कमजोर कपड़ा ग्राहकी ने प्रोसेसिंग मिलों की चिमनियों के धुएं की आंच मंद कर डाली, प्रोसेसरों ने विगत 15 वर्षों में ऐसा बुरा दौर नही देखा!

कमजोर कपड़ा ग्राहकी ने प्रोसेसिंग मिलों की चिमनियों के धुएं की आंच मंद कर डाली, प्रोसेसरों ने विगत 15 वर्षों में ऐसा बुरा दौर नही देखा!

आयातित कोल की दलाली में हाथ काले, सिंडिकेट से बढ़ गई 80-90 प्रतिशत दरें, कई केमिकल किस्मों के भावों में पिछले 6 माह में दोगुनी -तिगुनी दर से उछाला

कपड़ा बाजार में बौने कारोबार ने प्रोसेसिंग मिलों के प्रबंधकों की हालत खराब डाली है, स्थिति यह हैं कि कपड़ा प्रोसेसिंग इकाइयों की चिमनियों से उगले जाने वाला धुंआ भी मंद पड़ता जा रहा हैं। इस वजह से टेक्सटाइल्स मिलें इन दिनों बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही है। भास्कर सिल्क मिल्स प्रा, लि के श्री सौरव टिबड़ेवाल के अनुसार उन्होंने पिछले 15 वर्षों में कपड़ा प्रोसेसिंग मिलों की इतने बुरे हालात नही देखे। 
सौरव टिबड़ेवाल के अनुसार वह 15 वर्ष अपने अनुभव से बताते है, कपड़ा प्रोसेसिंग इकाइयों की ऐसी दुर्गति तो सम्भवत पिछले 50 वर्षों में भी नही हुई होगी। श्री वासुदेव प्रोसेसिंग प्रा लि के चेयरमैन श्री कृष्णा पाटोदिया ने बताया कि कपड़ा व्यापारियों ने वर्ष 2020 में ऑक्टोबर से फरवरी के दौरान कारोबार भरपूर किया तो उनके कोरोना की पहली लहर में मार्च से लेकर सितम्बर माह तक कि अवधि में प्रभावित हुए व्यापार-व्यवसाय व उठाए गए घाटे की अलबत्ता क्षतिपूर्ति हो गई। जब फरवरी-मार्च में अगले वैवाहिक सीजन की तैयारी हेतु नए डिजाइन, नए पेटेंट की साड़ियां, ड्रेस मटेरियल्स, लहंगे, वेश, शरारा, ब्लाउज, दुपट्टा आदि तैयार किए ही थे कि कोरोना की द्वितीय लहर ने दस्तक दे दी और देखते ही देखते कोरोना का कहर देश भर के अनेक राज्यों में इतना बरपा कि व्यवसाहियों को कारोबार की फिक्र कम व अपनी व परिवार जनों की जान बचाने की चिंता ज्यादा होने लगी। 
देखते ही देखते कोरोना ने भयंकर रूप धारण कर दिया और वर्ष 2021 के तीन माह तो कोरोना की द्वितीय लहर के भेंट चढ़ गए, और ये तीन माह कपड़ा प्रोसेसरों के आधे वर्ष की कमाई देने वाले या यूं कहें कि पूरे वर्ष की बैलेंसशीट को सुधारने के होते हैं। क्योंकि विवाह-शादियों की मुख्य सीजन मार्च से जुलाई तक की होती है, हालांकि वैवाहिक सीजन का एक सत्र नवम्बर से फरवरी तक का भी होता है , सिर्फ आधे जुलाई से ऑक्टोबर तक के साढ़े तीन- चार माह में हिन्दू समाज में विवाह मुहूर्त थम जाते हैं तो ये कारोबारी मंदी के दिन होते हैं। अतः  वर्ष 2021 में जब कोरोना की द्वितीय लहर चली व आंशिक लॉक डाउन लगा तो पुलिस प्रशासन के निर्देशानुसार सूरत शहर के विभिन्न टेक्सटाइल्स मार्केटों को बंद करना पड़ा व मार्केट खुले भी तो विभिन्न शर्तो के साथ, अतः देशवरी मंडियों से ग्राहकों का आना थमा सा रहा। 
