मेस्सी को देख नहीं पाने के कारण प्रशंसकों के हिंसक होने से मची अफरा-तफरी

मेस्सी को देख नहीं पाने के कारण प्रशंसकों के हिंसक होने से मची अफरा-तफरी

कोलकाता, 13 दिसंबर (भाषा) फुटबॉल के दीवानों के लिए जो जीवन का सबसे सुखद अनुभव हो सकता था, वह शनिवार को बुरी याद में बदल गया क्योंकि बड़ी रकम खर्च कर टिकट खरीदने के बावजूद हजारों प्रशंसक ने अर्जेंटीना के दिग्गज लियोनेल मेस्सी की एक साफ झलक नहीं मिल पाने से निराशा में यहां साल्ट लेक स्टेडियम के अंदर जमकर विरोध प्रदर्शन किया।

मेस्सी का विवेकानंद युवा भारती क्रीड़ांगन का बहुप्रचारित दौरा 2011 के बाद इस मैदान पर उनकी यह पहली उपस्थिति थी लेकिन यह एक अव्यवस्थित घटना बन गई। प्रशंसकों की भीड़ द्वारा सुरक्षा घेरा तोड़ने, तोड़-फोड़ और पुलिस के हस्तक्षेप से यह आयोजन फीका पड़ गया। इस कार्यक्रम को फुटबॉल के महानतम वैश्विक सितारों में से एक के उत्सव के रूप में प्रचारित किया गया था लेकिन यह पूरी तरह से अराजकता में बदल गया।

विश्व कप विजेता कप्तान मेस्सी अपने लंबे समय के साथी लुई सुआरेज और अर्जेंटीना के टीम के साथी रोड्रिगो डी पॉल के साथ सुबह करीब 11.30 बजे स्टेडियम पहुंचे। उनका वाहन मैदान के एक कोने में पार्क किया गया था।

मैदान पर उनके कदम रखते ही वह आयोजकों, मशहूर हस्तियों और सुरक्षा कर्मियों की भीड़ में घिर गए, जिससे गैलरी में बैठे सामान्य दर्शक एक झलक देखने के लिए तरसते रह गए।

मेस्सी ने मैदान पर थोड़ी दूर चहलकदमी की और ‘मेस्सी, मेस्सी’ के नारों के बीच दर्शकदीर्घा की ओर हाथ हिलाया।

प्रशंसकों को हालांकि जल्द ही एहसास हो गया कि यह फुटबॉल खिलाड़ी सुरक्षा और आमंत्रित मेहमानों के कड़े घेरे में हैं, जिससे वह गैलरी के बड़े हिस्सों से मुश्किल से दिखाई दे रहे थे। कई लोगों ने शिकायत की कि वह विशाल स्क्रीनों पर भी साफ दिखाई नहीं दे रहे थे।

प्रशंसकों की निराशा बढ़ती गयी और जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि अर्जेंटीना का यह स्टार स्टेडियम का पूरा चक्कर नहीं लगाएगा तो ‘वी वांट मेस्सी (हमें मेस्सी चाहिए)’ के नारे तेज हो गये। मेस्सी पहले से तय स्टेडियम का पूरा चक्कर लगाने की जगह बीच रास्ते से ही वापस मुड़ गए और अपने निर्धारित समय से काफी पहले ही बाहर निकाल लिए गए।

मेस्सी के समय से पहले मैदान से निकलने की खबर फैलते ही दर्शकों का गुस्सा फुट पड़ा। मैदान में बोतलें और फिर प्लास्टिक की कुर्सियां भी फेंकी गईं। प्रायोजक बैनर और होर्डिंग फाड़ दिए गए, बड़ी संख्या में सीटें तोड़ दी गईं और भीड़ ने मैदान के कुछ हिस्सों में जबरन घुसने के लिए बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश की।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बढ़ते हंगामे के बीच प्रशंसकों ने राज्य के खेल मंत्री अरूप बिस्वास और इस कार्यक्रम के आयोजक शताद्रु दत्ता की गिरफ्तारी की मांग करते हुए नारे लगाए। प्रशंसकों ने आयोजकों को इस हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम के घोर कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने यह भी कहा कि मेस्सी के बाहर निकलने के तुरंत बाद आयोजक(प्रमोटर शताद्रु दत्ता और उनकी टीम) मैदान पर दिखना बंद हो गए तो स्थिति और बिगड़ गई।

लाउडस्पीकर पर अनधिकृत व्यक्तियों को मैदान छोड़ने के लिए बार-बार की गई घोषणाओं का कोई असर नहीं दिखा और गुस्साए प्रशंसक आयोजकों और राज्य खेल विभाग के खिलाफ नारे लगाते रहे।

कुछ मिनट के बाद सैकड़ो की संख्या में दर्शक मैदान पर उतर आये। दर्शकों ने अस्थायी टेंट फाड़ दिए और वहां रखे उपकरणों को नुकसान पहुंचाया। पुलिस कर्मियों को विरोध करने वाली भीड़ के बढ़ने से स्थिति को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इससे निपटने के लिए स्टेडियम के अंदर द्रुत कार्य बल (आरएएफ) को तैनात करना पड़ा।

एक नाराज प्रशंसक अजय शाह ने कहा, ‘‘ यहां एक गिलास कोल्ड ड्रिंक की कीमत 150-200 रुपये है, फिर भी हमें मेस्सी की एक झलक भी नहीं मिली। लोग उन्हें देखने के लिए अपनी एक महीने की तनख्वाह खर्च कर चुके हैं। मैंने टिकट के लिए 5000 रुपये दिए और अपने बेटे के साथ मेस्सी को देखने आया था, नेताओं को नहीं। पुलिस और सैन्यकर्मी सेल्फी ले रहे थे और इसके लिए प्रबंधन जिम्मेदार है। पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं था।’’

अर्जेंटीना के इस स्टार खिलाड़ी को देखने के लिए 4,500 से 10,000 रुपये तक के टिकट खरीदे थे।

इस अराजकता के कारण कार्यक्रम को अचानक रोकना करना पड़ा, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान, पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कई आमंत्रित गणमान्य व्यक्ति योजना के अनुसार भाग नहीं ले पाए।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि मेस्सी को निर्धारित समय से पहले स्टेडियम से हटाने के कारण बिगड़ी लेकिन यह बेकाबू नहीं हुई।

अपनी फुटबॉल संस्कृति पर गर्व करने वाले कोलकाता के लिए टूटी कुर्सियों, फटे बैनरों और नाराज प्रशंसकों के दृश्य एक दर्दनाक कहानी बयां कर रही थी।

‘सिटी ऑफ जॉय’ में फुटबॉल प्रशंसकों के लिए जो दिन यादगार होना चाहिए था, वह किसी बुरे सपने में बदल गया।