वडोदरा : पशुपालकों के दूध की बिक्री पर लम्पी का असर, दूध भी उबाल कर पीने की अपील

वडोदरा : पशुपालकों के दूध की बिक्री पर लम्पी का असर, दूध भी उबाल कर पीने की अपील

लम्पी रोग एक विषाणुजनित रोग है। यह रोग कैपरी पॉक्स नामक विषाणु से होता है। वर्तमान में पशुओं में तेजी से फैल रहे लम्पी रोग के कारण वडोदरा में दुग्ध उत्पादकता प्रभावित हुई है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को लेकर लोगों ने पशुपालकों से सीधे दूध लेना कम कर दिया है। डेयरी के केंद्र से दूध लेने का आग्रह किया है।  लम्पी रोग, जो पूरे राज्य में व्याप्त है, आमतौर पर जानवर से इंसान में नहीं फैलता है। ऐसी कई बीमारियां हैं जो पशु से मानव और मानव से पशु में फैलती हैं लेकिन गांठदार (लम्पी) रोग जूनोटिक नहीं है। इसलिए इसे पशु से मानव प्रजाति में फैलाना संभव नहीं है लेकिन जिन पशुओं में यह बीमारी फैली है, उनके दूध उत्पादन में उल्लेखनीय कमी आई है। जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
आनंद वेटरनरी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बी.सी. परमार ने कहा, कुछ जूनोटिक रोग हैं जो मनुष्यों में फैलते हैं और मानव जाति को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई जानवर टीबी से संक्रमित है और एक इंसान उसका कच्चा दूध पीता है, तो टीबी के होने की संभावना है। इसी तरह जानवरों के मांस के सेवन से भी कभी-कभी टीबी हो जाती है। वर्तमान में लम्पी रोग गायों में विशेष रूप से देखा जाता है और गाय का कच्चा दूध सीधे पीने के बजाय इसे सतर्कता बरतते हुए से गर्म करके पीना चाहिए। डॉक्टर बी.सी. परमार ने यह भी कहा कि लम्पी बीमारी से बचाव के लिए गायों को गोट पॉक्स नाम का टीका दिया जाता है। जिसे फिलहाल सावधानी के तौर पर दिया जा रहा है। लेकिन संक्रमित गायों में वैक्सीन किसी काम की नहीं होती। फिलहाल इसका कोई खास इलाज नहीं है, लेकिन इलाज के हिस्से के तौर पर एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक जैसी दवाएं दी जाती हैं। कुछ गायों को भी इस रोग में निमोनिया हो सकता है।
एहतियात के तौर पर गायों को गोट पाक्स का टीका लगवाने से बहुमूल्य पशुधन को बचाया जा सकता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गाय का खून चूसने वाले मक्खियों, मच्छरों, कीड़ों या अन्य कीड़ों के जरिए यह बीमारी एक जानवर से दूसरे जानवर में फैल रही है। गाय का खून चूसने वाली मक्खियाँ, मच्छर, कीड़े या जीवजंतु को डेल्टामेथ्रिन को पानी में मिलाकर छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में गायों को रखा जाता है, वहां नियमित रूप से फॉगिंग जैसे उपाय करना अनिवार्य है।
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