तो क्या हुआ यदि मरीज ने डॉक्टर को ढाई लाख नगद चुकाए, बीमा कंपनी मेडिक्लेम नकार नहीं सकती, जानिये ग्राहक सुरक्षा अदालत का क्या रहा फैसला

तो क्या हुआ यदि मरीज ने डॉक्टर को ढाई लाख नगद चुकाए, बीमा कंपनी मेडिक्लेम नकार नहीं सकती, जानिये ग्राहक सुरक्षा अदालत का क्या रहा फैसला

अदालत ने बीमा कंपनी पर की भुकृति टेढ़ी, पैसे का भुगतान करना बीमाधारक का रिस्क, इसके लिए क्लेम नहीं किये का सकते रद्द

गुजरात राज्य आयोग के न्यायिक सदस्य एमजे मेहता और सदस्य राजीव मेहता ने 10 हजार से अधिक के नकद भुगतान यानी 2.5 लाख के नगद भुगतान पर पॉलिसी की शर्तों के उल्लंघन के नाम पर बीमा कंपनी द्वारा ख़रीच अर्जी के खिलाफ शिकायत पर सुनवाई करते हुए सूरत जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम के फैसले को चुनौती देने वाले बीमाधारक की अपील को स्वीकार कर लिया है। बीमा कंपनी को आवेदक को 2.50 लाख देने का फैसला सुनाया है।
जानकारी के अनुसार शिकायतकर्ता फिरोज रबारी के पास द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की मेडीक्लेम पॉलिसी थी। पॉलिसी लागू होने के दौरान, शिकायतकर्ता का स्वास्थ्य बिगड़ गया और 13-7-2009 को एक निजी अस्पताल में उसका इलाज कराया गया। इलाज में कुल 3.88 लाख का खर्चा आया। जिसमें से बीमा कंपनी ने 1.08 लाख के नकद भुगतान को मंजूरी दी। इस पर जब वादी ने डॉक्टर को 2.50 लाख नकद भुगतान किया तो कंपनी ने बीमा के दावे को खारिज कर दिया। बीमा कंपनी ने कहा कि पॉलिसी की शर्तों के अनुसार, वह 10 हजार से अधिक का नगद भुगतान करने के बाद बीमा क्लेम के लिए पात्र नहीं है। इस पर बीमाधारक ने सूरत कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई लेकिन शिकायत खारिज कर दी गई।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने सूरत की अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए श्रेयश देसाई के माध्यम से गुजरात राज्य आयोग में अपील की। जिसकी सुनवाई के बाद राज्य आयोग ने बीमाधारक की दलीलों को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के फैसले को उलटने का आदेश दिया। राज्य आयोग ने कहा कि एक डॉक्टर जो नकद भुगतान लेता है और रसीद देता है, वह अपनी आय के आधार पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए भुगतान के लिए नकद या चेक महत्वपूर्ण नहीं है। यदि नकद भुगतान किया गया है, तो पॉलिसी शर्तों के उल्लंघन के नाम पर दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि केवल पॉलिसी शर्तों को संलग्न करके, यह नहीं माना जा सकता है कि बीमाधारक को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी है। इसलिए बीमा कंपनी इसके लिए जिम्मेदार है। ऐसे में कोर्ट ने बीमाधारक द्वारा पूर्व में भुगतान किए गए 10 हजार की नकद राशि की कटौती के बाद शेष 2.40 लाख का भुगतान करने का आदेश दिया।

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