जिस मंदिर को कभी औरंगजेब ने तोड़ा, पीएम मोदी ने हूबहू उसे लोकतंत्र का मंदिर बना दिया!

नया संसद भवन अपने लोगों द्वारा निर्मित कराया गया लोकतंत्र का मंदिर है

जिस मंदिर को कभी औरंगजेब ने तोड़ा, पीएम मोदी ने हूबहू उसे लोकतंत्र का मंदिर बना दिया!

 डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल, 26 मई (हि.स.)। देश को भव्य एवं पहले से बहुत विस्तारित और संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने वाला संसद भवन मिलने जा रहा है। इस भवन के निर्माण के साथ जो गौरव का भाव जुड़ा है वह स्वाधीन भारत को अपनी परतंत्रता से मुक्ति मिलने के 75 वर्षों बाद उसके अपने ''स्व'' का उद्घोष कराने वाला है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ब्रिटिश काल में बना हुआ संसद भवन अब एतिहासिक धरोहर हो जाएगा। नया संसद भवन अपने लोगों द्वारा निर्मित कराया गया लोकतंत्र का मंदिर है। वास्तव में यह स्वाधीन भारत की वह अभिव्यक्ति है, जिसमें पहली बार अंदर-बाहर सभी ओर अपनेपन की सुगंध है। अपनों का पुरुषार्थ है और अपनों की ही लोक सत्ता है।

यह मध्य प्रदेश राज्य के लिए अत्यधिक गौरव की अनुभूति कराने वाला विषय है। इसे संयोग कहें या सौभाग्य अब ऐतिहासिक होने जा रहे संसद भवन का निर्माण भी अंग्रेजों ने मध्य प्रदेश की एक प्रतिकृति के आधार पर कराया था। उस समय अंग्रेजों ने संसद भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना जिले के एक छोटे से गांव में बने बहुत पुराने चौसठ योगिनी मंदिर से लिया था, जोकि यहां मितावली-पड़ावली पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल द्वारा करावाया गया था। उस समय में मंदिर सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित में शिक्षा प्रदान करने का स्थान था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने उक्त मंदिर को 1951 में ऐतिहासिक धरोहर घोषित कर दिया और अब पुरातत्व विभाग ही इसकी देखभाल करता है।

परमार वंश के सूर्य मंदिर की प्रतिकृति है नया संसद भवन

आज जब अपनी धरती, अपना अंबर, अपना हिन्दुस्तां है, तब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राज में मध्य प्रदेश में ही स्थित परमार वंश के सूर्य मंदिर की प्रतिकृति के रूप में नई दिल्ली के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट और नए संसद भवन ने अपना आकार ग्रहण किया है। पुरातात्विक शोध की गहराइयों में जाकर जो प्रतिकृति सामने उभरती है, वह हूबहू विदिशा जिले के परमार कालीन समय में बने ऐतिहासिक विजया मंदिर या प्रचलित नाम सूर्य मंदिर की है। अपने समय में आज के नए बने संसद भवन की ही तरह इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी, किंतु यह मंदिर तत्कालीन समय के इस्लामिक, धर्मांध और जिहादी मानसिकता से ग्रस्त औरंगजेब ने ध्वस्त करवा दिया और मंदिर के स्थान पर वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद या मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिद की तरह ही यहां भी मस्जिद तान दी।

इस मंदिर एवं नए संसद भवन के संबंध में इतिहास संकलन समिति के प्रांत उपाध्यक्ष एवं इतिहासकार डॉ. आनन्द सिंह राणा ने बताया कि परमार वंश मध्यकालीन भारत उन ताकतवर राजवंशों में शुमार है, जिसका सत्ता दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस वंश के शासकों ने 800 से 1327 ई. के दौरान आबू पर्वत से लेकर सिंधु क्षेत्र तक सफलतापूर्वक शासन किया।

प्रो. आनन्द सिंह ने कहा कि परमार राजवंश भगवान शिव एवं सूर्य उपासक रहा, इसलिए इन्होंने सबसे अधिक शिव-शक्ति के साथ सूर्य मंदिरों का निर्माण अपने शासन काल के दौरान करवाया। विदिशा में प्राप्त प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण भी परमार वंशजों ने कराया था, इसके प्रमाण आज मौजूद हैं। राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने 11 वीं सदी में इस सूर्य मंदिर को मूर्त रूप देने में अपनी भूमिका निभाई थी और श्रेष्ठ मूर्तिकारों को एकत्र कर इस मंदिर का निर्माण कराया था।

