वडोदरा : ब्रेन ट्यूमर को हराकर गांव में फैलाया प्राकृतिक खेती का उजियारा
पादरा के लोला गांव के सरपंच महेशभाई पढियार ने बीमारी को मात देकर अपनाई प्राकृतिक खेती, बने किसानों के लिए प्रेरणा
वडोदरा जिले के पादरा तालुका के लोला गांव के सरपंच और किसान महेशभाई पढियार ने ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी को मात देकर जीवन में नई दिशा पाई और अब वे गांव में प्राकृतिक खेती की अलख जगा रहे हैं। महज 35 वर्ष की उम्र में उन्होंने न केवल अपने स्वास्थ्य को फिर से पाया, बल्कि अपने अनुभव को गांव की भलाई के लिए समर्पित कर दिया।
महेशभाई का जीवन एक समय गंभीर संकट से जूझ रहा था। उन्हें लगातार बीमारियों और दवाओं से जूझना पड़ता था। डॉक्टरों के पास दिन में कई बार जाना और दवाइयों का निरंतर सेवन उनके जीवन का हिस्सा बन गया था। इसी दौरान उन्होंने खुद से सवाल किया, “क्या हमारी बीमारी का संबंध हमारे भोजन से नहीं है?” इस आत्ममंथन ने उन्हें प्राकृतिक खेती की राह दिखाई।
सचिनभाई पटेल के मार्गदर्शन और कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) के प्रशिक्षण से उन्होंने 2012 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। उन्होंने जीवामृत, घन जीवामृत और वर्मी खाद जैसे पारंपरिक जैविक संसाधनों को अपनाकर अपने खेतों में संतुलन और उत्पादकता का नया अध्याय लिखा।
आज महेशभाई सिर्फ खेती नहीं करते, बल्कि जैविक उत्पादों को ग्रामीण किसानों को कम कीमत में उपलब्ध भी कराते हैं। वे सरगवा, बाजरा, गेहूं, भिंडी, देसी खीरा, हल्दी, अमरूद और आम जैसी कई फसलों की खेती करते हैं और सालाना लगभग तीन लाख रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं। उनका खेत अब केवल फसल का केंद्र नहीं, बल्कि एक मॉडल प्रशिक्षण स्थल बन चुका है।
लोला, मजातन, संधा, चित्रल और चोकरी जैसे पांच गांवों के 20 से 25 किसानों को उन्होंने "किसान मास्टर" के रूप में प्रशिक्षित किया है और महिला सखी मंडलों को भी इस आंदोलन में शामिल किया है।
महेशभाई का कहना है, “जब हमारा भोजन प्राकृतिक खेती से आने लगा, तो हमारा पूरा परिवार स्वस्थ हो गया। अब हम शायद ही कभी बीमार पड़ते हैं।”
महेशभाई पढियार का संघर्ष और समर्पण न केवल उनकी व्यक्तिगत विजय की कहानी है, बल्कि वह उन सभी के लिए प्रेरणा हैं जो बीमारियों, चुनौतियों और विषम परिस्थितियों के बावजूद समाज के लिए कुछ सकारात्मक करना चाहते हैं।