सूरत : विश्व वृद्धावस्था दिवस आज, बुजुर्गों के लिए युवा पीढ़ी का मन और घर दोनों ही संकुचित होता जा रहा

सूरत :  विश्व वृद्धावस्था दिवस आज, बुजुर्गों के लिए युवा पीढ़ी का मन और घर दोनों ही संकुचित होता जा रहा

बुढ़ापे में खुशी की कुछ कुंजी वरिष्ठ नागरिकों को परेशानी के समय में सहारा देगी, और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगी

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 14 दिसंबर 1990 से  हर साल 1 अक्टूबर को 'विश्व वृद्धावस्था दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 2021 के उत्सव का विषय "सभी युगों के लिए डिजिटल इक्विटी फॉर ऑल एज" है। जो डिजिटल दुनिया में प्रवेश और बड़ों की सार्थक भागीदारी को आवाज देता है।
 दुनिया में और भारत में भी चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि से लोगों की औसत आयु मर्यादा में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में बुजुर्ग लोगों की संख्या में क्रमिक वृद्धि हुई है। वहीं बुजुर्गों की परेशानी बढ़ती जा रही है। बीमारी, दुर्बलता, लकवा, अकेलापन आदि उनकी समस्याएं तो हैं ही लेकिन जब उनके अपने बच्चे उनकी जिम्मेदारी लेने से इनकार करते हैं, और उन्हें बुढ़ापे में छोड़ देते हैं, तो उन्हें वृद्धाश्रम का सहारा लेना पड़ता है, ऐसे में उनकी स्थिति दयनीय हो जाती है। कभी-कभी उनका दुख तब और बढ़ जाता है जब परिवार के सदस्य उनका सम्मान करने के बजाय उनकी उपेक्षा करते हैं। समाज में वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि वृद्धों के लिए युवा पीढ़ी का मन और घर दोनों संकुचित होते जा रहे हैं।
 बुजुर्गों की दुर्दशा को दूर करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। बेसहारा लोगों के लिए सरकार के सामाजिक सुरक्षा विभाग की पेंशन योजना जैसी विभिन्न योजनाओं का लाभ वरिष्ठ नागरिक उठा रहे हैं। 1 अक्टूबर - विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस वरिष्ठ नागरिकों के लिए बुढ़ापे में खुशी की कुछ कुंजी वरिष्ठ नागरिकों को परेशानी के समय में  सहारा देगी, और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगी। 
 भाषाविज्ञान पर 'संयोजक विचार' और 'यौगिक व्यंजन' जैसी बहुमूल्य पुस्तकें देने वाले मुनिश्री हितविजयजी ने अब चरित्र निर्माण से संबंधित लगभग 40 विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए 'आइए समझें और सुधारें' शीर्षक से लिखा है।  वृद्धावस्था की समस्या के पीछे के दोनों पहलुओं की जांच करके 'वृद्धावस्था में जीने की कला' के तहत 10 सूत्र सुझाए गए हैं। जो वृद्धों के जीवन में अपनाने जैसा है।  
1) जितना हो सके अपना काम खुद करें। अगर कोई अपना थोड़ा सा भी काम करे तो उसे कहना चाहिए, "तुमने मेरे लिए बहुत काम किया है, तुमने मेरी बहुत मदद की है।" भले ही कोई तुरंत मदद या काम न करे, उसके प्रति घृणा या द्वेष न रखें।
2) खाने-पीने और कपड़े पहनने में जितना हो सके संयम रखना और त्याग वृत्ति रखें।
3)  मेरी सेवा मेरी आवश्यकता के अनुसार की जाती है, ऐसा मानना जरुरी
4) जितना हो सके कम बोलें। आपको बस अपने परिवार के सवालों का जवाब देना है। जो कुछ भी बोले वह  सभी को प्रिय लगे।
5) फालतू के पंचायत न करें, किसी के झांसे में न आएं। किसी को कड़वा मत कहो। हमेशा मीठा बोलो।
6) व्यापार और सांसारिक मामलों से स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो जाएं। घर, दुकान के किसी भी काम में न लगें। किसी को अवांछित सलाह न दें। बच्चों को स्वतंत्र निर्णय लेने दें।
7) अपने और पराये सभी  के लिए स्नेह रखें। 'सब चलेगा, सभी अच्छा लगेगा, सब कुछ पसंद करेगा' जीभ से  इन शब्दों को बार-बार वाणी में इस्तेमाल करना चाहिए।
8) देश और विदेश में हर जगह अपनी गरिमा और आत्म-कल्याण को बनाए रखने के लिए अपना अधिकांश समय गतिविधियों के साथ-साथ धर्म की आराधना में व्यतीत करना।
9) अपने और दूसरों के लिए सराहना की जाने वाली गतिविधियों में संलग्न होकर समाज को व्यापक सांसारिक और व्यावहारिक अनुभव ज्ञान का लाभ देना।
10)  वृद्धावस्था में व्यक्ति को अपने स्वभाव में थोड़ा सुधार करने का प्रयास करना चाहिए। सभी वरिष्ठ अपने स्वभाव में पूरी तरह से सुधार नहीं कर सकते हैं और उपरोक्त को पूरी तरह से लागू कर सकते हैं। फिर भी अमल में लाने का प्रयास करना चाहिए।
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