धार्मिक समन्वय और आस्था का पावन केंद्र है मिथिला का मिनी देवघर बाबा हरिगिरिधाम
मंदिर के बगल होकर चंद्रभागा नदी दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है
बेगूसराय, 02 जुलाई (हि.स.)। भगवान शंकर के सबसे पावन माह सावन की शुरुआत चार जुलाई से हो रही है। सावन में मलमास के कारण इस वर्ष श्रावणी मेला चार से 17 जुलाई एवं 17 से 31 अगस्त तक होगा। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग शिवालयों में जलाभिषेक कर कल्याण की कामना करेंगे, तो इसको लेकर शिवालयों में ही तैयारी तेज हो गई है।
कभी अंगुतराप और स्वर्णभूमि के नाम से प्रसिद्ध बेगूसराय जिला के उत्तरी सीमा पर गढ़पुरा प्रखंड मुख्यालय से महज एक किलोमीटर दूर स्थित पावन शिवालय बाबा हरिगिरिधाम आज मिथिला के देवघर के रूप में भी जाना जाने लगा है। इस शिवालय के ख्याति का आलम यह है कि रात तो रात, यहां दिन में भी शादी होते रहता है।
चन्द्रभागा (अतिक्रमण के कारण विलुप्त) नदी के पश्चिमी तट पर पौराणिक काल से स्थित इस शिवालय की महिमा वर्ष 2000 से काफी फैल गई। अब यहां प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं, तो वहीं एक हजार से भी अधिक मुंडन, उपनयन और शादी समेत अन्य संस्कार कराए जाते हैं। कथाओं के अनुसार श्मशान भूमि पर बाबा हरिगिरि नामक महात्मा द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना उगना के साथ महाकवि विद्यापति ने भी जयमंगलागढ़ जाने के दौरान की थी।
इस पौराणिक स्थल की स्पष्ट चर्चा किसी धर्म ग्रंथ में नहीं है। लेकिन ब्रह्मवर्त पुराण में मंगला देवी के संबंध में किए गए चर्चा के साथ कहा गया है कि कमल दल से पूर्ण सरोवर के मध्य मंगला देवी का निवास है और उसी के उत्तर पूर्व दिशा की ओर शिव का वास है। मंदिर के बगल होकर चंद्रभागा नदी दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है। इससे भी बड़ा प्रमाण रुद्रयामल तंत्र एवं कालिका पुराण में मिलता है।
जिसमें कहा गया है कि मिथिला एवं अंग देश की सीमा पर दक्षिणायन चंद्रभागा तट पर शिव आकर बसे हैं। जिसकी पूजा सप्त कुंड के जल से किया जाता है तथा वही त्रिदंडी मुनियों का निवास है। सप्त कुंड और मुनियों के निवास के प्रमाण भी यहां हैं। हालांकि अब सिर्फ दो कुंड ही बचा हुआ है। इस पौराणिक स्थल का नामकरण हरिगिरी धाम होने के संबंध में कहा जाता है कि पहले यहां घना जंगल के बीच तांत्रिक और अघोरियों का वास होता था।
बगल से बहने वाली चंद्रभागा नदी के चिता भूमि पर सिद्ध महात्मा भी रहते थे। इनमें से हरिगिरी बाबा, तामरी बाबा और मनधारी बाबा की प्रसिद्ध थी तथा हरिगिरि बाबा ने इसकी स्थापना की थी। बाद के दिनों में इसका उन्नयन होने लगा और ख्याति बिहार के साथ बंगाल, आसाम और नेपाल तक काफी फैल गई। आज हरिगिरी धाम महज एक मंदिर नहीं, आस्था, विश्वास, भाईचारा और धार्मिक समन्वय का केंद्र बन गया है।
सावन माह में यहां भक्तजनों का कारवां सिमरिया एवं झमटिया घाट से गंगाजल लेकर पैदल तथा बस निजी वाहन एवं ट्रेन से उमड़ते ही रहता है। सिमरिया घाट से बाबा हरिगिरि धाम 57 किलोमीटर एवं झमटिया घाट से 52 किलोमीटर है। 2015 से बिहार राज्य मेला प्राधिकार द्वारा श्रावणी मेला के साथ साथ शिवरात्रि, माघी पूर्णिमा एवं कार्तिक पूर्णिमा मेला का आयोजन धूमधाम से किया जाता है। फिलहाल सावन आने में मात्र एक दिन शेष बचे हैं तो शिव भक्तों के स्वागत की जोरदार तैयारी हो रही है। सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए जा रहे हैं।