उप्र की इत्र नगरी कन्नौज में बनने वाला केवड़ा गर्मियों का है नायाब तोहफा

केवड़ा के फूल से निकली खुशबू कई ऐसी चीजों में प्रयोग में आता है जिसको जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे

उप्र की इत्र नगरी कन्नौज में बनने वाला केवड़ा गर्मियों का है नायाब तोहफा

कन्नौज,17 जून (हि.स.)। अपने इत्र उत्पादन के लिए देश ही नहीं अपितु विश्व में विख्यात इत्र नगरी कन्नौज में वैसे तो एक से बढ़कर एक इत्र मिलते हैं। लेकिन कुछ ऐसे इत्र हैं जो अपनी एक अलग ही पहचान रखते हैं। इनमें खास गुलाब, बेला, मेहंदी आदि इत्र आते हैं। वहीं इनमें अगर बात की जाए केवड़ा इत्र की तो वह भी अपनी अलग पहचान के लिए मुख्यता जाना जाता है।

खास बात यह है कि केवड़े का इत्र सिर्फ कन्नौज में ही बनता है। केवड़ा के फूल से निकली खुशबू कई ऐसी चीजों में प्रयोग में आता है जिसको जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। खाने-पीने से लेकर कई ऐसी चीजें हैं जिनमें केवड़े का इत्र इस्तेमाल किया जाता है। जिस खाद्य पदार्थ में केवड़े के इत्र को डाला जाता है उनमें खुशबू के साथ-साथ स्वाद में भी बदलाव आ जाता है जो लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

कहां पैदा होता है केवड़े का फूल और किस मौसम में होती है पैदावार

केवड़ा सुगंधित फूलों वाले वृक्षों की एक प्रजाति है, जो अनेक देशों में पाई जाती है। यह घने जंगलों में उगती है। पतले, लंबे, घने और कांटेदार पत्तों वाले इस पेड़ की दो प्रजातियां होती हैं। इनमें सफेद और पीले फूल की प्रजाति होती है। सफेद जाति को केवड़ा और पीली को केतकी कहते हैं। केतकी बहुत सुगन्धित होती है और उसके पत्ते कोमल होते हैं। इसमें जनवरी और फरवरी में फूल लगते हैं। केवड़े की यह सुगंध सांपों को बहुत आकर्षित करती है। अत्यधिक खुशबू दायक होने के कारण उनके पेड़ों और झाड़ियों में सांप अत्यधिक पाए जाते हैं।

कैसे बनता है केवड़ा

कन्नौज में इत्र बनाने की वही प्राचीन पद्धति का इस्तेमाल केवड़ा के इत्र को भी बनाने में किया जाता है। एक बड़े से तांबे से निर्मित डेग में बहुत सारे केवड़े के फूलों को डाल लिया जाता है और डेग-भभका पद्धति से इसका इत्र निकाला जाता है। केवड़ा के इत्र के साथ-साथ केवड़ा जल भी इसी पद्धति से निकलता है। केवड़े का इत्र लगभग सभी तरीके की मिठाइयों और पेयजल पदार्थों में डाल कर उसके और स्वाद को बढ़ाया जाता है। केवड़ा जल और केवड़े का इत्र तासीर में ठंडी होने के कारण गर्मियों में इसका उपयोग अधिकांश किया जाता है। गर्मियों में बिकने वाले लस्सी और अन्य पदार्थों में भी केवड़े के जल का उपयोग किया जाता है।

कत्थे में डाला जाता है केवड़ा, इन नामों से भी जाना जाता है

कत्थे को केवड़े के फूल में रखकर सुगंधित बनाने के बाद पान में उसका प्रयोग किया जाता है। केवड़े के अंदर स्थित गूदे का साग भी बनाया जाता है। इसे संस्कृत, मलयालम में केतकी, तेलुगु में मोगलीपुवव, हिन्दी और मराठी में केवड़ा, गुजराती में केवड़ों, कन्नड़ में बिलेकेदगे गुण्डीगे, तमिल में केदगें, फारसी में करंज, अरबी में करंद और लैटिन में पेंडेनस ओडोरा टिसीमस कहते हैं।

कितने में बिकता है केवड़े का इत्र

इत्र व्यापारी शिवा बताते हैं कि केवड़े का इत्र कन्नौज में ही यहां की प्राचीन पद्धति से बनाया जाता है। केवड़े का इत्र छह हजार रुपये किलो से लेकर 3.50 लाख रुपये किलो तक में बिकता है। केवड़ा खाने पीने की चीजों में उसके स्वाद को सुगंधित जायका बनाने में प्रयोग किया जाता है। हर तरह की मिठाइयों में केवड़े का प्रयोग किया जा सकता है। वहीं होली के त्यौहार में केवड़े का प्रयोग कर गुजिया बनाई जाती है, वह बहुत स्वादिष्ट होती है और उनकी डिमांड बहुत ज्यादा होती है। केवड़ा पेयजल पदार्थों में भी प्रयोग में लाया जाता है।

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