रंगा-बिल्ला को फांसी देने का दशकों पुराना वो वाकया आज भी रौंगटे खड़े कर देता है!

रंगा-बिल्ला को फांसी देने का दशकों पुराना वो वाकया आज भी रौंगटे खड़े कर देता है!

बलात्कार के जुर्म में फांसी के फंदे पर झूला रंगा दो घंटे बाद भी जिंदा था...

देश भर में पिछले कई समय से दुष्कर्म के कई मामले सामने आए है। इसके चलते अब सरकार द्वारा भी काफी कड़े कदम उठाते हुये इस तरह के मामलों में आरोपियों को फांसी की कड़ी सजा भी सुनाई जा रही है। ऐसे में आज हम आपको फांसी की एक ऐसी सजा के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी कहानी याद कर के ही लोग फिर से अवाक रह जाते है।  
आज से 40 साल पहले गीता चोपड़ा नामक युवती के साथ दुष्कर्म के केस में रंगा और बिल्ला नामक दो आरोपियों को फांसी दी गई थी। तिहाड़ जेल में आज भी इस घटना को याद करते हुये लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते है। क्योंकि फांसी के दो घंटे बाद भी फांसी पर रंगा जिंदा लटकता हुआ मिला था। तिहाड़ जेल के पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता और पत्रकार सुनेत्रा चौधरी ने लिखे किताब 'ब्लैक वारंट' में इस घटना का उल्लेख किया गया है, जिसे जानने के बाद किसी का भी सर चकरा सकता है।
पुस्तक के अनुसार, साल 1978 में रंगा और बिल्ला ने गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा का अपहरण किया था। इसके बाद उन्होंने गीता के साथ दुष्कर्म कर दोनों की हत्या कर दी थी। दोनों के खिलाफ चार सालों तक केस चला, जिसके बाद अदालत द्वारा उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। चार सालों बाद उन्हें फांसी की सजा देने के लिए तिहाड़ प्रशासन द्वारा फरीदकोट और मेरठ जेल में से फकीरा और कालु नाम के जल्लाद को बुलाया गया।
फांसी देने के पहले दोनों को चाय दी गई और उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई। इसके बाद जब उन्हें फांसी देने के लिए लाया गया तो दोनों के चेहरे ढाँक दिये गए। जल्लादों द्वारा लीवर खींचे गए और दोनों के पैर हवा में झूलने लगे। अब अगली प्रक्रिया दो घंटे बाद होने वाली थी। इसलिए सभी वहाँ से चले गए। दो घंटे के बाद जब मृतदेह की जांच करने के लिए डॉक्टर वहाँ पहुंचे तो वह हैरान रह गए। फांसी देने के बाद बिल्ला की तो मृत्यु हो गई थी, पर रंगा की जान अभी भी नहीं गई थी। वह अभी भी फंदे पर जिंदा ही लटका था। 
सभी हैरान थे, की दो घंटे के बाद भी रंगा जिंदा कैसे है। इसके बाद एक गार्ड को नीचे भेजा गया जहां रंगा के पैर लटक रहे थे। गार्ड ने नीचे उतरकर रंगा के पैर खींचे और उसकी फांसी देने की प्रक्रिया पूर्ण हुई। सभी हैरान थे की जेल के अधिकारियों के सामने कुशल जल्लादों द्वारा फांसी देने के बाद भी रंगा फांसी देने के दो घंटे बाद भी जीवित कैसे रह गया था। यह सवाल आज भी लोगों की रातों की नींद उड़ा देता है।
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