सूरत : मांडवी में सालों पुरानी परंपरा हुई यादगार, दूल्हन को लेने बैलगाड़ी पर निकला दूल्हा

सूरत :   मांडवी में सालों पुरानी परंपरा हुई यादगार,  दूल्हन को लेने बैलगाड़ी पर निकला दूल्हा

सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार बैलगाड़ी के साथ निकली बारात

आदिवासी चौधरी समाज में फिर दिखाई दी बरसों पुरानी परंपरा
शादियों का सीजन शुरू हो गया है। आमतौर पर दूल्हा अपनी बारात महंगी कार, लग्जरी बस में लेकर दुल्हन को लेने जाता है। लेकिन आदिवासी चौधरी समाज की बरसों पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया गया है। सूरत जिले के मांडवी के खेड़पुर गांव में एक अनोखी परंपरा देखने को मिली कि  सजी हुई बैलगाड़ी में बारात दुल्हन को लेने निकली थी। 
यहां तक ​​कि ग्रामीण क्षेत्रों में  भी बैलगाड़ी अक्सर नहीं देखी जाती है। उस समय मांडवी के गांव खेडपुर के चौधरी समाज के परिवार ने 60 साल पहले की आदिवासी परंपरा को संरक्षित करने और नई पीढ़ी को शादी से परिचित कराने का प्रयास किया है। जो सफल साबित हुआ। बैलगाड़ी और बैलों को भी सजाया गया था। साथ ही चौधरी समाज की भाषा में शादी की आमंत्रण पत्रिका (कंकोत्री) छपाई गई थी। आदिवासी समाज के प्रति ऐसी प्रथा आधुनिक समय में दुर्लभ है। शादियों में लोग लाखों रुपए खर्च करते हैं। उस समय आदिवासी परंपरा को बनाए रखने के लिए एक नया प्रयोग किया गया था।
मूल रूप से मोरीठा और अब खेड़पुर के रहने वाले दूल्हे आशुतोष चौधरी ने कहा कि हमारे जन्म से पहले और हमारे बचपन में पहले जमाने में बैलगाड़ी में बारात निकलती थी। ऐसी दिलचस्प बातें सुनकर हमें आश्चर्य होता था। जिससे  मेरा भी विचार आया कि आदिवासी समाज की पुरानी परंपरा को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को समाज की ओर प्रेरित किया जा सके।
हम प्रकृति के दर्शन करते-करते बैलगाड़ियों में शादी के गीत गाते हुए गुजर रहे थे। इस दरम्यान  बैलों के घूंघरू की आवाज से  भिन्न प्रकार की यात्रा थी। न केवल दूल्हा बल्कि बहू दिव्या चौधरी (मूल कसल, अब खेड़पुर में रहती है) को गर्व है कि बारात बैलगाड़ी में आई। यह दृष्टिकोण आज की नई पीढ़ी को संस्कृति से परिचित कराने के लिए अपनाया गया था।
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