फिल्म "आजमगढ़" में पंकज त्रिपाठी अपने चिर-परिचित अंदाज में अभिनय करते दिखे!

फिल्म

Movie Review आजमगढ़

कलाकार - पंकज त्रिपाठी , अमिता वाडिया और अनुज शर्मा
लेखक - कमलेश के मिश्र
निर्देशक - कमलेश के मिश्र
निर्माता - चिरंजीवी भट्ट और अंजू भट्ट
प्रचारक - संजय भूषण पटियाला 
ओटीटी  - मास्क टीवी
रिलीज - 28 अप्रैल 2023
रेटिंग    - 2/5

हिंदी सिनेमा में अभिनेता पंकज त्रिपाठी की ब्रांड वैल्यू का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी एक हां के लिए तमाम ओटीटी के क्रिएटिव हेड कतार में लगे रहते हैं। वह गिनती की फिल्में और वेब सीरीज करते हैं और अपनी एक ऐसी जगह फिल्म जगत में बना चुके हैं, जहां उनको ध्यान में किरदार लिखे जा रहे हैं। नए नए लॉन्च हुए ओटीटी मास्क टीवी को पंकज त्रिपाठी की इस ब्रांड वैल्यू की चमक का कुछ हिस्सा अपने नाम करने का मौका मिला है उनकी दशक भर पहले बनी फिल्म 'आजमगढ़' से। फिल्म के निर्देशक कमलेश के मिश्र राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्मकार हैं। उन्होंने ही बनाई है पंकज त्रिपाठी स्टारर फिल्म 'आजमगढ़'।

फिल्म 'आजमगढ़' में पंकज त्रिपाठी ने एक ऐसे मौलवी की भूमिका निभाई है जो नवयुवकों को बहला फुसलाकर कर आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित करता है। आजमगढ़ का रहने वाला आमिर 12वी में टॉप करने के बाद किस तरह से आतंकवादी संगठन में शामिल होता है और आतंकवादी गतिविधियों में भाग लेता है, यह फिल्म में दिखाया गया है।

जब फिल्म 'आजमगढ़' की होर्डिंग को लेकर विवाद हुआ तो फिल्म में मौलवी की भूमिका रहे पंकज त्रिपाठी ने कहा था कि इस फिल्म में उनकी भूमिका बहुत छोटी है और फिल्म में उनके सिर्फ पांच ही सीन है। और, गुरुवार को हुए फिल्म के प्रिव्यू शो में इसे देखने के बाद पंकज त्रिपाठी का यह दावा बिल्कुल सही निकला।

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की छवि ऐसी बनी है कि वहां का नाम सुनते ही जेहन में ऐसी तस्वीरें घूमने लगती हैं जो अक्सर आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी होती हैं। लेखक, निर्देशक कमलेश के मिश्र ने फिल्म के लिए विचार बिल्कुल सही उठाया है कि कुछ लोगों की वजह से किसी एक स्थान या किसी एक समुदाय के लोगों को आतंकवादी समझना गलत है। एक पढ़ा लिखा लड़का जिसका इंजीनियर बनने का सपना है, वह आतंकवादी संगठन में शामिल होकर दुनिया के बड़े बड़े आतंकवादियों को एक ही धमाके में उड़ा कर यह साबित करता है कि आजमगढ़ का रहने वाला हर युवक आतंकवादी नहीं होता है।

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पूरी फिल्म की बात करें तो एक डाक्यूमेंट्री फिल्म जैसी लगती है। कमलेश को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला भी उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'मधुबनी' के लिए ही हैं। फिल्म के पुरानी होने का एक दृष्टांत ये भी कि ये फिल्म साल 2008 के बाद की आतंकवादी गतिविधियों क बात नहीं करती है। उसके पहले के दशक में देश के प्रमुख शहरों में जितनी भी आतंकवादी घटनाएं हुई हैं, न्यूज चैनलों पर चलने वाले उनके फुटेज को दिखा दिखा कर एक शॉर्ट फिल्म को फीचर फिल्म की लंबाई देने की कोशिश की गई है। फिल्म में मूल कहानी पर ध्यान कम और टीवी पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज पर फोकस ज्यादा है।

जहां तक फिल्म में कलाकारों के परफॉर्मेंस की बात है तो पंकज त्रिपाठी अपने चिर परिचित अंदाज में ही अभिनय करते दिखे। फिल्म में उनकी भूमिका भले ही छोटी है लेकिन फिल्म के लेखक-निर्देशक कमलेश मिश्रा ने उन्हें मुख्य किरदार के रूप में ही प्रस्तुत किया गया है। फिल्म में आमिर की भूमिका निभाने वाले अनुज शर्मा ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है, बाकी कलाकारों का अभिनय सामान्य रहा है। काफी लंबे समय के बाद इस फिल्म में कव्वाली सुनने को मिली है जिसके बोल हैं 'किसकी लगी नजर' और इसे निजामी बंधुओं ने गाया है।
 
ओटीटी मास्क टीवी के प्रमोटर संजय भट ने अच्छा प्रमोट किया है फिल्म को। फिल्म 'आजमगढ़' की शूटिंग आजमगढ़, वाराणसी, अलीगढ़ और दिल्ली की वास्तविक लोकेशन पर की गई है। सिनेमैटोग्राफर महेंद्र प्रधान ने इन शहरों की खूबसूरती को बहुत ही अच्छे तरीके से अपने कैमरा में कैद किया है। अगर, इस फिल्म को ठीक से संपादित किया गया होता तो यह फिल्म 30 मिनट से ज्यादा नहीं होती। टीवी पर चलने वाले ब्रेकिंग न्यूज और आतंकवादी घटनाओं के फुटेज को बहुत लंबा खींचा गया है। एडिटर बिरेन ज्योति मोंटी के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं रहा होगा कि उन्होंने 20 मिनट की शॉर्ट फिल्म को 90 मिनट की फीचर फिल्म बना दिया। लेकिन एक सच ये भी है कि अगर इस फिल्म को फीचर फिल्म ना बनकर सिर्फ शॉर्ट फिल्म के रूप में रिलीज किया गया होता तो दर्शकों पर इसका असर ज्यादा होता।

(हंगामा मीडिया ग्रुप द्वारा प्रस्तुत)