सूरत : रामजी के वनवास सहित केवट प्रसंग और कैकई - मंथरा संवाद का हुआ सुंदर मंचन

सूरत : रामजी के वनवास सहित केवट प्रसंग और कैकई - मंथरा संवाद का हुआ सुंदर मंचन

रामलीला में शुक्रवार को कलाकारों ने विभिन्न दृश्यों का मंचन किया

 शहर के वेसू क्षेत्र स्थित रामलीला मैदान में चल रही रामलीला के छठे दिन शुक्रवार को कैकई- मंथरा संवाद, दशरथ संवाद, श्रीराम वनवास, केवट संवाद का मंचन हुआ। श्री आदर्श रामलीला ट्रस्ट के मंत्री अनिल अग्रवाल ने बताया कि रामलीला में शुक्रवार को कलाकारों ने विभिन्न दृश्यों का मंचन किया। जिसमें कैकई- दशरथ संवाद व राजा दशरथ से रानी कैकई द्वारा मांगे गए वचन की लीला का मंचन किया। रामलीला में जब भगवान राम को अयोध्या का राज देने की चर्चाएं आई तो रानी कैकई को उसकी दासी मंथरा ने भड़का दिया। मंथरा ने कहा कि राम तो राजस बन जाएंगे। मगर कैकई पुत्र भरत को कुछ नहीं मिलेगा। इसको लेकर रानी कैकई कोप भवन में चली जाती है और वहां जाकर रूठ कर बैठ जाती है। 


तुम कुछ भी मांग लो लेकिन राम को वनवास मत मांगो


इस बात का जब राजा दशरथ को पता चलता है तो, राजा कोप भवन जाकर रानी कैकई से उसका कारण जानते हैं। कैकई राजा दशरथ से अपने वचन मांगती है। इसके तहत कैकई दशरथ से अपने पुत्र भरत को राज गद्दी तथा राम को चौदह साल वनवास मांगती है। इसको सुनकर दशरथ बहुत दुखी होते हैं। वो कैकई से कहते हैं कि तुम कुछ भी मांग लो लेकिन राम को वनवास मत मांगो। इस पर कैकई कहती है कि तुम अपने वचन से मुकर जाओ। इस पर दशरथ कहते हैं कि ..रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई.. इसके साथ ही श्रीराम, सीता लक्ष्मण सहित वन में प्रस्थान कर जाते है।  
मंथरा ने कैकेयी की मति भरी

केवट उतराई लेने से साफ मना कर देता है


केवट भगवान श्रीराम को गंगा के उस पार छोड़ने के बदले में उनके चरण धोने की अनुमति मांगता है। रामजी के चरण धोने के बाद केवट अपना वादा निभाता है और भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण को गंगा के उस पार उतारता है। इसके आगे का भावुक प्रसंग देख दर्शकों की आंखे नम हो गई।  गंगा पार उतरने के बाद भगवान श्रीराम असमंजस में पड़ जाते है कि केवट को इसके बदले में क्या दिया जाए। इस बारे में रामजी बहुत सोचते है, तब सीताजी ने अपनी अंगुली से अंगूठी निकालकर केवट को भेंट की। 
सीताजी ने कहा कि यह वो मुद्रिका है जिसे एक बार अवध में पिताश्री ने मांगा था और मैंने यही कहा था कि ये राम नाम की अंकित मुद्रिका मेरे प्राण है, इसे दूंगी तो दुविधा में पड़ जाउंगी, इस कारण उन्हें मैं यह मुद्रिका नहीं दे पाई।
सीताजी ने इस मुद्रिका को ग्रहण करने के लिए केवट को योग्य पात्र बताया। केवट उतराई लेने से साफ मना कर देता है और कहता है कि मैया सीता के सभी आभूषण उतर गए है मैं इतना भी कठोर नहीं हूं कि बचे हुए आभूषण भी उतरवा लूं।  ट्रस्ट के उपाध्यक्ष जगत विजय तुलस्यान,जुलूस मंत्री अशोक अग्रवाल,कवि सम्मेलन मंत्री किशन अग्रवाल,आतिशबाजी मंत्री संजय जैन आदि ने आगंतुक मेहमानों का दुप्पटा से स्वागत किया।

Tags: 0