सूरत :  आस्तिक विचारधारा पर निर्धारित है आत्मवाद : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 

प्रवास के दूसरे दिन उधनावासियों ने अपने आराध्य की कल्याणीवाणी का किया श्रवण

सूरत :  आस्तिक विचारधारा पर निर्धारित है आत्मवाद : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 

सूरत शहर में आध्यात्मिकता का आलोक बांटने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी उधना प्रवास के दूसरे दिन जहां अपने परिभ्रमण के दौरान कितने-कितने लोगों को लाभान्वित किया तो वहीं अपनी कल्याणीवाणी द्वारा जीवन को सफल बनाने का मंत्र भी प्रदान किया। अपने आराध्य की कृपा को प्राप्त कर हर्षित उधनावासियों ने सोमवार को कार्यक्रम के दौरान अपनी आस्थासिक्त भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। दूसरी ओर उधना व उसके आसपास के क्षेत्रों से गुरु सन्निधि में पहुंचे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी विविध प्रस्तुतियों के माध्यम से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

सोमवार को प्रातः सूर्योदय के पश्चात शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी उधना उपनगर में परिभ्रमण को गतिमान हुए। प्रवास के दौरान भी आचार्यश्री की यात्रा निरंतर चल रही है। आचार्यश्री के इस परिभ्रमण से उधना के श्रद्धालुओं को अपने-अपने घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों आदि के निकट आचार्यश्री के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लगभग दो घंटे के परिभ्रमण के दौरान सूर्य की किरणों ने महातपस्वी के वस्त्रों को पसीने से तर-बतर कर दिया था। प्रवास स्थल में पधारने के अल्प समय के उपरान्त ही आचार्यश्री जनता को पावन पाथेय प्रदान करने के लिए प्रवचन पण्डाल की ओर पधारे। मानों महातपस्वी महाश्रमणजी के लिए कार्यों में परिवर्तन ही विश्राम है। 

एस.एम.सी. ओपेन प्लॉट में बने भव्य महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को पहले साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने उद्बोधित किया। तत्पश्चात युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी कल्याणवाणी से कल्याण का मार्ग बताते हुए कहा कि दुनिया में दो तरह की विचारधारा चलती है- आस्तिक विचारधारा और नास्तिक विचारधारा। आस्तिक विचारधारा आत्मा को अलग और शरीर को अलग मानती है। आस्तिक विचारधारा के अनुसार आत्मा स्थाई और शरीर अस्थाई है। एक आत्मा अनंत बार जन्म ले चुकी है, किन्तु शरीर एक ही जन्म में नष्ट हो जाता है। अर्थात् आस्तिक विचारधारा पुनर्जन्मवाद को मानती है। आस्तिकवादी विचारधारा पर ही अध्यात्मवाद आधारित है। वहीं नास्तिक विचारधारा के लोग पुनर्जन्मवाद को नहीं मानते। वे आत्मा और शरीर को एक मानते हैं। भौतिकतावाद नास्तिक विचारधारा पर आधारित है। 

पूज्यचरणों में श्रद्धालुओं ने अर्पित की अपनी आस्थासिक्त भावनाएं  

आस्तिक विचारधारा बनी रहती है तो आदमी का जीवन आध्यात्मिकता से भावित हो सकता है। आचार्यश्री ने राजा प्रदेशी और मुनि कुमारश्रमण केशी के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी को स्वयं को आत्मा मानकर आत्मकल्याण का प्रयास करना चाहिए। आत्मा, शरीर, कर्म, बंध आदि को मानते हुए जप, तप, स्वाध्याय, योग, ध्यान और साधना के द्वारा अपनी आत्मा को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि कल हमारा सूरत महानगर के उधना में आना हुआ। यहां की जनता में धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। मुनि उदितकुमारजी के चतुर्मास का पूर्ण लाभ उठाने का प्रयास करें और आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।

ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने की विविध प्रस्तुति ने लोगों को किया मंत्रमुग्ध 

अपने आराध्य की कृपावृष्टि में ओतप्रोत उधनावासियों ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्तियों का क्रम प्रारम्भ किया। गत चतुर्मास उधना में करने वाली साध्वी लब्धिश्रीजी व समणी हर्षप्रज्ञाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। तेरापंथी सभा उधना के अध्यक्ष बसंतलाल नाहर, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष सुनील चण्डालिया व तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती जस्सु बाफना ने अपनी भावभीनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल-उधना ने अपने गीत की प्रस्तुति देते हुए आचार्यश्री के समक्ष अपने संकल्प भेंट किए। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ श्रावक समाज-उधना ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। उधना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री महाश्रमणजी की जीवनवृत्त पर आधारित प्रस्तुति दी तो पांडेसरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री भिक्षु के जीवन पर आधारित प्रस्तुति दी। अड़ाजन और लिम्बायत ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की शानदार प्रस्तुति ने जन-जन को मंत्रमुग्ध बना दिया।

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