सूरत : कोर्ट मीडिएशन सेन्टर के प्रयास से तीन साल से अलग रह रहा मुस्लिम दंपति एक साथ रहने पर हुआ राजी

सूरत :  कोर्ट मीडिएशन सेन्टर के प्रयास से तीन साल से अलग रह रहा मुस्लिम दंपति एक साथ रहने पर हुआ राजी

'हलाला' बाधा दूर होने के बाद दंपति फिर से एक हो गये

शहर में 'मियां बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी' की कहावत को चरितार्थ करने वाला मामला  सूरत की अदालत में सामने आया है। जिसमें व्हाट्सएप के जरिए 'तलाक' के आरोप के बाद सूरत कोर्ट मीडिएशन सेन्टर के जरिए पिछले तीन साल से अलग रह रहे एक मुस्लिम दंपति एक हो गए हैं। पति ने व्हाट्सएप के जरिए तलाक के लिए अर्जी नहीं दी है। पति ने लिखित में हलफनामा भी दिया था। इस प्रकार 'हलाला' की बाधा दूर हो गई और मध्यस्थता के प्रयासों से दंपति के घर फिर से बस गये।
उधना में रहने वाले अयूब (नाम बदल दिया गया है) का विवाह मुस्लिम शरीयत के अनुसार सैयदपुरा में रहने वाली सलमा (नाम बदल दिया गया है) से  7-5-2016 को हुआ था। वैवाहिक जीवन में  उन्हें एक पुत्री (उम्र- 3) का जन्म हुआ। शुरुआत में अच्छी तरह रहने के बाद दोनों में झगड़ा होने लगा और सलमा अपने पति का घर छोड़कर पियर चली गई। जहां से उन्होंने अधिवक्ता अश्विन जोगड़िया के माध्यम से अपने पति के खिलाफ गुजारा भत्ता और दहेज संबंधी मामले दर्ज कराए थे। वहीं वकील हीरल पानवाला ने पति की ओर से अभिभावक की अर्जी और शादी बहाली का मामला दर्ज कराया था। 
यह भी आरोप थे कि पति ने अपने मोबाइल पर व्हाट्सएप संदेश के जरिए अपनी पत्नी को 'तलाक' दिया था। बाद में सभी मामले अफवाह सामने आए।  साथ ही दोनों पति-पत्नी कोर्ट की तारीखों पर मिलने लगे और दोनों के बीच सुलह की संभावना दिखाई देने पर यह मामला सूरत मध्यस्थता केंद्र को भेज दिया गया।  मध्यस्थ नीताबेन पटेल और अधिवक्ता पानवाला और जोगड़िया के प्रयासों से दोनों फिर से एक गृहस्थी शुरू करने के लिए सहमत हुए।
कपल के सेटलमेंट के बीच 'तलाक' का मुद्दा विलेन बन गया। क्योंकि मुस्लिम कानून के अनुसार एक बार पति-पत्नी का तलाक हो जाने के बाद पत्नी को पुनर्विवाह के लिए 'हलाला' की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इन परिस्थितियों में दोनों पर संकट आ गया। हालांकि ट्रिपल तलाक सच में मंजूर हुआ है या नहीं? इस बारे में पूछताछ करने पर पति ने कहा कि उसने अपने मोबाइल में व्हाट्सएप के जरिए कोई तलाक नहीं दिया। पति  अयूब ने लिखित में हलफनामा भी दिया था। इस प्रकार 'हलाला' की बाधा को हटा दिया गया और मध्यस्थ नीताबेन और दोनों पक्षों के वकीलों के प्रयासों से दंपति के घर फिर से बस गये। आज दंपति सभी मुकदमों को वापस लेकर रह रहे हैं और छोटी बच्ची को भी माता-पिता दोनों की छत्रछाया मिल रही है।
अधिवक्ता अश्विन जोगड़िया ने कहा कि तलाक और पुनर्विवाह के मुद्दे पर मुस्लिम कानून (मुहम्मदन कानून) के प्रकरण 9 में तलाक एवं पुनः लग्न के संदर्भ में विस्तार से चर्चा की गई है। विशेष रूप से पुनर्विवाह के मामले में यह कहा गया है कि जब तलाक कानूनी है और अप्रवर्तनीय हो जाता है, यदि ऐसे पक्ष पुनर्विवाह करना चाहते हैं, तो तलाकशुदा पत्नी को कानून के अनुसार इद्दत की अवधि को पारित करना होगा। इस अवधि की समाप्ति के बाद, महिला को दूसरे पुरुष के साथ विवाह पूरा करना होता है, और फिर दूसरे पति के खुशी-खुशी तलाक लेने के बाद, वह तलाक की अवधि समाप्त होने के बाद ही पहले पति से पुनर्विवाह कर सकती है। इस प्रक्रिया को 'हलाला' कहते हैं। पुनर्विवाह की यह प्रक्रिया विवाह के दोनों पक्षों को सबक सिखाने के लिए अपमानजनक है। ताकि विवाह के पक्षकार तलाक का सहारा लेने के उचित परिणामों पर विचार कर सकें।
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