सूरत : कोरोना काल में बढ़ी एसिड गटगटाने की वारदातें, जानें क्या है विशेषज्ञ की राय

सूरत : कोरोना काल में बढ़ी एसिड गटगटाने की वारदातें, जानें क्या है विशेषज्ञ की राय

मात्र पिछले दो महीने में अकेले स्मीमेर अस्पताल में दर्ज हुये 27 केस

सहारा दरवाजा के स्मीमेर होस्पिटल के सर्जन ने एक अभ्यास किया है। सर्जन द्वारा किए इस अभ्यास में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जिससे यह साबित हो रहा है कि कोरोनावायरस के दौरान बीते दो महीने में लोगों ने एसिड और जहर पीकर आत्महत्या देने की कोशिशे ज्यादा की हैं। 5 साल पहले हर महीने एसिड पीने के 7 से 8 मामले सामने आते थे जो कि अब बढ़ गए हैं। पर बीते 2 महीने के दौरान स्मीमेर हॉस्पिटल में एसिड पीने के 27 मामले आए थे जिसमें कि 17 लोगों की मौत हो गई जबकि 10 मरीजों को छुट्टी दे दी गई। 
सरलता से मिल जाता है एसिड
एसिड प्रतिबंधित होने के बावजूद करियाणा स्टोर और अन्य दुकानों में खुलेआम बिकता है। जिसके चलते सरलता से यह लोगों को उपलब्ध हो जाता है और लोग आत्महत्या के लिए इसको पसंद करते हैं। इतना ही नहीं है सिर्फ सरलता से मिलने के कारण एसिड अटैक भी ज्यादा होता है। देश में हुए एक सर्वे के अनुसार आत्महत्या के प्रत्येक 1000 मामलों में से ढाई से 3% की मौत हो जाती है जबकि, 50 वर्ष से अधिक मरीज आजीवन अन्ननली का रास्ता पतला हो जाने सहित अन्य कई समस्या से पीड़ित हो जाते हैं। कई लोगों का आवाज चले जाता है और कुछ लोगों को बार-बार निमोनिया, तथा पाचन तंत्र के कैंसर जैसी समस्याएं होती हैं।
लंबा और खर्चीला ईलाज
स्मीमेर होस्पिटल के सर्जन डॉक्टर हरेश चौहान ने बताया कि यह उपचार खूब ही खर्चीला होता है। कई मरीज अंतिम समय में उपचार के लिए आते हैं। इसका उपचार खूब लंबा चलता है। कई बार तो यह 9 महीने से लेकर 18 महीने तक लंबा खींचा जाता है। कोरोना के दौरान ऐसे केस बढे हैं। एसिड पीने के बाद यदि मरीज बच जाता है तो उनकी जिंदगी नर्क के समान बन जाती है। पूरा परिवार आर्थिक तौर से पायमाल हो जाता है। इसके अलावा एसिड के साइड इफेक्ट इतना ज्यादा होते हैं कि मरीज मानसिक तौर से परेशान हो जाता है। स्मीमेर होस्पिटल में बीते 2 महीने मे 27 मामले सामने आए जिनमें की 17 की मौत हो गई और 10 लोगों को डिस्चार्ज किया गया है।

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