कुछ के लिए वरदान बना लतरातू जलाशय, तो जमीन देकर पछता रहे हैं कई किसान

41 किलोमीटर लंबी इस नहर से लगभग 13000 एकड़ खेत की सिंचाई होती है

कुछ के लिए वरदान बना लतरातू जलाशय, तो जमीन देकर पछता रहे हैं कई किसान

खूंटी, 29 अप्रैल (हि.स.)। खूंटी और रांची जिले की सीमा पर बना लतरातू जलाशय एक ओर जहां कुछ किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है, तो दूसरी ओर अपने निर्माण काल से लेकर अब तक हजारों किसानों कों लतरातू डैम से एक बूंद पानी नहीं मिला है। उन्हें लगता है कि उन्होंने नहर के लिए जमीन देकर बड़ी गलती कर दी।

लतरातू जलाशय से निकलने वाली दोनों नहरें उस क्षेत्र के रहने वाले दर्जनों गांव के लोगों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रही हैं। 41 किलोमीटर लंबी इस नहर से लगभग 13000 एकड़ खेत की सिंचाई होती है। बायीं और दायीं दोनों मुख्य नहरों से लघु नहर डिस्ट्रब्यूट्री और आउटलेट द्वारा पानी खेतों तक सिंचाई के लिए पहुंचाया जाता है। यहां के किसान नहर से मिलने वाले पानी से साल में दो बार धान की खेती कर लेते हैं। इसके साथ ही भिंडी, लौकी, तरबूज, टमाटर, झींगा सहित अन्य सब्जियों की खेती भी किसान बड़ी मात्रा में करते हैं। लतरातू, बलान्दु, सरसा, नवाटोली, दरन्दा, देवगांव, डुरू, तिगरा, ककरिया, चम्पाडीह, अकोरोमा, कारूम, पोकटा, कांदरकेल, तस्की, डुमरगड़ी, मानपुर, सिलमा, बिरदा, गुनगुनिया, बुढ़ीरोमा, झपरा, कातारटोली, सरदुल्ला, कसिरा, बमरजा, सरसा, दोदगो, कुंबाटोली सहित दर्जनों गांव के हजारों किसान लतरातू डैम के पानी से  खेती करते हैं। जिन क्षेत्रों से लतरातू डैम की नहर गुजरती है, वहां इन दिनों गरमा धान की खेती लहलहा रही है।

गरमा धान की खेती से उपज और मुनाफा दोनों अधिक है। गरमा धान से किसान साल भर गुजारा कर लेते हैं। उनका कहना है कि गरमी के दिनों में खेती होने के कारण फसलों में बीमारी नहीं के बराबर होती है। बरसात के दिनों में धान की खेती में बीमारियों का खतरा अधिक होता है। कई तरह की कीटनाशक दवाओं और रासायनिक खाद का प्रयोग करना पड़ता है और इसमें लागत भी अधिक लगती है। साथ ही रासायनिक खादों के प्रयोग का दुष्प्रभाव कहीं न कहीं हमारे शरीर पर पड़ता है।

किसान कहते हैं कि लतरातू डैम सही मायने में उनके लिए वरदान है। नहर होने के कारण उन्हें सिंचाई की सुविधा मिल जाती है। पहले सिंचाई के अभाव में वे खेती नहीं हो पाते थे। इसके कारण उनके पास भूखों मरने की नौबत आ जाती थी। लतरातू नहर किसानों की आर्थिक स्थिति के साथ ही उनकी किस्मत भी बदल रही है। किसान हवन होरो ने कहा कि पहले हमलोगों को छह महीना के लिए भी धान नही होता था। डैम से जब से पानी मिल रहा, हम किसान दो बार धान की खेती कर सालों भर खाते है और बिक्री भी करते हैं। साथ ही बच्चों का पढाई लिखाई के साथ शादी विवाह भी कर रहे है। किसान गोइंदा उरांव ने कहा कि डैम का पानी से हमलोग सालों भर खेती तो कर ही रहे है, साथ ही क्षेत्र में जल स्तर काफी ऊपर आ गया है।

निर्माण के बाद से आज तक नहीं मिला एक बूंद पानी

इसके विपरीत कर्रा प्रखंड के दर्जनों गांवों में लतरातू जलाशय से सिंचाई के लिए जलापूर्ति करने के उद्देश्य से कई किलोमीटार लंबी नहर बना दी गई है, लेकिन पिछले 30-35 वर्षों से एक बार भी नहर में पानी नहीं छोड़ गया। किसान नहर के लिए जमीन देकर पछता रहे हैं। कर्रा प्रखंड के तिलमी, बमरजा, चांपी, टिमड़ा सहित दर्जनों गांव में वर्षों पहले नहर तो बना दी गई। लेकिन अब तक नहर में कभी पानी छोड़ा ही नहीं गया। बमरजा गांव के किसान रामधन गोप कहते हैं कि 30-35 साल पहले नहर के लिए हमलोगों ने जमीन दी थी। नहर भी बना दी गई। लेकिन अब तक जलाशय से एक बूंद पानी उन्हें नहीं मिल पाया है। टिमड़ा गांव के किसान मार्शल होरो कहते हैं कि किसान नहर के लिए जमीन देकर पछता रहे हैं। अब तो नहर में भी मिट्टी भर गई है। यह योजना इस क्षेत्र में पूरी तरह विफल हो गई है।

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