सूरत : जीवदया प्रेमियों को पक्षियों के घायल होने के 600 से अधिक कॉल मिले

सूरत : जीवदया प्रेमियों को पक्षियों के घायल होने के 600 से अधिक कॉल मिले

पक्षियों को बचाने के लिए स्वयंसेवक लगातार दौड़ रहे थे

पक्षियों की चोटों में 20% की कमी
उत्तरायण का मजा पंछियों के लिए मौत की सजा बनता जा रहा है। पिछले एक दिन में जीवदया प्रेमी संगठनों द्वारा विभिन्न स्थानों पर पक्षियों के इलाज की व्यवस्था की गई है। सूरत शहर से अनुमानित 600 कॉल प्राप्त हुए और 50 पक्षी मृत पाए गए। विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा पक्षियों के उपचार के लिए भी कार्य किये गये। पिछले साल की तुलना में इस बार पक्षियों के घायल होने की संख्या में 20 फीसदी की कमी आई है। लोगों के बीच धीरे-धीरे उत्तरायण के दौरान मांझे के प्रयोग से पक्षियों एवं घायल हो जाने को लेकर जागरूकता आ रही है। वहीं दूसरी ओर कोरोना के संक्रमण के चलते उत्तरायण के दौरान भी लोग बड़ी संख्या में एकत्र नहीं हुए और पतंगबाजी से परहेज किया। नतीजतन, पिछले साल की तुलना में पक्षियों के घायल होने के मामले कम हैं।
पतंग उड़ाने वालों के लिए मस्ती का दिन पक्षियों के लिए जीवनभर की सजा बन जाता है। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों से जुड़े जीवदया प्रेमियों ने शहर भर में उत्तरायण के दौरान घायल पक्षियों का इलाज करने की योजना बनाई थी। वन विभाग की टीम के समन्वय से पक्षियों के संरक्षण के लिए संस्था सहित विभिन्न धर्मार्थ संगठनों द्वारा शहर और जिले में जन जागरूकता के लिए भी काफी काम किया गया।  नतीजतन, पिछले साल की तुलना में पक्षियों के घायल होने के मामलों में  तथा मरने वालों की संख्या में गिरावट आई है।
पतंग के धागे से घायल हुए पक्षियों के इलाज के लिए शहर में विभिन्न स्थानों पर केंद्र बनाए गए हैं। जहां ज्यादातर कबूतर घायल हुए हैं, वहीं चमगादड़, उल्लू, चील (समडी-वाझ) और मैना जैसे पक्षी भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इस संबंध में प्रयास संस्था के चिरागभाई ने कहा कि हमने कुल 170 पक्षियों को बचाया है, जिनमें से 3 चमगादड़, 4 उल्लू, 1 चील और 2 मैना का समावेश हैं। जिनमें से 1 चमगादड़ की मौत हो गई है। विशेष रूप से उल्लू और चील (वाझ)  के पंखों में गंभीर चोटें आई हैं। चील को 14 से 15 टांके जबकि उल्लू को 8 से 10 टांके लगाकर पंख लगाने पड़ते हैं।  
प्रयास संस्था एवं करुणा संस्था के जीवदया प्रेमियों ने सैकड़ों पक्षियों को बचाया
करुणा संस्था से जुड़े जयेश अदाणी ने कहा कि करुणा संस्था द्वारा उत्तरायण के दौरान 12 साल से जीवदया के लिए काम कर रहा है। यह कार्य उत्तरायण के अलावा अन्य दिनों में भी जारी रहता है। लेकिन उत्तरायण के दौरान पतंग रसिक जिस मांझे का इस्तेमाल करते हैं, वह घातक है। नतीजतन, पक्षियों के घायल होने की संभावना अधिक होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमारी पूरी टीम इन दिनों उत्तरायण के दौरान काफी सक्रियता से काम कर रही है। इस बार एक बात जो दिमाग में आई है, वह यह है कि पिछले साल की तुलना में पक्षियों के घायल होने के कॉल आने की संख्या कमी रही। इसमें 20 फीसदी की गिरावट आई है। साथ ही पिछले साल से कम पक्षी भी घायल हुए है।
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