सूरत के कामरेज तालुका के उंभेल गांव में मधुमक्खी पालन केंद्र बना आत्मनिर्भरता का मॉडल
सूरत के डभोली क्षेत्र के विनोदभाई नकुम ने हीरा उद्योग छोड़ मधुमक्खी पालन से पाई नई पहचान
मधुमक्खियां जैव विविधता के संरक्षण, पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने और प्रदूषण कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पर्यावरणीय प्रणाली में मधुमक्खियों के महत्व और उनके संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है।
इस दिन को मनाने का प्रस्ताव स्लोवेनिया के मधुमक्खी पालकों के संगठन के नेतृत्व में 20 मई 2017 को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष रखा गया था, जिसे दिसंबर 2017 में सदस्य देशों ने मंजूरी दी। पहला विश्व मधुमक्खी दिवस 20 मई 2018 को मनाया गया। यह दिन आधुनिक मधुमक्खी पालन तकनीक के जनक माने जाने वाले एंटोन जान्सा के जन्मदिवस की स्मृति में मनाया जाता है, जिनका जन्म 20 मई 1734 को स्लोवेनिया में हुआ था।
भावनगर जिले के छोटे-से गांव नाना-आसराना से ताल्लुक रखने वाले और लंबे समय से सूरत के डभोली क्षेत्र में बसे, तथा सूरत जिले के कामरेज तालुका के उंभेल गांव में मधुमक्खी पालन व्यवसाय कर रहे 45 वर्षीय विनोदभाई रामजीभाई नकुम ने इस क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई है।
पहले हीरा उद्योग से जुड़े विनोदभाई का जीवन 2011 में हरियाणा की यात्रा के दौरान एक मधुमक्खी पालन केंद्र के दौरे से पूरी तरह बदल गया। महज 25 बॉक्स से शुरू किया गया काम आज 1100 से अधिक बॉक्स तक पहुँच चुका है, जिससे सालाना 30 से 35 टन शुद्ध शहद का उत्पादन होता है और अच्छी-खासी आमदनी होती है।
विनोदभाई नकुम बताते हैं कि जब उन्होंने हीरा उद्योग छोड़ा और सिर्फ 25 बॉक्स से मधुमक्खी पालन शुरू किया, तो कई लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया और कहा कि वे मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने किसी की परवाह किए बिना अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया। 2011 में शुरुआत करने के बाद धीरे-धीरे बॉक्स की संख्या बढ़ाई और 2019 में नर्मदा-सूरत हनी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नाम से एक FPO शुरू किया। इसके बाद तीन मित्रों ने मिलकर श्री अर्पित ऑर्गेनिक कंपनी की स्थापना की, जो अब 1100 से अधिक मधुमक्खी बॉक्स का संचालन करती है और सालाना 35 टन शहद का उत्पादन करती है। अलग-अलग फ्लेवर के शहद तैयार कर बाजार में बेचे जाते हैं। उंभेल स्थित केंद्र से शहद बेचकर कंपनी को सालाना 30 लाख रुपये की
आय होती है।
उन्होंने आगे बताया कि पिछले 14 वर्षों से वे मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं और सरकारी विभागों के सहयोग से महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों और किसानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं, ताकि मधुमक्खी पालन के प्रति लोगों की रुचि बढ़े। मधुमक्खी केवल शहद बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि कृषि उत्पादन बढ़ाने, प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने और पर्यावरण की रक्षा के लिए एक अद्भुत श्रृंखला है।
विनोदभाई ने 9 से अधिक जिलों में 1500 किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया
विनोदभाई ने DRDO के साथ MoU कर नवसारी, तापी और सूरत जिले की 180 महिला सखी मंडलों को प्रशिक्षण दिया है। साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र, बागवानी विभाग और खादी ग्राम उद्योग के साथ मिलकर सूरत, भरूच, नर्मदा, छोटा उदैपुर, पाटण, कच्छ, भावनगर सहित 9 से अधिक जिलों में 1500 से अधिक किसानों और महिलाओं को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण प्रदान किया है। इसके अलावा, विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत मधुमक्खी बॉक्स की खरीद, स्टार्टअप सहायता आदि के लिए मार्गदर्शन भी किया जाता है। उन्होंने कई लोगों को सरकारी सहायता दिलवाकर मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू करने में मदद की है।
ऋतु अनुसार विभिन्न फ्लेवर के शहद तैयार कर बेचे जाते हैं
विनोदभाई कहते हैं कि जैसे धरती पर मौसम अनुसार अलग-अलग फसलें बोई जाती हैं, वैसे ही मधुमक्खियां विभिन्न फूलों का रस लेकर अलग-अलग स्वाद (फ्लेवर) का शहद बनाती हैं, जैसे अजवाइन, सौंफ, तिल आदि। आमतौर पर मधुमक्खियों से भरे बॉक्स जमीन पर रखे जाते हैं और इटालियन मधुमक्खियों द्वारा 20 से 22 दिनों में शहद तैयार हो जाता है। इसके बाद उसे फिल्टर कर पैकिंग करके उंभेल मध केंद्र से बिक्री की जाती है।