वडोदरा : प्रधानाध्यापक रमणभाई लिम्बाचिया ने जलालपुरा विद्यालय को बनाया पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला

मियावाकी जंगल, औषधीय वन और आम की बगान से स्कूल को बनाया आत्मनिर्भर, बच्चों को दी प्रकृति प्रेम की प्रेरणा

वडोदरा : प्रधानाध्यापक रमणभाई लिम्बाचिया ने जलालपुरा विद्यालय को बनाया पर्यावरण संरक्षण की पाठशाला

पादरा तालुका के जलालपुरा प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक रमणभाई लिम्बाचिया ने शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण को एक सूत्र में पिरोते हुए एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है। बच्चों को पाठ्यपुस्तकों से आगे ले जाकर उन्होंने उन्हें प्रकृति का पाठ पढ़ाया है जीवित, प्रासंगिक और प्रेरणादायी।

प्रधानाध्यापक लिम्बाचिया ने विद्यालय परिसर में 600 आम के पेड़ों का बाग लगाया है, जिसकी उपज से मिलने वाली आय से स्कूल के छात्रावास में शौचालय व स्नानघर जैसी सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। इस प्रकार विद्यालय धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बन रहा है। उनके नेतृत्व में विद्यालय में जापानी मियावाकी पद्धति से तैयार 3000 से अधिक पेड़ों का कृत्रिम जंगल राज्य में अपनी तरह का पहला है। यह जंगल न केवल छात्रों को प्राकृतिक अनुभव देता है, बल्कि पक्षियों, जानवरों और अन्य जीव-जंतुओं के लिए भी सुरक्षित आवास का कार्य करता है।

वन औषधीय उद्यान में 50 से अधिक औषधीय पौधों को उगाकर विद्यार्थियों को उनके उपयोग और महत्व की जानकारी दी जा रही है। ये गतिविधियां शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्यों और जैविक विविधता के प्रति जागरूकता को भी सशक्त करती हैं। रमणभाई हर वर्ष अपना जन्मदिन स्कूली बच्चों के साथ पौधारोपण कर मनाते हैं। पिछले वर्ष 158 पेड़ लगाकर 58वां जन्मदिन मनाया गया था। पर्यावरण दिवस से लेकर छात्रों या स्टाफ के जन्मदिन तक, हर अवसर हरियाली के जश्न में बदल दिया जाता है।

रमणभाई का मानना है कि बच्चों को प्रकृति के बीच रहना और उसका संरक्षण करना सिखाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उनका यह समर्पण केवल एक शिक्षक की भूमिका नहीं निभाता, बल्कि वह एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में भी समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं। उनका कार्य यह साबित करता है कि यदि स्कूल शिक्षा के साथ-साथ प्रकृति और जीवन के मूल्यों की शिक्षा दे, तो वह आने वाली पीढ़ी को न केवल शिक्षित बल्कि संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक भी बना सकती है।

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