इस कारण कपड़ा व्यवसाय पूरी बड़े पैमाने पर प्रभावित रहा और जो भी देशावरों से थोड़े बहुत ऑर्डर आते वे वॉट्सऐप, वीडियो कॉलिंग , मोबाइल व मेल आदि से उन्हीं व्यवसाहियों व उत्पादकों के पास आते जो क्वालिटी किंग माने जाते हैं। गगन सिल्क मिल्स के प्रबंधक श्री प्रकाश पोरवाल के अनुसार आंशिक लॉक डाउन अनलॉक जरूर हुआ है लेकिन व्यवसायी दुकानों पर जा कर बेरंग घर लौटने पर मजबूर हो रहे हैं। कारण दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, आंध्रा, तेलंगाना, कर्नाटका आदि  सभी राज्यों में कोरोना का कहर बड़े पैमाने पर बरपा है। अतः वहां अभी भी अनेक पाबंदियां लागू है, इस वजह से साउथ की ग्राहकी पूरी तरह थमी रही।
ये सर्व विदित है कि दक्षिण भारत के अधिकांश राज्य कपड़े के बड़ी खपत के केंद्र माने जाते हैं, जहां कपड़ा बहुत बड़ी तादाद में बिकता है व पड़ोसी देश श्रीलंका भी तामिलनाडु राज्य के धनुषकोडी सीमा से कपड़े की वेध-अवैध बड़े रूप से चालानी होती हैं। तमिलनाडु की व्यापारिक एसोसियेशनें तो सरकार व पुलिस प्रसाशन से गुहार लगा रहा है कि टेक्सटाइल्स मार्केट अब प्रारम्भ करने की इजाजत दें। हाल ही में तमिलनाडु मर्चेंट एसोसियेशन के सेक्रेटरी अशरफ तैय्यब ने सरकार से मांग की है टेक्सटाइल्स हब के रूप में जाने वाले मदुराई शहर में लगभग 4 हजार खुदरा व थोक कपड़े की दुकानें लंबे समय से बंद पड़ी है। अतः उन्हें खोलने की इजाजत दें।
तमिलनाडु में बंद के कारण कपड़ा व्यापार चौपट हो गया तो विधानसभा चुनावों के दौरान चुनावी सभाओं में उमड़ी भीड़ ने पश्चिम बंगाल में कोरोना को आमंत्रित कर दिया और इस महामारी ने बड़े रूप में बंगाल के शहरों कस्बों में कोरोना फैलाया। इस वजह से बंगाल की बड़ी ग्राहकी मार खा गई। गौरतलब है कि बंगाल सीमा से वेध-अवैध रूप से बड़ी तादाद में सूरत उत्पादित व अन्य उत्पादन केंद्रों का कपड़ा चालान होता हैं।  श्री प्रकाश पोरवाल बताते हैं कि ये ही वजह है कि आर्ट सूरत में कपड़ा प्रोसेसरों के पास अभी भी 25 प्रतिशत से ज्यादा काम काज नही है, वो भी अच्छे नेटवर्क वाले प्रोसेसर के पास ही इतना कामकाज है।
पूरी वैवाहिक सीजन फेल हो गई
कपड़ा आढ़तिया श्री अरुण पाटोदिया के अनुसार जनवरी से मार्च माह के दौरान सूरत के कपड़ा उत्पादकों ने वैवाहिक सीजन की जो तैयारियां की थी वो धरी की धरी रह गई। कारण जो माल पहुंचा वो बिक्री में नही आ पाया, मार्च माह तक जो बिक्री हुई वो हो गई, लेकिन अप्रेल, मई  व जून माह जो वैवाहिक ग्राहकी का पीक सीजन माना जाता है उस सीजन में कपड़ा स्टॉक होने के बावजूद व्यापारी कपड़ा बेच नही पाए। जबकि ग्राहकी भरपूर थी कारण अक्षय तृतीया के त्योहार व आस-पास भरपूर शादियां थी, कम खर्च में शादियां सम्पन्न हो जाने से वैवाहिक मुहूर्तों पर बेशुमार शादियां हुई। 20 जनो की उपस्थिति और एक समय सिर्फ दूल्हा दुल्हन व परिवार के चुनिंदा सदस्यों के साथ शादियां सम्पन्न हुई। स्थिति यह थी कि राजस्थान मध्यप्रदेश में शादी विवाहों की सीजन में फैंसी व वर्क वाली साड़ियां, लहंगे, वेश, ब्लाउज, ओढ़ने की इतनी भयंकर मांग थी कि महिलाओं आदि ने बन्द शटर में दुकानों पर कपड़े का चयन किया। लेकिन पुलिस प्रशासन ने शटर खुला कर ग्राहकों को बिना कपड़ा खरीदे घर भेज दिया व दुकानदार पर हजारों का जुर्माना लगा कर दुकान सील कर दी।
