सूरत : शहरवासियों का रुख वैदिक होली की ओर, गोबर के कंडे की एडवांस बुकिंग

पेड़ों को कटने से बचाने के साथ गायों की भी मदद कर सकते हैं

सूरत : शहरवासियों का रुख वैदिक होली की ओर, गोबर के कंडे की एडवांस बुकिंग

लोग अब पर्यावरण  के प्रति जागरूक हो रहे हैं और त्योहारों को भी पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर मना रहे हैं। होली के त्योहार के लिए वैदिक होली दहन का क्रेज देखने को मिल रहा है। शहर में लकड़ी की नहीं बल्कि गोबर से बने गोबर के कंडे से होलिका दहन की मांग बढ़ गई है। इस साल सूरत में एक हजार से ज्यादा जगहों पर वैदिक होली जलाई जाएगी। जिसके लिए 80 टन (80 हजार किलो) गोबर स्टीक (गौ-काष्ट) की एडवांस बुकिंग भी हो चुकी है। यह गौ-काष्ठ लकड़ी से सस्ती होती है।

सूरत के पांजरापोल में मशीन से गोबर की लकड़ियां (गौ-काष्ट)बनाई जाती हैं। गौ-काष्ठ गाय के गोबर को इकट्ठा करके और अपशिष्ट चारे का उपयोग करके उन्नत मशीनों से बनाया जाता है। हर साल देखा जाता है कि लोग होलिका दहन पर लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। जिसके कारण बड़ी संख्या में पेड़ भी काटे जाते हैं। लेकिन वैदिक होली में लोग लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बने उपलों को जलाकर वैदिक तरीके से होली मनाने के लिए आगे आए हैं।

वहीं इस आय से पांजरापोल की गायों को भी मदद मिलेगी। इस वर्ष सूरत की विभिन्न समाजों द्वारा 1000 से अधिक स्थानों पर वैदिक होली जलाई जाएगी। इसके लिए लोगों ने विभिन्न गौशालाओं में गौ-स्टीक की एडवान्स बुकिंग भी कर ली है।

पंजरापोल के महाप्रबंधक अतुलभाई वोरा ने कहा, हम पिछले 6 महीने से गाय के गोबर उपले और गौ काष्ट बना रहे हैं और पिछले 3 साल से इसकी शुरुआत की है। जिसमें हमने पहले साल 35 से 40 टन, पिछले साल 60 टन से ज्यादा और इस साल 80 टन से ज्यादा उत्पादन किया है। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता के कारण इसकी मांग भी काफी बढ़ गई है।

आगे बताया कि वैदिक होली में गाय के गोबर से होली जलाने से पर्यावरण भी शुद्ध होता है। यदि गाय के गोबर से बने काष्ट का उपयोग किया जाए तो वातावरण में मौजूद वायरस भी नष्ट हो जाते हैं। इस गोबर की छड़ी की कीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो लकड़ी की कीमत की तुलना में सस्ती है। इसके अलावा हम पेड़ों को कटने से बचा सकते हैं और गायों की भी मदद कर सकते हैं।

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