सूरत : एक ही शहर में रहने के बाद भी पिछले 12 साल से अपने परिवार से दूर भटक रहे शख्स को उसके बच्चों के मिलाया गया

सूरत : एक ही शहर में रहने के बाद भी पिछले 12 साल से अपने परिवार से दूर भटक रहे शख्स को उसके बच्चों के मिलाया गया

सामाजिक कार्यकर्ता जिगर रावल और गुमशुदगी प्रकोष्ठ की मदद से इतने साल बाद हुआ बाप-बेटे का मिलाप

पिछले 12 साल से पर्वत पाटिया क्षेत्र में सड़क पर भटकने की हालत में जीवन व्यतीत कर रहे 42 वर्षीय अशोकभाई अपनी पत्नी की मौत के बाद मानसिक रूप से टूट चुके थे और इसी मानसिक अवस्था में अपने दो छोटे बच्चों को छोड़कर घर से निकल गए और फिर कभी वापस घर नहीं गये। हालांकि अब एक सामाजिक कार्यकर्ता और गुमशुदा प्रकोष्ठ की एक टीम द्वारा पिता को बच्चों के साथ फिर से मिला दिया गया।अशोकभाई को जब उनका 19 वर्षीय बेटा उन्हें लेने आया तो उनके आंसू छलक पड़े।

क्या था मामला


मामले में मिल रही जानकारी के अनुसार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के गिरधरपुर गांव के निवासी अशोक नारायण पत्नी की असामयिक मौत के अपने 7 और 9 साल के बच्चों के साथ रहते थे। हालांकि, पत्नी की मृत्यु के बाद, वह मानसिक रूप से टूट गये और स्वाभाव से चिडचिडे हो गये। इन सबसे बचाने के लिए उनके परिजन रोजगार की तलाश में उन्हें सूरत ले आए। यहाँ आने के बाद अशोकभाई ने टेक्सटाइल में काम करना शुरू किया। इस समय भी वह घरवालों से भी चिढ़ जाता था। एक दिन वह बिना कुछ कहे घर से निकल गया और फिर कभी नहीं लौटा।

जिगर भाई को घायल हाल में मिला शख्स


इस बीच, 18 सितंबर को, वह एक सामाजिक कार्यकर्ता जिगर रावल की मुलाकात अशोकभाई से हुई। उस समय अशोक पर्वत पाटिया में दुर्घटनाग्रस्त और घायल की स्थिति में थे। अशोक के पीठ के निचले हिस्से में चोट के कारण वह डंडे के सहारे चल रहे थे। वह परिवार को भी भूल चुका था। उन्होंने गुमशुदगी प्रकोष्ठ की महिला एवं बाल मित्र सह संयोजक मंजूबेन जैन को गृहनगर व जिले का नाम बताते हुए जानकारी दी। इसमें विजय विजयभाई पटेल व गौड़ा एसपी व आरक्षक की टीम के माध्यम से अशोकभाई के घर व बच्चों का नंबर मिला। मोबाइल नंबर पर एक कॉल से पता चला कि बच्चे सूरत में रह रहे थे।

बाप-बेटे के मिलाप से दृश्य हुआ भावुक


इसके बाद अशोकनारायण के भाई, बेटे और भतीजे उन्हें लेने पहुंचे। एक कपड़ा बाजार में पैकिंग वर्कर का काम करने वाले 19 साल का युवक अपने पिता को पहचानने में असमर्थ रहा तो न ही उनके पिता उन्हें पहचान पाए। हालांकि बाद में अशोकभाई की आंखों से आंसू छलक पड़े। बाप-बेटे की मुलाकात के बाद दृश्य बहुत भावुक हो गया। परिजनों ने बताया कि परिवार से बिछड़ने के बाद अशोक नारायण के पुना पाटिया हाईवे के पास घूमने का अंदेशा था लेकिन कभी संपर्क नहीं हो सका। अब बच्चे अपना खाना खुद बनाते हैं और अपने पिता की सेवा करते हैं।
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