राजस्थान मध्यप्रदेश में ऐसे सैकड़ों दुकानों को सील करने की खबरें हैं, कपड़ा व्यापारियों ने अपने घरों, व दूर दराज खेतों तक में कपड़े का स्टॉक रख कर ग्राहकों को बुला कर कपड़ा बेचा। लेकिन वहां भी पुलिस आ धमकी, अब सूरत के व्यापारियों के लिए दिक्कत ये है कि मंडियों में वैवाहिक सीजन का जो कपड़ा भेजा गया था वो अगर नही बिक पाया तो अब नवम्बर में शादियों की सीजन तक वो कपड़ा सम्भालना पड़ेगा। अगर बिक भी गया तो व्यापारी पेमेंट विलम्ब से देने हेतु पुलिस प्रशासन आदि के अनेक उदाहरण देगा। कुल मिला कर अप्रेल, मई, जून के शेष दिनों की वैवाहिक ग्राहकी बेरंग चली गई। जुलाई माह में कुछ शादियां है तो इस सीजन के कुछ व्यापार हो पायेगा।
कुछ मिलों के पास मजदूर सरप्लस तो कहीं मजदूरों की कमी
कोरोना की सेकेंड वेव में मजदूरों का अपने गांवों शहरों की और इतने बड़े पैमाने पर पलायन नही हुआ जितना गत वर्ष कोरोना की पहली लहर में हुआ था। गगन सिल्क मिल्स के श्री प्रकाश पोरवाल के अनुसार इस बार जो भी मजदूर अपने गृह नगरों की और गए वे अतिशीघ्र वापस लौट कर भी आ गए है कारण रेल, बस हवाई जहाज आदि आवागमन के साधन मौजूद थे। दूसरा अपने गृह नगर में भी जाकर भी उन्हें रोजगार की तलाश थी जो कि वहां अलबत्ता कम अवसर प्राप्त थे। जिस कार्य में वे दक्ष है वो जॉब वहां उपलब्ध नही था। गत वर्ष तो सम्पूर्ण देश में सख़्ती के साथ लॉकडाउन था, लेकिन इस बार अनेक राज्यों में आंशिक लॉक डाउन था, और मजदूरों के अपने गृह नगर की और कम संख्या में जाने व जाकर जल्दी लौट आने की सबसे बड़ी वजह इस बार देश के अधिकांश राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के केस बड़े पैमाने पर बढ़े थे। अतः अधिकतया तो श्रमिक गए ही नही और जो श्रमिक गए वे अपने परिजनों की कुशल क्षेम पूछ कर जल्दी सूरत लौट आये। श्री पोरवाल के अनुसार अब जब टेक्सटाइल्स मार्केटों में ग्राहकी का सर्वथा अभाव है तो मिलों को जॉब कहां से मिल पायेगा? 
 
अतः अब मिलें दिन की सिंगल शिफ्ट में इस लिए चलाई जा रही है ताकि श्रमिकों आदि का पगार चुकाया जा सके। श्री पोरवाल के अनुसार प्रतिदिन श्रमिक आकर पूछ रहे हैं कि मिल में कोई जगह खाली हो तो वे तैयार है। लेकिन जॉब वर्क नही आने से पहले से मौजूद मजदूरों को बैठे बैठे भी रोजगार देना पड़ रहा हैं। दूसरी और भास्कर सिल्क मिल प्रा लि के श्री सौरव टिबड़ेवाल का कहना है कमजोर कामकाज के बावजूद आज भी प्रोसेसिंग मिलों में श्रमिकों का अलबत्ता अभाव हैं। दूसरी और पॉवरलूमस कारखानों में मजदूरों की कमी नजर आ रही है। जानकारों के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर से ज्यादा घातक थी, लेकिन इस बार रोजगार के अवसर कम ही सही लेकिन मौजूद थे।  गत बार तो ट्रकें, बसें, ट्रेनें, हवाई जहाज व प्राइवेट वाहन सारे बन्द थे जबकि इस बार कम-ज्यादा जो भी हो उपलब्ध थे। प्रशासन की सख्ती से गत वर्ष श्रमिकों को ही नही बल्कि व्यवसाहियों आदि को भी घरों में रहना पड़ा था। जबकि इस बार काफी राज्यों में आंशिक लॉक डाउन की वजह से खुला वातावरण था।
