क्या है अस्थमा और महिलाओं के हार्मोनल हेल्थ के बीच संबंध?
लुधियाना (पंजाब), मई 13: अस्थमा या दमा, दोनों ही शब्द फेफड़ो की बीमारी की ओर संकेत करते है। आज के दौर में यह एक आम समस्या होने के साथ साथ यह 262 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है।
इस संख्या में महिलाओं की गिनती पुरुष से अधिक है और पीड़ित व्यक्ति को खांसी, सांस ना आना, छाती में अकड़न और घरघराहट जैसी समस्याओं से झूझना पड़ता है। दमा की बीमारी में व्यक्ति की सांस की नली में सूजन और सिकुड़न के कारण सांस लेने में तकलीफ होती है।
इसका इलाज अधिक आवश्यक है क्यूंकि सही इलाज ना होने पर यह जान के लिए खतरा साबित हो सकती है। आयुर्वेद में अस्थमा का उत्तम इलाज मौजूद है जिसे अपनाकर अनगिनत दमा मरीजों को स्वस्थ जीवन जीने का मौका मिला है।
“अस्थमा की बीमारी के चलते लोग अंग्रेजी दवाइयाँ और इन्हेलर्स पर निर्भर हो जाते है। इसके चलते अनेक दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है। आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जिससे अस्थमा भी जल्दी ठीक हो जाता है और इन्हेलर्स भी छूट जाते है। इसके साथ शरीर में मौजूद दुष्प्रभाव भी खत्म हो जाते है। " (डॉ. मुकेश शारदा )
हार्मोन्स कैसे करते है अस्थमा को प्रभावित (डॉ शारदा आयुर्वेद के सी.ई.ओ)
रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि:- “महिलाएँ यौवन, मासिक धर्म, और गर्भावस्था के दौरान अस्थमा के गंभीर लक्षणों से गुज़रती हैं।” एस्ट्रोजन का स्तर मासिक धर्म, और गर्भावस्था में अधिक होता है और यह हार्मोन्स इम्युनिटी तथा वायुमार्ग पर नकारात्मक प्रभाव डालते है।
हार्मोनल परिवर्तन अस्थमा से पीड़ित महिलाओं को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करते है:
1. माहवारी
माहवारी के दौरान हॉर्मोन्स जैसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में उतार चढ़ाव होता है। यह अस्थमा पीड़ित के वायुमार्ग में सूजन की वृद्धि करता है जिससे अस्थमा के लक्षण बढ़ जाते है।
2. मेनोपॉज और प्री-मेनोपॉज
मेनोपॉज और प्री-मेनोपॉज में हॉर्मोन्स का स्तर स्थिर नहीं रहता जिसके कारण महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में कमी हो जाती है। इस स्थिति में सांस का फूलना, खासी आदि अस्थमा के लक्षण बढ़ जाते है। कई बार महिलाएँ, अस्थमा सम्बन्धी लक्षण मेनोपॉज या प्री-मेनोपॉज के दौरान महसूस करती है जिसे नॉन-एलर्जिक अस्थमा के नाम से जाना जाता है।
3. गर्भावस्था
गर्भावस्था में अक्सर हॉर्मोन्स में उत्तार चढ़ाव देखा जाता है और महिला के शरीर में अनगिनत बदलाव होते है। इस दौरान अस्थमा का महिलाओं पर असर भी अलग अलग होता है। कुछ महिलाएं (40%) गर्भावस्था में अस्थमा के बढ़ते लक्षणों से गुजरती है परन्तु कुछ महिलाओं को सामान्य या नामात्र लक्षण देखने को भी मिलते है। ऐसा शरीर में हो रहे हार्मोनल असंतुलन की वजह से होता है।
क्यों बदलते हॉर्मोन्स से बढ़ता है अस्थमा ?
