वडोदरा के किसानों की अनोखी पहल, अब विदेशों तक पहुंचा 'फालसा' का स्वाद
गौ आधारित जैविक खेती से किया उत्पादन, श्याम उपाध्याय और कनकलता उपाध्याय ने खट्टे-मीठे फालसा को बनाया अंतरराष्ट्रीय ब्रांड
गर्मी की शुरुआत के साथ ही बाजारों में नजर आने वाला एक छोटा सा फल फालसा न केवल स्वाद और ठंडक से भरपूर है, बल्कि अब यह वडोदरा के किसानों की मेहनत से अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक भी पहुंच चुका है। वडोदरा जिले के सावली-भादरवा मार्ग पर स्थित वांकानेर गांव के रंगतीर्थ फार्म में श्याम उपाध्याय और कनकलता उपाध्याय द्वारा की गई जैविक खेती से उत्पादित फालसा की मांग अब देश-विदेश में बढ़ती जा रही है।
सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी श्याम उपाध्याय ने वर्ष 2020 में खेती की शुरुआत की थी। शुरुआत में 300 पौधों से 70–80 किलो फालसा का उत्पादन हुआ, लेकिन अब मांग को देखते हुए वे 900 और पौधे लगाने जा रहे हैं। अगले वर्ष गर्मी के मौसम में वे कुल 1200 पौधों से लगभग 500 किलो फालसा का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं। यह सारी खेती 100 प्रतिशत जैविक है, जिसमें गाय के मूत्र और गोबर से बनी खाद और प्राकृतिक दवाइयों का उपयोग किया गया है।
यह फालसा न केवल वडोदरा और गुजरात में, बल्कि अहमदाबाद, सौराष्ट्र, बैंगलोर, हैदराबाद, नागपुर, उदयपुर से लेकर कनाडा, लंदन और अमेरिका तक भेजा जा चुका है। अब तक 42,000 रुपये की कमाई हो चुकी है, जिसमें केवल 10,000 रुपये का खर्च आया है। इससे पता चलता है कि जैविक और गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की बाजार में कितनी ज्यादा मांग है।
फालसा की खेती विशेष रूप से अप्रैल, मई और जून के पहले सप्ताह तक होती है। इस बीच उपाध्याय दंपती विशेष 100 प्रतिशत जैविक फालसा पल्प भी बनाते हैं, जिससे लोग पूरे साल इस फल का स्वाद ले सकें। उनका दावा है कि इतना बड़ा और शुद्ध फालसा कहीं और नहीं मिलता।
फालसा सिर्फ स्वाद में ही नहीं, सेहत में भी अद्वितीय है। यह विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत है, खून साफ करता है, एसिडिटी कम करता है, शरीर को ठंडक देता है और इसके विशेष रसायन कैंसर से बचाव में भी मदद करते हैं। दानेदार चीनी के साथ मिलाकर बनाए गए फालसा के शरबत से शरीर को तुरंत ताकत मिलती है।
श्याम उपाध्याय और कनकलता उपाध्याय की यह पहल न केवल किसानों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि परंपरागत फल भी जैविक खेती और नवाचार के जरिए वैश्विक ब्रांड बन सकते हैं।