इतिहास के अध्ययन एवं प्राप्त साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि मुगल शासकों को इस मंदिर की भव्यता और विशालता शुरू से ही खटकती रही थी। वे इसे समाप्त करने के कई अवसर ढूंढते रहे, लेकिन जब तक हिन्दू राजा शक्तिशाली रहे तब तक उनकी हिम्मत इसे तोड़ने की नहीं हो पाई।

औरंगजेब ने मंदिर 11 तोपों से ध्वस्त कराया

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को 11 तोपों से गोले दगवाकर ध्वस्त कराया था। उसके काल में यहां बहुत भयंकर लूट की गई। कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस मंदिर के कई अवशेष यहीं दफन कर दिए गए और उसके ऊपर मस्जिद तान दी गई। इसके बाद भी यहां के शेष बचे लोगों की आनेवाली पीढि़यों के बीच कभी यह बात दबी नहीं रही कि कैसे औरंगजेब ने सूर्य मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद का निर्माण किया था।

प्रो. आनन्द सिंह राणा बताते हैं कि हिन्दुओं का इस स्थान पर मंदिर होने का दावा लगातार बना रहा और जब 1934 की खुदाई में मंदिर के अवशेष मिले तो यह फिर एक बार साफ हो गया कि यह अपने मूल रूप में एक भव्य मंदिर था। जब और गहरी खुदाई की गई तो मंदिर रूपी एक भव्य इमारत सामने आई। जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने इस पूरे परिसर को अध्ययन के लिए अपने आधीन ले लिया।

नवनिर्मित संसद भवन बिजासन माता को समर्पित

इतिहास के विद्वान एवं सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर अल्केश चतुर्वेदी भी इस बात से सहमत हैं। उन्होंने भी माना कि नए संसद भवन का स्वरूप जिस तरह का दिखाई दे रहा है, वैसा ही स्वरूप विदिशा स्थित मंदिर का है। यह ठीक उसी की प्रतिकृति है ।

वे कहते हैं कि मध्य प्रदेश की भूमि प्राचीन स्थापत्य कला से परिपूर्ण है। यह स्थापत्य कला की महत्वपूर्ण पुस्तक समरांगण सूत्र के लेखक राजा भोज की कर्मभूमि भी है । पूर्व संसद भवन मुरैना की मितावली एवं जबलपुर की 64 योगिनी मंदिर के स्थापत्य पर आधारित है। नवनिर्मित संसद भवन विदिशा स्थित परमार वंश की आराध्य देवी बिजासन माता अथवा चर्चिका देवी को समर्पित बीजामण्डल पर आधारित है। प्राचीन भारत के वैभव पर आधारित स्थापत्य पर नए भारत की नींव रखना हमें गौरवान्वित करता है।

भाजपा है तो भारत की विरासत है - डॉ. हितेश वाजपेयी

भारतीय जनता पार्टी (म.प्र.) के पूर्व कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त और वर्तमान में भाजपा प्रदेश प्रवक्ता डॉ. हितेश वाजपेयी इस बात पर अपनी खुशी जाहिर करते हैं कि मध्य प्रदेश को यह गौरव दूसरी बार भी मिला है कि उसके यहां स्थापित प्राचीन पुरातात्विक धरोहर के आधार पर नया संसद भवन तैयार किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा है तो भारत की विरासत है।'' इसके साथ ही उन्होंने एक चित्र भी साझा किया जिसमें पुराने और नए दोनों ही संसद भवन के चित्र हैं।

विदिशा के इतिहासकार गोविंद देवलिया भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि हुबहू सूर्य मंदिर की तर्ज पर नए संसद भवन का निर्माण हुआ है। प्राचीन सूर्य मंदिर के गेट पर निर्मित दो विशाल स्तंभ नए संसद भवन के प्रवेश द्वार से मेल खाते हैं। वे इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार ने नए संसद भवन की प्रतिकृति और आकार के लिए विदिशा के सूर्य मंदिर के स्वरूप का चयन किया है । विदिशा के वरिष्ठ पत्रकार राकेश मीणा का कहना भी यही है कि विदिशा के लिए यह गौरव की बात है कि यहां के सूर्य मंदिर प्रतिरूप के आधार पर नए संसद भवन का निर्माण किया गया है । निश्चित ही यह मंदिर परमार कालीन यशस्वी राजाओं की कला के प्रति अपार रूचि को दर्शाता है । आज भी यहां के पत्थर यह प्रमाण दे रहे हैं कि अपने स्वर्णिम काल में यह मंदिर कितना भव्य रहा होगा।

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