ऑल जीन आरटी-पीसीआर से पकड़ में आ सकता कोरोना का नया स्ट्रेन

ऑल जीन आरटी-पीसीआर से पकड़ में आ सकता कोरोना का नया स्ट्रेन

पहले के मुक़ाबले बदल चुका है वायरस का स्वरूप, सभी तरह के जींस के वायरस का परीक्षण करने से की जा सकती है इफेक्टिव तरीके से जांच

लखनऊ, 20 अप्रैल (आईएएनएस)| दवा कंपनी संचालित करने वाले लखनऊ के उमेश सिंह को चार दिन पहले कोरोना के लक्षण आए तो उन्होंने अपनी आरटी-पीसीआर जांच कराई, लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आयी। उनकी हालत बिगड़ती चली गयी तो उन्होंने अपने को आइसोलेट कर बाहर से 50 हजार रुपये खर्च कर जांच करवाई। रिपोर्ट में कुछ नहीं निकला वह इस समय घर पर ही उपचार करवा रहे हैं।
इसी प्रकार लखनऊ के अंकुश त्रिपाठी को कोरोना के शुरूआती लक्षण दिखे। उन्होंने भी आरटी-पीसीआर जांच कराई, जिसमें वह निगेटिव रहे। लेकिन उनकी हालत बहुत खराब नहीं हुई। उनके गले में जकड़न और सांस लेने में दिक्कत रही है। वह आइसोलेशन में अभी अपना इलाज घर पर कर रहे हैं। अभी कुछ ठीक होंने लगे हैं। कोरोना की दूसरी लहर का नया स्ट्रेन पहले से बिल्कुल अलग है। लोगों में लक्षण तो आ रहे हैं लेकिन जांच रिपोर्ट में निगेटिव आ रही है। एंटीजन क्या आरटी-पीसीआर जांच से भी मर्ज पकड़ में नहीं आ रहे हैं।
लेक्साई लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड(हैदराबाद) के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) और अमेरिका के ओम ऑन्कोलॉजी के मुख्य वैज्ञानिक राम शंकर उपाध्याय कहते हैं, "यह जो नया स्ट्रेन आया है वह जांच में पकड़ में मुश्किल से आ रहा है। उनका मानना है कि मरीज के सैंपल को ठीक से लिया जाना चाहिए। यह देखने की बात है। सैंपल लेने के लिए ट्रेंड व्यक्ति को दोनों को नाक का सैंपल लेना चाहिए। नाक के अंदर नेरोफैंजिल कैविटी के अंदर से सैंपल लिया जाना चाहिए। इसके अलावा मुंह में सैंपल लेने के लिए ओरोफैंजिल कैविटी तक सैंपल स्टिक रूई पहुंचनी चाहिए। इसके अलावा उसे तीन से चार सकेंड घुमाना चाहिए। अगर सैंपल ढंग से नहीं लिया गया तो संक्रमण को पहचानने में दिक्कत होगी।"
प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo : IANS)
उन्होंने बताया, "जो पहले के आरटी-पीसीआर किट का डिजाइन 2020 के वायरस के स्वरूप के हिसाब से था। अब संक्रमण की जेनिटेक संरचना बदल चुकी है। उस कारण काफी केस पकड़ में नहीं आएंगे। पहले भी आरटी-पीसीआर की एक्यूरेसी 80 प्रतिशत थी। 20 प्रतिशत फॉल्स पॉजिटिव-निगेटिव रिपोर्ट आते थे। यह एक्यूरेसी और घट चुकी है। काफी सारे वायरस बदल चुके है। अगर किसी को पता करना है तो आरटी-पीसीआर को अपडेट करना पड़ेगा। उसके लिए ऑल जीन आरटी-पीसीआर करना पड़ेगा। ओ,आर, एस ए, बी, आर यह सारे जीन है। मान लीजिए कोई व्यक्ति नए वायरस के चपेट में है। उसकी आरटी-पीसीआर जांच की जाती है। अगर वायरस 'एस' जीन में हुआ तो आरटी-पीसीआर जांच में दिखेगा ही नहीं ऐसे में रिपोर्ट में पुष्टि होंने की संभावना कम हो जाएगी।
राम शंकर कहते है कि, इसकी जगह हम ऑल जीन आरटी-पीसीआर जांच करेंगे तो भले ही किसी भी जीन में वायरस हो तो वह पकड़ में आ जाएगा। आगे चलकर वायरस का स्वरूप बदलेगा। सरकारी प्रयोगशाला अपग्रेड करना चाहिए। रेग्युलर जिनामिक सिकवेंसी सर्विलांस करते रहना चाहिए। इससे यह पता चलेगा पब्लिक के अंदर किस प्रकार म्यूटेसन का स्ट्रेन है। पब्लिक में फैलने से पहले लोग जागरूक हो जाएंगे और आरटी-पीसीआर किट भी अपडेट होती रहेगी। सरकारी प्रयोगशालाओं को प्रयास करते रहना चाहिए कि वह जिनोमिक और सिरोलाजिकल सर्विलांस को देश के अंदर बढ़ाए। जीन आरटीपीसीआर का खर्च 700-1000 के बीच हो जाना चाहिए।"
उपाध्यय एक दशक से अधिक समय तक स्वीडन (स्टॉकहोम) के उपशाला विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं। इसके अलावा वह मैक्स प्लैंक जर्मनी (बर्लिन) और मेडिसिनल रिसर्च कॉउंसिल ब्रिटेन (लंदन),रैनबैक्सी, ल्यूपिन जैसी नामचीन संस्थाओं में भी काम कर चुके हैं। वह लेक्साई और सीएसआईआर (कॉउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्री रिसर्च) से मिलकर कोविड की दवा खोजने पर भी काम कर रहे हैं। फिलहाल वह स्टॉकहोम में रह रहे हैं। 
कोरोना वायरस गाइडलाइंस के अनुरुप तापमान की जांच करवाते हुए महिला। (File Photo : IANS)
वहीं, किंग जार्ज मेडिकल के माइक्रो बायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा कहती हैं, "कई तरह किट उपलब्ध है। वह विभिन्न प्रकार के जीन जांच रही है। पुरानी किट पर जांच हो रही है। अभी किट बदलने के बारे में कोई गाइडलाइन नहीं आयी है। कुछ मरीजों में देखा गया है। वह आरटी-पीसीआर वह निगेटिव आ रहे है। पर उनमें कोविड के लक्षण है। उनका सिटी स्कैन कराकर उन्हें कोविड के कुछ डिफरेंट इलाके में रखकर वहां उनका कोरोना वाला इलाज हो सकता है। आरटी-पीसीआर निगेटिव है और कोरोना के लक्षण आ रहे तो सैंपल लेने के तरीके में बदलाव करना होगा। संक्रमण बहुत निचले स्तर पर है। उससे दूसरे पर प्रसार का खतरा कम है। अभी सैंपल उसके थ्रोट से ले रहे है। बलगम से भी लेने की जरूरत है। जांच और किट से संबधित फैसले स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर जारी करते हैं। कोई संस्थान अपनी ओर से लागू नहीं कर सकता है।"