सूरत : खून का संबंध नही था उसके बावजुद केन्सर के कठीन समय में कंपनी के लोग मेरे साथ थेः विवेक

सूरत : खून का संबंध नही था उसके बावजुद केन्सर के कठीन समय में कंपनी के लोग मेरे साथ थेः विवेक

संकट की इस घड़ी में मेरा अदानी परिवार मेरे साथ था। वास्तव में कंपनी और उसके कर्मचारी, आपके परिवार के लिए इतना कुछ करना बहुत दुर्लभ है

कोरोना काल में परिवार लोग अस्पताल जाने से डरते थे तभी कंपनी के साथीओं ने रक्तदान कर मददरूप हुए 
 "कैंसर यानी केन्सल " ऐसा कहा जाता है। और जब ऐसी बीमारी जब आपके परिवार के सदस्यों में दिखती  है तब जमीन खिसक जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ विवेक पारिख के साथ, जबकि उनके बड़े भाई विशाल को सरकोमा का कैंसर है यह बात का पता। जब साल 2020 चल रहा था। जब पूरी दुनिया में पहली बार कोविड
महामारी से गुजर रही थी। डॉक्टर्स ने कोविड महामारी के कारण अस्पताल के दरवाजे बंद कर दिए थे। उस समय यह बीमारी क्या है? इसका सही इलाज कैसे किया जाता है यह उतना ही चुनौतीपूर्ण था। विवेक अदानी ग्रुप के सीनियर नेतृत्व दल (लेखा और वित्त विभाग ) में कार्यरत। विवेक के मुताबिक, ''इस मुश्किल वक्त में मेरी टीम'' ने मुझे काफी सपोर्ट किया। मेरे भाई के इलाज के समय कई बार ऐसा हुआ कि मैं डॉक्टर के वहां धक्का खा रहा था, और मेरे कुछ सहकर्मी घंटे से अधिक समय तक मेरे कार्यालय में बैठे रहे इससे मुझे काम आसान करने में मदद मिली है, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यह कंपनी में अपने जीवन के 10 साल को देखते हुए मैंने सही काम किया।
साथ ही उनके भाई को कैंसर के प्रकार के निदान के बारे में भी बताया लेकिन शुरुआत में डॉक्टरों के बीच अलग-अलग राय थी। इसके लिए किस विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाएं? साथ ही कहाँ जाना है विवेक को समझ नहीं आया। ऐसे में अदाणी हेल्थ केयर टीम के डॉ. पंकज दोशी व डॉ. प्रांजिल वोरा ने उनकी बहुत मदद की।
विवेक ने कहा: "जब मैं सिम्स गया तो मेरे पास अदानी हेल्थ केयर टीम के डॉ. पंकज दोशी ने अपना रेफरेंस देने को कहा। जिससे मुझे सही मार्गदर्शन मिला। कीमोथेरेपी मुंबई में करना है या अहमदाबाद में?, उस सवाल का जवाब पाने के लिए मैंने अडानी ग्रुप के डॉ. और भूपेंद्र जाडेजा से भी संपर्क किया, उन्होंने मुझे सटीक मार्गदर्शन दिया। 
इसके अलावा, भरतभाई ने भी मेरी बहुत मदद की, ”विवेक ने कहा यकीन मानिए जीवन में आप कभी-कभी ऐसी मुश्किलों से गुजरते हैं इतने कठिन समय में कोई भले ही सही दिशा दिखा दे तो आप पुरी जिंदगी उसका उपकार नही भुल सकते।  और कुछ ऐसा ही कंपनी के लोगों ने मेरे लिए यह किया है।
विवेक ने आगे कहा, ''जबकि कोविड का दूसरा चरण चल रहा था मेरे भाई को खून चढ़ाने की जरूरत थी।  कोविड के इस कठिन समय में जब कोई अस्पताल के चक्कर तक नहीं लगाता फिर मेरे भाई को खून देने के लिए कंपनी, अस्पताल के कर्मचारी पहुंच गए।
विवेक ने कहा, "मैं इन सभी लोगों को जितना हो सके धन्यवाद देना चाहता हूं वह कम है। संकट की इस घड़ी में मेरा अदानी परिवार मेरे साथ था। वास्तव में कंपनी और उसके कर्मचारी, आपके परिवार के लिए इतना कुछ करना बहुत दुर्लभ है। इन सब परेशानियों के बाद विवेक का भाई कैंसर से बाहर निकला है।

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