सूरत : तलाक याचिका खारिज, पत्नी को मानसिक रूप से बीमार बताने वाले पति को मिला कोर्ट से झटका
कोर्ट ने माना पत्नी ने अपने सभी वैवाहिक कर्तव्यों को निभाया, बल्कि खुद बनी मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना का शिकार
सूरत। आणंद फैमिली कोर्ट ने एक पति द्वारा अपनी पत्नी के विरुद्ध दायर तलाक की याचिका को खारिज करते हुए उसे 5,000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश सुनाया है। पति ने अपनी याचिका में पत्नी पर मानसिक बीमारी, दुर्व्यवहार और व्यभिचार जैसे गंभीर आरोप लगाए थे, जिन्हें कोर्ट ने बेबुनियाद मानते हुए खारिज कर दिया।
हितेश गोस्वामी (परिवर्तित नाम), जो आणंद में रहते हैं, ने 2013 में सूरत की राधिका गोस्वामी (परिवर्तित नाम) से विवाह किया था। उनका एक बेटा भी है, जो फिलहाल अपनी मां के साथ रह रहा है। हितेश ने तलाक की याचिका दाखिल कर पत्नी पर आरोप लगाया कि वह मानसिक रूप से बीमार है, शादी से पहले आत्महत्या की कोशिश कर चुकी है, अलग रहना चाहती है और कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार करती है।
पत्नी की ओर से अधिवक्ता प्रीति जिग्नेश जोशी ने कोर्ट में तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल ने एक आदर्श पत्नी और बहू के रूप में सभी कर्तव्यों का पालन किया। बावजूद इसके उसे ससुराल में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। उन्होंने बताया कि शादी के बाद पत्नी पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उसे निरंतर अपमानित किया गया और कामचोर कहा गया।
पत्नी को डिनर पार्टी में जाने से रोका गया और उसके चरित्र पर सवाल उठाए गए। बीमार होने पर इलाज तक नहीं कराया गया। घरेलू खर्च भी पत्नी को अपने मायके से वहन करने के लिए मजबूर किया गया। पति और सास-ससुर ने उसे घर से निकाल दिया और घर में घुसने पर रोक लगाई। यहां तक कि ससुर की मौत का दोष भी पत्नी पर मढ़ा गया।
आणंद फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस. डी. मेहता ने कहा कि पति कोई भी ठोस प्रमाण नहीं दे सका कि पत्नी मानसिक रूप से बीमार थी या उसने किसी भी रूप में वैवाहिक संबंधों का उल्लंघन किया।
वहीं कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से पाया कि पत्नी और उसका बेटा मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के शिकार रहे हैं और पति व उसके परिवार ने ही उसे त्यागा है।
कोर्ट ने तलाक याचिका खारिज कर 5,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया है। महिला की ओर से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर शिकायत की पुष्टि हुई।
यह फैसला न केवल न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि महिलाओं पर लगाए गए झूठे और अपमानजनक आरोपों को कोर्ट हल्के में नहीं लेती। यह केस अन्य पीड़ित महिलाओं के लिए भी साहस और न्याय की मिसाल बन सकता है।