दिल्ली हाईकोर्ट : दोस्त को इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाने से रोकना चाहती है दोस्त, दायर की याचिका, कहा ऐसा नहीं हुआ तो हो जायेगा बहुत बड़ा नुकसान

दिल्ली हाईकोर्ट : दोस्त को इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाने से रोकना चाहती है दोस्त, दायर की याचिका, कहा ऐसा नहीं हुआ तो हो जायेगा बहुत बड़ा नुकसान

2014 से क्रोनिक फटिग सिंड्रोम से पीड़ित है यूरोप जाने की इच्छा रखने वाला ये शख्स

बेंगलुरु की 49 साल की एक महिला ने नोएडा के रहने वाले 48 साल के शख्स को यूरोप जाने से रोकने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की है। महिला के मुताबिक यूरोप जाने वाला उसके पुरुष मित्र का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है और वह इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाना चाहता है। दरअसल भारत में ऐसे किसी भी शख्स को इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं है जो बेहद गंभीर स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में महिला ने अपने पुरुष मित्र को यूरोप जाने से रोकने संबंधी याचिका हाईकोर्ट में बुधवार को दायर की। 
जानकारी के अनुसार यूरोप जाने की इच्छा रखने वाला ये शख्स 2014 से क्रोनिक फटिग सिंड्रोम से पीड़ित है और चिकित्सीय सहायता से इच्छामृत्यु के लिए स्विट्जरलैंड जाने की योजना बना रहा है। हमेशा थकान बने रहने की यह स्थिति क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम कहलाती है। यह थकान की एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को लगातार छह महीने या उससे अधिक समय से थकान रहती है और कई बार यह इतना गंभीर रूप ले लेती है कि सामान्य कामकाज में भी दिक्कत आती है। भरपूर आराम और नींद भी राहत महसूस नहीं होने देती। ऐसे में पुरुष का करीबी दोस्त बताने वाली महिला ने हाईकोर्ट में अनुरोध करते हुए कहा कि अगर उसकी यात्रा को रोकने की याचिका को अनुमति नहीं दी गई तो उस इन्सान के माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों को 'अपूरणीय क्षति' और 'कठिनाई' का सामना करना पड़ेगा। 
याचिका के अनुसार, 8 साल शख्स की तबीयत बेहद खराब हालात में ये नोएडा का रहने वाला शख्स एम्स में फेकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन नाम का इलाज करवा रहा है लेकिन कोरोना के दौरान 'डोनर नहीं मिलने की समस्या' की वजह से अपने माता-पिता के इकलौते बेटे का इलाज जारी नहीं रह सका। उसके लक्षण 2014 में शुरू हुए और पिछले आठ सालों में उसकी हालत बिगड़ती गई, जिससे वह पूरी तरह से बिस्तर पर आ गया है और घर के अंदर कुछ कदम ही चलने में सक्षम है। इससे पहले रोगी ने बेल्जियम में एक क्लिनिक में इलाज के झूठी जानकारी देकर 26 यूरोपीय देशों में बिना किसी प्रतिबंध के यात्रा की अनुमति वाला शेंगेन वीजा प्राप्त किया था। याचिका में दावा किया गया है कि असल में उसने जून में बेल्जियम होते हुए स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख की यात्रा की। ऐसा उसने इच्छामृत्यु के लिए मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन (साइकोलॉजी इवेल्यूएशन) के पहले दौर में उपस्थित होने के लिए किया। इस मामले में बड़ी खबर ये है कि डिग्निटास ने शख्स के इच्छामृत्यु के आवेदन को स्वीकार कर लिया था। पहले मूल्यांकन को मंजूरी दी गई थी और (वह) अब अगस्त 2022 के अंत तक अंतिम फैसले की प्रतीक्षा कर रहा हैं। याचिका के साथ जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि मरीज को मई में एम्स के एक डॉक्टर की ओर से एक पत्र जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि वह चिकित्सा परामर्श और भविष्य के इलाज के लिए बेल्जियम की यात्रा कर रहा है क्योंकि उसकी स्थिति अनुसंधान के प्रारंभिक चरण में है और भारत में इसके बारे में बहुत अच्छी तरह से जानकारी उपलब्ध नहीं है। 
भारत में इच्छामृत्यु के नियम की बात करें तो साल 2018 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए निष्क्रिय रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए इच्छामृत्यु को कानूनी बना दिया था। इसे पैसिव यूथेंसिया कहा जाता है। इसके तहत वे मरीज जो कभी ना ठीक हो पाने बीमारी और असाध्य कोमा में हैं, उनके जीवन को खत्म करने की अनुमति उनके परिवार की रजामंदी से दी जा सकती है। इसमें रोगी के दवाई, डायलिसिस, वेंटिलेशन, लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद करने की अनुमति है। ऐसे मामलों में रोगी स्वयं मृत्यु को प्राप्त होगा। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐक्टिव इच्छामृत्यु की बात नहीं कही है। इसनें किसी शख्स को इंजेक्शन या किसी अन्य माध्यम से मृत्यु दी जाती है। भारत में इसकी इजाजत नहीं है। 
वहीं, स्विट्जरलैंड में 2011 में मतदाताओं ने विदेशियों के लिए इच्छामृत्यु पर प्रतिबंध लगाने की योजना को खारिज कर दिया था। सिंगापुर सहित कई देश हाल के वर्षों में 'सुसाइड टूरिज्म' को बढ़ावा देने के लिए आलोचनाओं का भी शिकार होते रहे हैं। इससे पहले भारत में 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को रोकने के लिए लेखक और कार्यकर्ता पिंकी विरानी की याचिका को ठुकरा दिया था। अरुणा एक नर्स थी जिनकी मृत्यु 2015 में हुई। इससे पहले एक यौन उत्पीड़न की घटना के बाद लगभग 42 साल वे कोमा में रहीं।