सूरत : दान करने से मिलती है मोह से मुक्ति, होते हैं कष्ट दूर : संत सुधांशुजी महाराज

सूरत :  दान करने से मिलती है मोह से मुक्ति, होते हैं कष्ट दूर :  संत सुधांशुजी महाराज

दान नहीं, बल्कि ‘दान का भाव’ है महत्वपूर्ण

विश्व जागृति मिशन सूरत मंडल द्वारा संचालित बालाश्रम (अनाथाश्रम) के लाभार्थ आयोजित दो दिवसीय विराट भक्ति सत्संग के द्वितीय सत्र में रविवार को लोक विख्यात संत सुधांशुजी महाराज ने कहा कि भगवान भाव के भूखे होते हैं भोज्य पदार्थ के नहीं। यदि मनुष्य का भाव उत्तम हो तो दान देने योग्य ना होने के बावजूद भी वह  शिखर पर रहता है। गरीबी में भी दान शीलता बनी रहे तो समझो कि भगवत कृपा है और वह स्वर्ग का अधिकारी होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही दान करने की परंपरा चली आ रही है। दान का अर्थ है- ‘देने की क्रिया’, देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना। दान करने से मिलती है मोह से मुक्ति मिलती और कष्ट दूर होते हैं। सभी धर्मों में दान क्रिया को मानव जीवन का परम कर्तव्य माना गया है। ऐसा माना जाता है कि एक हाथ से दिया गया दान हजारों हाथों से लौटकर आता है क्योंकि जो हम देते हैं, वही हम पाते हैं। हिंदू सनातन धर्म में पांच प्रकार के प्रमुख दानों का उल्लेख शामिल है- विद्या दान, भूमि दान, कन्या दान, गौ दान और अन्न दान।  ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं। दान तभी सार्थक है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाये। अगर दान देते समय दानदाता के मन में उसके बदले कुछ पाने की लालसा है, भले ही वह पुण्य की लालसा ही क्यूं न हो, तो वह दान नहीं व्यापार है। अगर वह अपनी इच्छा के विरूद्ध केवल लोकोपचार की वजह से दिया जाये, तो वह दान नहीं दिखावा है। सही अर्थों में सच्चा दान वह है, जिसे देने में दानकर्ता को आनंद की अनूभूति हो, उसके मन में उदारता का भाव हो और प्राणीमात्र के प्रति उसमें प्रेम एवं दया का भाव हो।  किन्तु जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है? गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।
महाराजजी ने पद्म पुराण के पाताल खंड के संवाद का उल्लेख करते हुए बताया कि यमराज से पूछा गया कि जिसके दरवाजे पर मौत हाथ जोड़े एवं सिर झुकाये खड़ी रहती हो और उसे लेने भगवान का रथ आती हो उसके बारे में बताये। यमराज ने कहा कि जो व्यक्ति सत्कर्म तो करता रहता है और उसके बदले में कुछ नहीं चाहता ऐसे लोगों के लिए भगवान अपना द्वार खोल देते हैं। महाराजजी ने कहा कि दिल से उपजाऊ जगह और कोई नहीं है, यहा जो बोते हो यानी विचार रखते हो वह कई गुना होकर मिलता है। इस लिए दिल में नफरत की बीज कभी न बोये।  
वीर नर्मद दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी के कान्वेंशन हॉल में भक्ति सत्संग में मौजूद श्रोतागण

 जो व्यक्ति धर्म की रक्षा करता है तो धर्म उसकी रक्षा अवश्य करता हैं। देने की आदत परिवार के प्रत्येक सदस्यों से अवश्य डलवाए। मदद करने के लिए हाथ बढे़ यह भगवान से प्रार्थना करना चाहिए।  सुख भोगने की इच्छा सबकी होती है परंतु सुखमय कार्य करना नहीं चाहते। लोग धर्म नहीं करते लेकिन धर्म का फल चाहते हैं। लोग दूसरे के साथ बुरा करते हैं, अनैतिक कार्य करते हैं, लेकिन उसका फल नहीं चाहते। कुछ लोग हैं जो भगवान से भी कानून बदलवाना चाहते हैं। अपने अंदर पवित्रता लाने की चेष्टा करना चाहिए। अहंकार शून्यता से भगवत प्रेम बढ़ता है। प्रत्येक मनुष्य को सुबह 4:00 बजे ब्रह्म बेला में उठकर दैनिक क्रिया पूजा-पाठ प्राणायाम, ध्यान, योग करना चाहिए। मन को शांति की बहुत जरूरत है। शांति से सोना एवं आनंद में जागना चाहिए। पूजा पाठ का अधिक फायदा तब होता है जब अपने इष्ट देव से कनेक्ट हो। हमेशा दाता बनने की कोशिश करें। सुबह पहले उठे तो भगवान का कार्य करें। जीवन में धर्म का बाग जरूर लगाएं ताकि धर्म की बगिया महकती रहे। द्वितीय सत्र में बतौर मुख्य अतिथि लिबायत की विधायक संगीता पाटिल,पंकज कापडिया,मनपा शासक पक्ष नेता अमित राजपूत, राजेन्द्र ठाकुर आदि मौजूद रहे।
मंडल के  पदाधिकारियों ने सामूहिक माल्यार्पण किया
 विश्व जागृति मिशन सूरत मंडल की ओर से आचार्य रामकुमार पाठक, प्रमुख गोविंद डांगरा, संरक्षक सुरेश मालाणी, डॉक्टर रजनीकांत दवे, पूरणमल सिंघल, अश्विनी अग्रवाल, रामकेवल तिवारी, इंद्रमणि चतुर्वेदी, देवीदास पाटिल, प्रबंधक राजेश ठाकर, अनिल अग्रवाल,अनिल मालानी, राजकुमार अरोड़ा, नरेश अग्रवाल, बंशी जोशी, बबलू भाई, किशोर पाटिल, सीताराम मारु, राजू भाई सहित मंडल के तमाम पदाधिकारियों ने महाराज जी का सामूहिक माल्यार्पण किया। तत्पश्चात सद्गुरु की आरती के बाद विराट भक्ति सत्संग की पूर्णाहूति हुई।
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