वैज्ञानिकों के अनुसार हार्मोनल बदलाव को अस्थमा के लक्षणों को बढ़ाने में पूरी तरह से समझा नहीं गया है। इसके विपरीत कुछ शोधकर्ता के अनुसार कुछ कारणों को इस स्थिति को प्रभावित करने के पीछे देखा गया है। इन परिस्थितियों के अनुसार शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन अस्थमा की परेशानी बढ़ा देते है। कुछ सेक्स हार्मोन के उतार चढ़ाव से इम्युनिटी और एलर्जी की प्रतिक्रिया भी प्रभावित होती है।
एस्ट्रोजन में सूजनरोधी तत्व मौजूद होते है जो अस्थमा के दौरान फेफड़ो की क्रिया में मदद करता है। परन्तु मासिक धर्म या मेनोपॉज़ के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में उतार चढ़ाव आता है जिससे वायुप्रणाली में सूजन बढ़ जाती है और ब्रोन्कियल में प्रतिक्रिया तेज हो जाती है। यह अस्थमा को बढ़ाने में पूर्ण सहयोगी है।
हार्मोनल परिवर्तन और अस्थमा के लक्षणों की वृद्धि से बचें - डॉ. शारदा आयुर्वेदा
आयुर्वेद प्रणाली के अनुसार हर बीमारी के लिए मनुष्य की जीवनशैली और खान पान को दोषी माना गया है। हॉर्मोन्स और अस्थमा के पीछे भी यही तर्क मौजूद है। यदि खान पान में सही परहेज और जीवनशैली को सुधार लिया जाए तो यह सेहत संबंधी परेशानी ठीक हो सकती है। मोटापा भी इसका एक कारण माना गया है । इससे ग्रस्त महिलाओं को यौवन, गर्भावस्था, मासिक धर्म, प्री-मेनोपॉज़ और मेनोपौज़ में हार्मोनल बदलाव के कारण अस्थमा की परेशानी ज़्यादा देखने को मिलती है।
मोटापे को नियंत्रिण करने के लिए सही योग चुनना अति आवश्यक है। अस्थमा में अपने किसी अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेकर ही योग शुरू करे। इससे ना सिर्फ अस्थमा नियंत्रण होगा, लेकिन इसके दौरा पड़ने की क्षमता पर भी रोक लगेगी। हॉर्मोन्स को संतुलित करने में भी आयुर्वेद सर्वोत्तम साबित होता है। घर का सादा खाना खाकर, योग और आयुर्वेदिक दवाइयों से इस परेशानी को सही किया जा सकता है।
ज्यादा जानकारी और सर्वोत्तम आयुर्वेदिक चिकित्सक को परामर्श करने के करें लिए आप डॉ शारदा आयुर्वेदा हॉस्पिटल में संपर्क कर सकते है। यहाँ 2 लाख से अधिक मरीजों का अस्थमा का इलाज किया गया है जो आज एक सवस्थ जीवन जी रहे है। इन्हे संपर्क करने के लिए आप इस हॉस्पिटल की शाखा में जा सकते है या ऑनलाइन संपर्क कर सकते है। यहाँ के चिकित्सक शरीर की प्राकृति के आधार पर डाइट चार्ट, दवाइयाँ और योग बताते है जिससे सेहत में जल्द सुधार आता है।
हॉर्मोन्स में बदलाव अस्थमा के लक्षणों को कम और ज़्यादा कर सकता है। इससे बचने में आयुर्वेद सबसे सरल और असरदार उपचार है। आयुर्वेद प्राकृतिक तरीकों से शरीर में संतुलन बनाकर बीमारी से बचने का कार्य करता है। ये शरीर की इम्युनिटी बढ़ाकर बिमारियों से लड़ने में सहायक है। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है और हर बीमारी को जड़ से खतम करने की प्रक्रिया है। यदि आप भी अपने बदलते हार्मोन्स और बढ़ते अस्थमा से परेशान है तो आयुर्वेदा अपनाये और स्वस्थ जीवन जिए।