किश्तों में हो गई कलर केमिकल के भावों में 30 से 35 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी
गत वर्ष के दिसम्बर माह से इस वर्ष मार्च माह यानी कोरोना की द्वितीय लहर में कलर केमिकल के भावों में 5-10 प्रतिशत की दर से तेजी पनपी और देखते ही देखते ये कुल तेजी 30 से 35 प्रतिशत तक की हो गई। श्री वासुदेव प्रोसेसिंग प्रा लि के प्रबंधक श्री कृष्णा पाटोदिया के अनुसार कोरोना के तीन चार माह में भाव भले ही नही बढ़े हो लेकिन 2020 के अंत में  व वर्ष 2021 के जनवरी-फरवरी माह के दौरान ये भाव वृद्धि 5-10 प्रतिशत की दर से बढ़ते बढ़ते गत वर्ष के समक्ष 30 से 35 प्रतिशत तक दर्ज हो गई है। कृष्णा पाटोदिया के अनुसार जो केमिकल गत वर्ष 100 रु का था वो आज 150 रु का हो गया है। पाटोदिया का कहना है कि गत वर्ष जब लॉक डाउन के बाद बाजार खुले तब कलर-केमिकल उल्टा 20 से 30 प्रतिशत टूटा था, जबकि इस बार जनवरी से मार्च कलर केमिकल के लिए तेजी भरे रहे। ये तो अप्रेल, मई व जून कोरोना की वजह से कारोबार में मंदी रहने से कलर केमिकल की नई तेजी नहीं पनप पाई। 
कलर केमिकल की तेजी के पीछे अनेक देशों से रो मटेरियल्स का आयात बन्द या थम जाना भी है। ये सर्व विदित है कि कलर केमिकल का रो मटेरियल्स का उत्पादक देश चाईना है, जो सम्पूर्ण विश्व को बड़ी तादाद में कलर-केमिकल का निर्यात करता हैं और वहां से भारत में आयात अनेक वजहों से अलबत्ता मंद पड़ा हुआ है। भास्कर सिल्क मिल्स प्रा, लि के श्री सौरव टिबड़ेवाल के अनुसार केमिकल की कुछ किस्मों में तो भाववृद्धि दुगुनी व तिगुनी तक छलांग लगा गई, उदाहरण स्वरूप एसिड केसीट नामका केमिकल 40 रु लीटर से उछल कर 120 रु प्रति लीटर, कॉस्टिक एसिड 35 रु प्रति लीटर से छलांग लगा कर 75 रु, इसी तरह पोलिसोल 40 से ढाई गुणा बढ़ कर 100 रु बोला जा रहा हैं।
कोयले की दलाली में हाथ काले, सिंडिकेट से 80 प्रतिशत तक उछाल खा गया कोल
काला कोयला बिना जले ही लाल हुआ जा रहा है, एक तरफ प्रोसेसिंग मिलों की चिमनियों में धुएं की लो मंद पड़ी हुई है तो दूसरी तरफ कोयले के भावों में अंगार लगी हुई हैं। सौरव टिबड़ेवाल के अनुसार आयातित इंडोनेशियन कोल के भावों में बेतहाशा उछाला आया है, जो कोल 3200 रु प्रति टन में उपलब्ध था वो ही आयातित कोल अब 6000 हजार से 6200 रु प्रति टन बोला जा रहा है।  बताया जा रहा है कि इंडोनेशिया से कोल की शॉर्ट सप्लाई है, दूसरी और यह भी बताया जा रहा है कि इंडोनेशिया से आयातित कोल अडाणी पोर्ट के माध्यम से आयात होता है। सूत्रों की माने तो अडाणी ने इंडोनेशिया के कोल की मोनोपोली कर डाली है इस कारण मन मांगे भाव बताए जा रहे हैं। प्रकाश पोरवाल के अनुसार इंडोनेशिया से आयातित कोल 3800 रु प्रति टन से उछाल खा कर 6400 रु हो गए हैं।
बताया जाता हैं कि अनेक कोयला डीलर सिंडिकेट कर आयातित कोल का स्टॉक कर रहे है और मनमाने भावों में कोल बेच रहे हैं। कृष्णा पाटोदिया के अनुसार गुजरात से जी एम डी सी की खादानों से निकला कोयला सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा है और इस भाव वृद्धि का वास्तविक कारण भी है कि बारिश के दिनों अमूमन 10 से 15 प्रतिशत तक कि बढ़ोतरी होती ही है कारण बारिश में खादानों से कोयला निकालने में बड़ी मुश्किल हो जाती हैं। 
 
 


