सूरत : द्वारिका के नाथ के लिए जरदोशी कार्य के वस्त्रों को 12 दिन में तैयार किया गया!

सूरत : द्वारिका के नाथ के लिए जरदोशी कार्य के वस्त्रों को 12 दिन में तैयार किया गया!

माघ वद के तीसरे दिन 8 फरवरी को भगवान द्वारकाधीश को विशेष वाघा ( वस्त्र श्रृंगार) का भोग लगाया जाएगा

भगवान द्वारकाधीश में धाजा चढ़ाने और वाघा (वस्त्र) चढ़ाने का विशेष महत्व है। द्वारका में माघ वद का तीसरा दिन एक बड़ा उत्सव बन जाता है इस दिन का विशेष महत्व है। लिहाजा इस दिन उन्हें कपड़ा नगरी सूरत के एक शिल्पकार की ओर से एक खास तरह का वाघा भेंट किया जाएगा। सूरत में जरदोशी और कढ़ाई से जुड़े और सगरमपुरा इलाके में रहने वाले हेमंतभाई रसिकलाल छापगर के हाथों इस दिन भगवान द्वारकाधीश का वस्त्र श्रृंगार किया जाएगा।

जगतमंदिर में वस्त्र वाघा चढाने का अनोखा महत्व

माघ वद के तीसरे दिन 8 फरवरी को भगवान द्वारकाधीश को विशेष वाघा का भोग लगाया जाएगा। इस वाघा को सूरत के हेमंतभाई रसिकलाल छापगर ने तैयार किया है। जो तांबे के तार से पूरी जरदोशी हस्तकला से तैयार की जाती हैं। इन वस्त्रों की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। जगतमंदिर द्वारका में वाघा चढ़ाने का एक अनूठा महत्व है। विदेशों में रहने वाले भक्त भगवान को अनोखा प्रसाद चढ़ाते हैं। तो कुछ भगवान के लिए लाखों रुपए का वाघा तैयार करते हैं।  सूरत के हेमंतभाई छापगर सालों से भगवान के लिए वाघा बना रहे हैं। इसके लिए भक्त उन्हें वाघा बनाने का ओर्डर देते हैं।

50 हजार की लागत से तैयार हुआ है यह वस्त्र

हेमंतभाई का परिवार तीन पीढ़ियों से इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। वे भक्तों की मांग के अनुसार तरह-तरह के वाघा बनाते हैं। यह वाघा 25000 रुपये से शुरू होता है, जिसे अनगिनत रुपये तक बनाया जा सकता है। उनका कहना है कि भगवान माघ वद के तीसरे दिन जो वाघा पहना जाएगा उसे बनाने में 12 दिन का समय लगता है। जिस पर चार लोगों ने तांबे के तार से मिलकर जरदोशी  का काम किया है। इस वाघा को बनाने में किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसे करीब 50 हजार की लागत से तैयार किया गया है।

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