सूरत : नई सिविल अस्पताल में कोरोना के दौर में लोगों की जिंदगी बने वेंटिलेटर खा रहे हैं धूल

हाल मामले की जांच कर कार्रवाई की जाएगी

सूरत : नई सिविल अस्पताल में कोरोना के दौर में लोगों की जिंदगी बने वेंटिलेटर खा रहे हैं धूल

कोरोना काल में सूरत सिविल अस्पताल में पीएम केयर से दिये गये 100 से अधिक वेंटिलेटर से धूल खा रहे हैं। इस संबंध में सूरत के नई सिविल अस्सिपताल के  सुपरिंटेंडेंट ने बचाव करते हुए कहा कि वेंटिलेटर कुछ दिनों के अंतराल में साफ होते हैं, हाल मामले की जांच कर कार्रवाई की जाएगी।

सूरत सिविल में केंद्र सरकार द्वारा पीएम केयर से करोड़ों की लागत से आवंटित 100 से अधिक वेंटिलेटर कबाड़ के रूप में रखे गए हैं। जिन कमरों में वेंटिलेटर रखे गए हैं उनके दरवाजे भी बंद करने की जरुरत नहीं समझी गई है, जबकि वेंटिलेटर के ऊपर प्लास्टिक भी नहीं रखा गया है। जिस कमरे में वेंटिलेटर रखा गया है वहां हर जगह धूल ही धूल नजर आती है। साथ ही वेंटिलेटर पर भी धूल जम गई है।

समय-समय पर सफाई की जाती है

सिविल अधीक्षक डॉ. गणेश गोवेकर ने कहा कि अब कोविड नहीं है और कोरोना के मरीज भी नहीं आ रहे हैं इसलिए जो वेंटिलेटर इस्तेमाल में नहीं आ रहे हैं उन्हें एक कमरे में रखा गया है। जिसकी समय-समय पर सफाई की जाती है। सभी वेंटिलेटर को ठीक से पैक करने का भी निर्देश दिया गया है और जांच के बाद लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

अगर हम प्लास्टिक भी डालते हैं तो वह अक्सर उड़ जाता है

आगे कहा गया कि हर महीने इन वेंटिलेटर्स की सफाई की जाती है। बायोमेडिकल विभाग यह भी जांचता है कि क्या यह क्षतिग्रस्त है। वेंटीलेटर उपयोग में नहीं होने के कारण यह धूल-धूसरित हो गया है। अब भी हम जहां भी मांग होती हैं वहां वेंटिलेटर मुहैया कराते हैं। अब भी जरूरत पड़ने पर हम इन सभी वेंटिलेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि वेंटीलेटर को अनुपयोगी छोड़ दिया जाए तो धूल जम जाती है। यहां तक ​​कि अगर प्लास्टिक लगाया जाता है, तो यह अक्सर उड़ जाता है।

मेडिकल बेड भी जर्जर अवस्था में है

सूरत सिविल अस्पताल में केवल वेंटिलेटर ही अस्तित्व की लड़ाई नहीं लड़ रहा है। जब टीवी9 की टीम ने दूसरे वार्ड का दौरा किया। इसके बाद और भी चौंकाने वाले दृश्य देखने को मिले। यहां के मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक बेड का उपयोग आईसीयू सहित आपातकालीन वार्डों में किया जाता है, हालांकि वे भी जर्जर हालत में देखे जा रहे हैं। ये मेडिकल बेड एक कमरे में कबाड़ की तरह बेतरतीब ढंग से बिखरे पड़े हैं। मरीजों को आराम देने वाले इन बिस्तरों की इस तरह रख दी जाती है जैसे कि इनका दोबारा इस्तेमाल किया जाना ही नही है। न कोई रख-रखाव, न कोई साज-सज्जा और न ही कोई व्यवस्था। यदि जीवन रक्षक उपकरण ऐसी स्थिति में हैं तो समझा जा सकता है कि सरकारी अस्पताल में लापरवाही किस हद तक चल रहा होगा।

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