदलकर, जिसको लेकर विश्व उस समय हमारा मखौल उड़ाता था, देश को आगे का रास्ता दिखाया। और उसी रास्ते पर चलते हुए, भारत अब विश्व से अपने नियमों पर बात करता है, दूसरों के नियमों पर नहीं।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत तेजी से दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और रणनीतिक शक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार सरदार पटेल के राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रही है, जिन्होंने रक्षा आधुनिकीकरण और हथियारों एवं गोला-बारूद के स्वदेशी उत्पादन पर जोर दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘आज ‘मेक-इन-इंडिया’ पहल के कारण हम रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर हो रहे हैं और मित्र देशों को सैन्य उपकरण निर्यात कर रहे हैं। पिछले 11 वर्षों में हमारा रक्षा निर्यात लगभग 34 गुना बढ़ा है। हमारा लक्ष्य 2029 तक तीन लाख करोड़ रुपये का रक्षा उत्पादन और 50,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात हासिल करना है।’’
सिंह ने कहा कि पटेल का पूरा जीवन शुचिता और ईमानदारी का प्रतीक था और इन्हीं उच्च आदर्शों से प्रेरित था।
उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य संसद में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 पारित कराना है, जिसके तहत सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध नैतिक आचरण करना अनिवार्य है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसका अर्थ यह है कि यदि किसी पदस्थ व्यक्ति को किसी गंभीर आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और उसे 30 दिनों के भीतर जमानत नहीं मिलती है, तो वह स्वतः ही अपने पद से हट जाएगा।’’
सिंह ने कहा कि सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी पद की लालसा नहीं की। रक्षा मंत्री ने कहा कि नेहरू के साथ वैचारिक मतभेदों के बावजूद, उन्होंने उनके साथ काम किया क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी को एक वचन दिया था।
उन्होंने दावा किया कि 1946 में नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष इसलिए बने क्योंकि पटेल ने गांधी की सलाह पर अपना नामांकन वापस ले लिया था।
सिंह ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक ताकतें पटेल की विरासत को मिटाना चाहती थीं। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका ने पटेल को इतिहास के पन्नों में एक चमकते सितारे के रूप में फिर से स्थापित किया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पटेल के निधन के बाद आम लोगों ने उनके स्मारक के निर्माण के लिए धन इकट्ठा किया, लेकिन जब यह जानकारी नेहरू जी तक पहुंची तो उन्होंने कहा कि सरदार पटेल किसानों के नेता थे, इसलिए यह धन गांव में कुएं और सड़कें बनाने पर खर्च किया जाना चाहिए।’’
सिंह ने कहा, ‘‘क्या ढोंग था। कुएं और सड़कें बनवाना सरकार की जिम्मेदारी है। स्मारक निधि का इस्तेमाल इसके लिए करने का सुझाव बेतुका था।’’
उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि उस समय की सरकार पटेल की महान विरासत को हर कीमत पर छिपाना और दबाना चाहती थी।
सिंह ने कहा, ‘‘नेहरूजी ने खुद को भारत रत्न प्रदान किया, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल को उस समय भारत रत्न से सम्मानित क्यों नहीं किया गया? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण करके सरदार पटेल को उचित सम्मान देने का फैसला किया। यह हमारे प्रधानमंत्री का सचमुच सराहनीय कार्य है।’’
सिंह ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री बनने के लिए पटेल की आयु बहुत अधिक थी। सिंह ने कहा, “यह पूरी तरह गलत है। मोरारजी देसाई 80 वर्ष से अधिक के थे। अगर वे भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, तो सरदार पटेल, जो 80 वर्ष से कम थे, क्यों नहीं बन सकते थे?”
कश्मीर मुद्दे का उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा कि यदि कश्मीर के विलय के समय पटेल द्वारा उठाए गए सुझावों को माना गया होता, तो भारत को लंबे समय तक कश्मीर समस्या से जूझना नहीं पड़ता।
