वडोदरा : रेतीली मिट्टी में हरियाली की मिसाल, वाघपुरा की उर्मिलाबेन ने रेत से रचा सब्जियों का संसार
प्राकृतिक खेती से लाखों की कमाई, माही नदी किनारे की बंजर भूमि को बनाया उपजाऊ, महिला किसान बनी प्रेरणा का स्रोत
जहां अधिकतर लोग रेतीली मिट्टी को खेती के लिए अनुपयोगी मानते हैं, वहीं वाघपुरा गांव की उर्मिलाबेन जगदीशभाई परमार ने माही नदी के किनारे की उसी जमीन पर प्राकृतिक खेती कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। बीते चार वर्षों में उन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि कठिन परिस्थितियों में भी सृजन और सफलता संभव है।
वाघपुरा गांव की रेतीली मिट्टी में खेती की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन उर्मिलाबेन ने अपनी मेहनत, धैर्य और नवाचारी सोच के बल पर इसे उपजाऊ बना दिया। पहले मिट्टी की खुदाई कर उसे गोबर से पोषित किया गया, फिर रासायनिक खादों के बजाय प्राकृतिक विधियों से खेती शुरू की गई।
वर्तमान में उर्मिलाबेन भिंडी, करेला, खीरा और ककड़ी जैसी मांग में रहने वाली सब्जियों की खेती कर रही हैं। उनकी उपज को वडोदरा और नाडियाड जैसे प्रमुख बाजारों में बेचा जाता है, जिससे वे हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रही हैं।
उर्मिलाबेन को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) और सामुदायिक निवेश निधि (CIF) से वित्तीय सहायता मिली, जिससे उन्होंने कृषि उपकरण खरीदे और वैज्ञानिक तरीकों से प्राकृतिक खेती की तकनीकें अपनाईं। नदी किनारे खेती के अपने फायदे हैं, पानी की उपलब्धता, रसायन मुक्त उत्पादन, और ताजा, पौष्टिक सब्जियां। उनकी खेती न सिर्फ उनके परिवार को समृद्ध बना रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य जागरूकता में भी योगदान दे रही है।
आज उर्मिलाबेन न सिर्फ एक सफल महिला किसान हैं, बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया है कि नदी की रेत में भी खेती और कमाई की अपार संभावनाएं छिपी हैं। उनकी यह कहानी अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई है।