मजदूरी दर हर वर्ष निर्धारित दर से बढ़ती ही है
प्रोसेसर श्री सौरव टिबड़ेवाल के अनुसार श्रमिकों की मजदूरी प्रत्येक वर्ष निर्धारित दर से बढ़ा कर ही दी जाती है, ये बढ़ोतरी 6 से 10 प्रतिशत के लगभग होती हैं। प्रोसेसर श्री कृष्णा पाटोदिया का कहना है कि जिस श्रमिक की मजदूरी प्रतिदिन 300 रु निर्धारित है उसे वर्ष में बढ़ा कर 330 रु दिए जाते हैं, औसतन 450 से 500 रु प्रति श्रमिक मजदूरी चुकाई जाती है। कृष्णा पाटोदिया के अनुसार कम से कम 300 रु मजदूरी श्रमिक की प्रतिदिन व अधिकतम तनख्वाह मैनेजर की एक लाख रु प्रति माह तक प्रदान की जा रही हैं। सचिन के एक कपड़ा प्रोसेसर ने बताया कि कोरोना काल में जब जॉब की कमी हुई तो मिल को बंद करना पड़ा तो वहां कार्यरत एक डाइंग मास्टर ने मिल चालू करने की जिद्द की या फिर उसे बैठे बैठे उनकी निर्धारित आय समकक्ष रुपये दिए जाएं की मांग की। मिल प्रबन्धक ने बताया कि वह उस मास्टर को पहले से 31 लाख रु एडवांस दे चुके थे अब वह नए रूप से 70 लाख रु की मांग कर रहा है, बताया जाता है कि मंदी व बेरोजगारी के दौरान ऐसी विषम परिस्थिति मिल मालिकों के समक्ष खड़ी होती ही है।  
नही बढ़ी कपड़ा प्रोसेसिंग की जॉब दरें
कोयला, कलर-केमिकल, मजदूरी दर व अन्य खर्चे बेतहाशा बढ़ जाने के बावजूद  कपड़ा प्रोसेसिंग की दरें उतनी ही बढ़ रही है जितना ऊंट के मुंह में जीरा। कपड़ा प्रोसेसर श्री कृष्णा पाटोदिया ने बताया कि वर्ष 2021 के जनवरी-फरवरी माह में कपड़ा प्रोसेसिंग की जॉब दरें बढ़ाने का प्रस्ताव पास होने जैसा ही था कि कुछ ही अंतराल के पश्चात कोरोना की दस्तक से पनपे मन्दे कारोबार के कारण यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। दरअसल सूरत में प्रोसेसिंग एसोसिएशन के प्रस्ताव पूर्णतया मंजूर नही हो पाने में एक दिक्कत यह भी आती है कि हर कपड़ा उत्पादक का अपने चॉइस का प्रोसेसर होता है, कारण क्वॉलिटी, कलर, प्रिटिंग, फिनिश डिजाइन व फेब्रिक्स तथा प्राइवेसी आदि अनेकों बिंदु है, व प्रत्येक प्रोसेसर की जॉब दरें भी कपड़ा उत्पादक के व्यवहार के आधार पर निर्धारित होती है कि सामने वाले का भुगतान कैसे व कितनी अवधि में आता है, व पार्टी आर्थिक व व्यवहारिक रूप से कितनी सक्षम है। अतः इन हालातों में कोई एसोसिएशन कितनी भी भाववृद्धि लागू कर दें कितने भी नियम व शर्तें लागू कर दें, बड़ा वॉल्यूम व गुणवत्ता परक व्यवहार एसोसिएशनों के बनाए नियमों से ज्यादा प्रभावी है।
ऐसे अनेकों उदाहरण है कि कई कपड़ा व्यापारियों व उत्पादकों ने अपनी शर्तों के अनुसार जॉब करने वाले प्रोसेसरों से कई दशकों से अनुबंध बनाया हुआ है व कितनी भी मंदी तेजी आ गई हो या कितने भी नए प्रोसेस आ गए हो तो भी वे उत्पादक अपने पसंददीदा प्रोसेसर से पिछले कई वर्षों यहां तक दो-तीन दशकों से नाता बनाए हुए हैं व जो जॉब दरें तय होती है वे दोनों के लिए हितकारी होती हैं।
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