सूरत : इलेक्ट्रिक दीये के बावजूद मिट्टी के दीये की मांग अपरिवर्तित बनी हुई है
समय के साथ मिट्टी के दीये बनाने के लिए लकड़ी की जगह बिजली का प्रयोग होने लगा
श्राद्ध पक्ष खत्म होते ही माताजी की भक्ति का पर्व नवरात्रि और रोशनी का त्योहार दिवाली आ जाएगी। इन दोनों त्योहारों में प्रकाश के प्रतीक दीपक (दीये )का अधिक महत्व है। हालांकि, सूरत समेत गुजरात में बिजली के दीये के खिलाफ मिट्टी के दीये की मांग देखी जा रही है। इससे दम तोड़ रहा दीये का कारोबार पटरी पर लौटने लगा है। समय के साथ-साथ मिट्टी के दिए बनाने की चक्कर अब लकड़ी की बजाय इलेक्ट्रिक हो गई है। पारंपरिक कारीगर अब तेजी से उत्पादन के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।
कलाकारों की कला को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में सूरत के विज्ञान केंद्र में शिल्प की एक प्रदर्शनी शुरू हुई है। इसी स्थान पर अहमदाबाद के एक दीये शिल्पकार का स्टॉल भी है। अहमदाबाद के मनुभाई प्रजापति केवल कक्षा दो तक ही पढ़े हैं और अपने दादा के कुम्हार के व्यवसाय में तभी शामिल होते हैं जब उन्हें इसकी समझ हो जाती है। पिछले 64 साल से दीये बना रहे मनुभाई बताते हैं कि पहले मिट्टी को हाथ से घुमाकर उस पर मिट्टी डालकर दीये और मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे, लेकिन समय और जगह की कमी के कारण कई कारीगर लकड़ी के चक्कर के बजाय इलेक्ट्रिक चक्कर का इस्तेमाल कर मिट्टी के दीये बना रहे हैं ।
उनका कहना है कि पहले भी इसी तरह से दीये बनाए जाते थे। चाइनीज और अन्य फैशनेबल दीयों के बाजार में आने से पहले हम अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कर अलग-अलग तरह के दीये बनाते थे। पारंपरिक दीये के साथ-साथ हम ऐसे दीये भी बनाते हैं जो हवा के कारण हिलते नहीं हैं। हम जो देखते हैं उससे भी बेहतर डिजाइन बनाकर दीये को आकार दे रहे हैं और इन दीये की डिमांड भी देखने को मिल रही है। सरकार द्वारा इस तरह की प्रदर्शनी बिक्री आयोजित करने से हम जैसे कारीगरों को फायदा हो रहा है।
मनुभाई कहते हैं, "यह कला अब शहरों में नहीं देखी जाती है, इसलिए हमें कुछ स्कूलों में छात्रों को दिखाने के लिए बुलाया जाता है और हम आधुनिक छड़ियों का उपयोग करके छात्रों को मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाते हैं। इस तरह की गतिविधि पिछले सालों से कई कारीगरों के लिए आजीविका का स्रोत रही है ।