कही तीन बेटियों ने मिलकर 10 लाख का खर्च किया लेकिन कोरोना पीड़ित पिता को नहीं बचा सकीं तो कही गहने बेचकर भी नहीं बचा पाई पति

कही तीन बेटियों ने मिलकर 10 लाख का खर्च किया लेकिन कोरोना पीड़ित पिता को नहीं बचा सकीं तो कही गहने बेचकर भी नहीं बचा पाई पति

कोरोना महामारी के असर से जूझते उत्तर प्रदेश के दो परिवारों की दर्दनाक दास्तान


कोरोना महामारी के कारण बहुत से लोगों ने अपने परिवार खो दिए हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने परिजन को बचाने के लिए बहुत कुछ किया, कर्ज लिया, दर दर ठोकर खाई पर इतने के बाद भी कुछ नहीं कर पाए। एक बार फिर कोरोना महामारी के बीच उत्तर प्रदेश के लखनऊ और गोरखपुर में त्रासदी के दृश्य सामने आए। इस समय देश में ऐसे कई मामले हैं जहां लोग अपने परिजनों के लिए उचित इलाज और समय पर ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिय पानी की तरह पैसे बहा रहे हैं लेकिन फिर भी अपने परिजन को बचा नहीं पा रहे।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सामने आई पहली करुण कहानी :
कोरोना महामारी की चपेट में लखनऊ की तीन बहनें भी आ गईं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रिया, प्रियंका और श्वेता नाम की तीनों बहनों ने कोरोना महामारी के दौरान अपने पिता को खो दिया। इस बारे में श्वेता ने बताया “9 अप्रैल को अचानक मेरे पापा की तबियत खराब हो गई थी। उन्हें लखनऊ के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। पहले ही दिन अस्पताल वालों ने डेढ़ लाख रुपए और आखिरी तक करीब 6 छह लाख रुपए जमा करवा लिए। हम प्रतिदिन 32 हजार रुपए की दवाइयां अस्पताल वालों को देते थे। हमें लगा अच्छा इलाज मिलेगा और पापा जल्द ठीक हों जाएंगे।
दो-तीन दिन तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में पापा बताने लगे कि रात में कोई उनका ऑक्सीजन ही निकाल देता है। हम लोग हर रोज डॉक्टर से बात करने की कोशिश करते, लेकिन वे हमें डांटकर भगा देते थे। हम बहुत गिड़गिड़ाए। हाथ जोड़कर मिन्नत की, लेकिन किसी ने नहीं सुना। 12वें दिन हमें खबर दी गई थी पापा नहीं रहे। पापा के मरने से दो घंटे पहले ही हम लोगों ने पापा से बात की थी। उस समय सब कुछ ठीक लग रहा था। ऑक्सीजन लेवल भी सही था। तो फिर अचानक क्या हुआ ये किसी को पता नहीं, लेकिन हम जानते हैं अगर किसी ने कुछ गलत किया है तो भगवान उसे कभी माफ नहीं करेगा। ऊपर वाला सबका हिसाब रख रहा है।

दूसरी कहानी: सारे गहने गिरवी रख दिए फिर भी मिली पति की लाश, कर्ज लेकर किया अंतिम संस्कार
(Photo :Dainikbhaskar.com)
दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है। गोरखपुर में रहने वाली रेखा श्रीवास्तव के पति को 20 अप्रैल को कोरोना हुआ था। दो दिन तक किसी भी अस्पताल में कहीं बेड नहीं मिला। रेखा अपनी 8 साल की बेटी और 12 साल के बेटे के साथ दर-दर भटकती रही। आखिरकार 22 अप्रैल को रेखा को एक निजी अस्पताल में बेड मिल गया। पति को अस्पताल में भर्ती कराने स्व पहले अस्पताल वालों ने रेखा से पहले 50 हजार रुपए लिए, फिर 70 हजार रुपए। इसके बाद भी रेखा के पति को वेंटिलेटर नहीं मिला। दो दिन में डेढ़ लाख रुपए खर्च करने के बाद भी अस्पताल से तीसरे दिन पति की लाश ही मिली। 
इस बारे में रेखा श्रीवास्तव कहती हैं “बाहर निकलने पर भी मालूम चला कि हर कोई लाशों पर धंधा कर रहे है।हर कोई लुटने पर लगा था। लाश को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं मिल रही थी। एंबुलेंस वाला 10 हजार रुपए लेने के बाद श्मशान आने को तैयार हुआ। श्मशान घाट पर 2 हजार की लकड़ी 5 हजार में मिली और अंतिम संस्कार कराने वाले ने भी 8 हजार रुपए लिए।“ रेखा कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि क्या सही है और क्या गलत पर उन्हें विश्वास हैं कि भगवान सबका हिसाब करेगा।
Tags: