
सूरत : पेपर फ्लावर, न्यूजपेपर डॉल के साथ-साथ स्टोन पेंटिंग की कला को शालिनीबेन साहू ने स्वरोजगार बनाया
By Loktej
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मेरी कला ने अन्य जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दिया है, जिससे मैं बहुत खुश हूं: शालिनी साहू
अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़कर, दंपति ने कला की ओर रुख किया
सूरत के परिसर में आयोजित 'हुनर हाट' में देश के विभिन्न राज्यों के कारीगरों ने अपनी कला प्रदर्शन से सूरत के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। जहां कोई पारंपरिक पेशा अपना रहा है, वहीं कुछ कारीगर 'हुनर हाट' के माध्यम से स्वरोजगार के अपने सपने को साकार कर रहे हैं। हर स्टॉल मालिक की एक अनोखी और संघर्षमय कहानी है, जिनमें से एक छत्तीसगढ़ एवं हाल महाराष्ट्र में रहती 33 साल की शालिनी साहू की है। यह युवा उद्यमी पेपर फ्लावर, न्यूजपेपर डॉल तथा स्टोन पेन्टिंग की कला को स्वरोजगार में परिवर्तित करने में सफलता हांसिल की है। साथ ही साथ अन्य जरुरतमंद महिलाओं को रोजगार देने में निमित्त बन गई हैं। पांच साल की उद्यम यात्रा आज उन्हें सफलता और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है। साथ ही परिवार को सहारा देने में इनकी अहम भूमिका रही है। खास बात यह है कि पढ़े-लिखे साहू दंपति ने अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और साथ में कला और शिल्प के संयोजन से समृद्धि प्राप्त की।
शालिनीबेन और उनके पति मुंबई के ठाणे में स्वरोजगार करते हैं। उन्होंने कहा कि "मैं एक परामर्श मनोवैज्ञानिक हूं, और मेरे पति के पास सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री है। पति की दिलचस्पी रोजी-रोटी में थी, जबकि कला और शिल्प में मेरी दिलचस्पी ज्यादा थी। कला में जीवंतता को जीवित रखने के लिए हम दोनों क्षेत्रों को मिलाने का विचार लेकर आए। इसी आइडिया के साथ हमने साल 2017 में मुंबई के वैलेंटाइन डे मार्केट से अपने सफर की शुरुआत की थी। जहां हमने अपने पायलट प्रोजेक्ट के तहत पेपर फ्लावर का 60,000 गुलाब बेचकर सफलता की ओर पहला कदम बढ़ाया। लोगों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया ने हमें नया जोश और उत्साह दिया। हमारे ग्राहकों के प्रोत्साहन और प्यार के साथ-साथ केंद्र सरकार के सहयोग से आज मैं यहां सूरत के 'हुनर हाट' में अपना स्टॉल लगाने में सक्षम हुआ। उन्होंने कहा, "सूरती भी बड़ी संख्या में मेरी कला और शिल्प वस्तुओं को खरीदकर हमारे उत्साह को बढ़ा रहे हैं।"
शालिनी आगे कहती हैं, ''मैं बचपन से ही कला से मोहित रही हूं। मुझे कैनवास पेंटिंग में भी महारत हासिल है। हालांकि मेरे पति सरकार के 'स्किल इंडिया' अभियान में काम कर रहे थे, लेकिन उन्होंने मेरे साथ अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और कला और शिल्प बनाना पसंद किया। आज पांच और महिलाएं हमारे साथ जुड़ गई हैं और आत्मनिर्भर बन गई हैं। उन्होंने गर्व से कहा, "मेरी कला के माध्यम से अन्य जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार मिल रहा है, जिससे मैं बहुत खुश हूं।"
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