सूरत को कर्मभूमि बनाने वाले राजस्थानी परिवारों ने पारम्परिक घेर नृत्य के साथ होली पर्व मनाया 

राजस्थानी समाज में होली को बहुत ही महत्व और उत्साह के साथ मनाया जाता है

सूरत को कर्मभूमि बनाने वाले राजस्थानी परिवारों ने पारम्परिक घेर नृत्य के साथ होली पर्व मनाया 

पर्वत पाटिया, सिटी लाइट रोड समेत शहर के राजस्थानी बहुल इलाकों में 100 से ज्यादा फोगोत्सव कार्यक्रम आयोजित हुए

सालों पहले रोजी रोटी के लिए सूरत आए और फिर सूरत में ही रहने वाले राजस्थानी समाज के लोगों ने होली पर्व की सदियों पुरानी परंपरा को आज भी कायम रखा है। आज भी सूरत में रहते हुए विभिन्न जिलों के राजस्थानी परिवार इकट्ठे होकर उत्साह के साथ फागोत्सव मनाते हैं। सूरत शहर के पर्वत पाटिया, सिटी लाइट रोड सहित शहर के राजस्थानी बाहुल्य क्षेत्रों में 100 से अधिक फागोत्सव कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। 

होली से एक महीने पहले ही राजस्थानी परिवार में होली के त्योहार के दौरान पारंपरिक घेर नृत्य की हलचल देखी जाती हैं। सूरत में होली जलाने के बाद राजस्थानी परिवारों के पुरुष भी डांडिया की गड़गड़ाहट के साथ राजस्थानी लोक गीत- लोक संगीत में होली की पूजा करते नजर आते हैं।

सूरत के पर्वत पाटिया, मगोब, सिटी लाइट समेत शहर के कई इलाकों में राजस्थानी समुदाय की बहुलता देखी जाती है। इस क्षेत्र में होली के आसपास राजस्थान के विभिन्न जिलों से लोग उत्साहपूर्वक फागोत्सव मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और एक माह पूर्व से ही विभिन्न क्षेत्रों में घेर नृत्य, फागान नृत्य देखने को मिलता है। 

राजस्थानी समुदाय के नेता दिनेश राजपुरोहित कहते हैं, राजस्थानी समाज में होली के त्योहार का बहुत महत्व है और इसका उत्सव भी एक महीने पहले ही शुरू हो जाता है। होली के त्योहार की सदियों पुरानी परंपरा को राजस्थानी समाज के लोगों ने बनाए रखा है। जिसमें राजस्थानी पुरुष पैरों में घुंघरू, सिर पर साफो, धोती-कुर्ता, डफली, बांसुरी रखकर राजस्थानी फागन धमाल नृत्य कर होली का त्योहार मनाते हैं।

होली और धुलेटी एक दूसरे के प्रति कड़वाहट दूर करने और रिश्तों में मिठास भरने का त्योहार है, सूरत में भी राजस्थान की तरह पारंपरिक रूप से राजस्थानी समाज होली और धुलेटी त्योहार की  कई दिनों से विशेष रूप से शुरुआत करते है। सूरत में भी राजस्थान की तरह शुरू से फागन का, नाच-गाने का माहौल शुरू हो जाता है। होली वाली जगह पर एक महीने पहले डंठल लगाकर होली तैयार कर ली जाती है। फिर धूलेटी के दिन एक दूसरे के घर जाकर गुलाल, अबील और रंग से रंगते हैं।

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