मशरूम की खेती से हर महीने दोगुनी कमाई, डांग के इस किसान ने बताई सफलता की राह
25 से 30 दिनों में तैयार हो रही फसल
सूरत, 02 मार्च (हि.स.)। अधिक आवक के लिए किसान खेती में नित्य नए-नए प्रयोग करने लगे हैं। प्रयोग सफल होने पर उनकी आय बढ़ती है तो कई दूसरे भी परंपरागत खेती छोड़कर इस ओर मुड़ते हैं। ऐसे ही गुजरात के डांग जिले के एक किसान ने परंपरागत खेती छोड़ मशरूम की खेती शुरू की तो उसे दोगुनी आवक होने लगी। नतीजतन इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के अन्य किसान भी उनसे प्रेरणा लेकर मशरूम की खेती की ओर से अग्रसर होने लगे हैं।
सूरत के मजूरा गेट स्थित दयालजी अनाविल केलवणी मंडल में आयोजित मिलेट्स प्रदर्शनी में डांग जिले की वघई तहसील के कोसमाड गांव के किसान राजेशभाई गावित ने मशरूम का अपना स्टॉल लगाया है। मशरूम की खेती के बारे में राजेशभाई बताते हैं कि वर्षों से उन्होंने बाप-दादा की पारंपरिक खेती की है। बाद में उन्हें मशरूम की खेती के बारे में पता चला, जो कि परंपरागत खेती से बहुत ही सरल और कम खर्चीली है। इस खेती में आधुनिकीकरण के लिए उन्होंने वघई के कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क किया तो सरकार की ओर से उन्हें प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने 28 किलो बीज के जरिए 60 किलो मशरूम की उपज प्राप्त की। मिल्की मशरूम की खेती 25 से 30 दिन में तैयार होने लगी। बाद में इसे बाजार में बेचा जो कि 350 रुपये लेकर 400 रुपये प्रति किलो के भाव में बिकी। सीजन में तो इसकी कीमत 500 रुपये से 600 रुपये प्रति किलो भी मिली।
छोटे प्लॉट और बगैर एयरकंडिशनिंग की खेती
राजेशभाई ने बताया कि मशरूम की खेती की मदद से किसान अपनी आय आसानी से दोगुनी कर सकता है। इस खेती में बड़े निवेश की भी जरूरत नहीं है। साथ ही छोटे प्लॉट में भी इसकी खेती आसानी से होती है। जिस छत के नीचे मशरूम की खेती की जाती है, उसका उपयोग कर मशरूम की खेती के लिए पूरे साल के सिंचाई की व्यवस्था की जा सकती है। ऐसे कई मशरूम हैं जिनकी खेती बगैर एयरकंडिशनिंग के भी की जा सकती है। दूधिया मशरूम और बटन मशरूम की खेती आसानी से की जा सकती है। राजेशभाई बताते हैं कि उनकी मशरूम की खेती से प्रभावित होकर जिले के किसान उनसे सम्पर्क करते हैं। कई किसानों को उन्होंने मशरूम की खेती सिखाई है। इसके कारण आत्मा प्रोजेक्ट की ओर से मुझे 10 हजार रुपये का पुरस्कार भी दिया गया।
प्राकृतिक खेती से प्राप्त मशरूम के कई फायदे
विशेष मशरूम में एंटी ऑक्सीडेंट के गुण और बीटा ग्लूकन्स नाम के जटिल शर्करा पाया जाता है। राजेशभाई बताते हैं कि अन्नदाता किसान का जीवन विश्व को स्वास्थ्य देने और समृद्ध करने के लिए हुआ है। इसमें यदि हमारा भी योगदान रहे तो प्राकृतिक आहार के जरिए समाज को कुछ अच्छा देने की सोच को आकार मिलता प्रतीत होता है। राज्य सरकार भी मिलेट़्स के साथ ही मशरूम की उपज को बाजार देने का प्रयास करती है, जिससे किसानों को प्रोत्साहन मिलता है।