सूरत  : 85 मीटर ऊंचे टावर का सफलतापूर्वक डिमोलिशन कराने का जाने कितना खर्चा हुआ 

क्या है टावर गिराए जाने की पर्दे के पीछे की कहानी

सूरत  : 85 मीटर ऊंचे टावर का सफलतापूर्वक डिमोलिशन कराने का जाने कितना खर्चा हुआ 

72 पीलर में 1300 छेद कर विस्फोटक भरा था जो एक क्रम में विस्फोट होने से कूलिंग टावर ढह गया

सूरत के उत्राण पावर स्टेशन के 85 मीटर ऊंचे कूलिंग टावर को पांच सेकेंड में ताश के पत्तों की तरह धमाकों की मदद से ध्वस्त कर दिया गया। एक विशेष टीम बनाकर टावर को इस तरह से गिराने में सफलता मिली। इस डिमोलिशन के लिए विशेषज्ञ आनंद शर्मा राजस्थान से सूरत आए थे और ये पूरा धमाका उन्हीं के नेतृत्व में हुआ। आनंद शर्मा ने बताया कि टावर के 1300 स्थानों पर विस्फोटक प्लान्ट किया गया था। विस्फोटकों को अनुक्रम में छेद के साथ फिट किया गया और फिर अलग-अलग समय पर विस्फोट किया गया। इस टाइमिंग के अनुसार सुनिश्चित समय पर धमाका होने से पूरा टावर धीमे क्रम में सीधा नीचे गिर गया।

टावर गिराने के लिए अलग-अलग विशेष टिमें तैयार कि थी

आज उत्राण पावर स्टेशन का 30 साल पुराना विशाल कूलिंग टावर ताश के पत्तों की तरह टूट कर बिखर गया। लेकिन इस मीनार को ताश के पत्तों की तरह तोड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। लंबे समय से अलग-अलग विशेष टीमें तैयारी कर रही थी। अहमदाबाद के कैलाश मेटल कॉरपोरेशन को उत्राण पावर स्टेशन के कूलिंग टॉवर को एक ही विस्फोट में गिराने का काम सौंपा गया था। जिसमें उन्होंने देश के डिमोलिशन एक्सपर्ट्स की मदद से आज पांच सेकंड के अंदर टावर को जमीन पर उतार दिया।

1300 जगह पर डेटोनेटर के साथ विस्फोटक लगाया

विध्वंस का नेतृत्व राजस्थान के विध्वंस विशेषज्ञ आनंद शर्मा ने किया, जिन्होंने टावर को गिराने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा  कि 85 मीटर ऊंचे टावर के 72 पिलर में 262.5 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। विस्फोटक 1300 विभिन्न स्थानों पर लगाए गए थे। टावर में 1300 छेद ड्रिल किए गए और विस्फोटकों को डेटोनेटर के साथ लगाए गए और फिर विस्फोट किया गया।

अलग-अलग समय पर 1300 डेटोनेटर ब्लास्ट किए गए

पांच सेकंड के भीतर 85 मीटर ऊंचा कूलिंग टॉवर ढह गया, विस्फोटकों के अंदर लगभग 1300 डेटोनेटर भरे हुए थे और विस्फोट होने पर एक ही धमाका सुना गया। लेकिन तथ्य यह है कि इन 1300 डेटोनेटरों का समय अलग-अलग है। विध्वंस विशेषज्ञ आनंद शर्मा ने आगे कहा कि टावर में प्रत्येक विस्फोट का समय अलग-अलग था। पूरे स्ट्रक्चर की रिसर्च करके हर ब्लास्ट को मिलीसेकंड के अंदर टाइम किया जाता है। जिसकी वजह से मिलिमाइक्रो सेकंड में अलग-अलग समय पर इतने धमाके होते हैं, फिर भी हमें एक ही बड़ा धमाका सुनाई देता है।

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इस प्रकार एक क्रम में हि गिरा टावर

टावर सीधे कैसे और क्यों गिरा ?

डिमोलिशन एक्सपर्ट आनंद शर्मा ने बताया कि टावर को गिराने के पीछे अहम बात यह थी कि हमें सीधे टावर को नीचे गिराना था। क्योंकि टावर के 10 से 15 मीटर के दायरे में कई उपयोगी ढांचों का निर्माण किया गया है। जिसे कोई नुकसान न हो उस पर विशेष ध्यान देना था। जिसके लिए सीधे टावर को नीचे लाना जरूरी था। टावर को सीधे नीचे गिराने से पहले कंक्रीट की ताकत क्या है? ऊंचाई क्या है? वजन कितना है? इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए फिर हमें ध्यान से टॉवर में छेद के लिए जगह, उनके बीच की दिशा, उनके बीच की दूरी की जांच करनी थी। फिर उसमें डेटोनेटर लगाए गए और सभी की टाइमिंग बिल्कुल सटीक रखी गई। जब इसे ब्लास्ट किया गया तो स्ट्रक्चर को धीरे-धीरे क्रम से एक सीधी रेखा में नीचे लाया गया और कंपन भी काफी कम हुआ और विध्वंस सफलतापूर्वक किया गया।

टावर को गिराने पर 30 से 40 लाख रुपये का खर्च 

आनंद शर्मा ने आगे कहा कि आज देश में विस्फोटकों की मदद से बड़े-बड़े ढांचों को गिराने की प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है और यह सस्ता भी हो गया है। उत्राण पावर स्टेशन के कूलिंग टावर को गिराने के लिए हमने नॉन-इलेक्ट्रिक विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल किया। इस टावर के गिराने के पीछे 30 से 40 लाख रुपए खर्च किए गए हैं।

देश में 25वां ढांचा गिराया गया

डिमोलिशन विशेषज्ञ आनंद शर्मा ने आगे कहा कि बढ़ती तकनीक के साथ भारत में बड़े निर्माण को तोडने की प्रक्रिया नई तकनीक से शुरू हो गई है। हमने आज गुजरात इलेक्ट्रिक सिटी कॉरपोरेशन के 25वें स्ट्रक्चर को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर दिया है।

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